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< चित्त वृत्ति निरोध -
रहा है, आपके निकलने का मार्ग बन जाता है। लेकिन हमें लगता | | योग उपाय है, विधि है, मेथड है। योग नाव है, साधन है, जिससे ही नहीं कि घर जल रहा है। हां, कोई बुद्ध, कोई कृष्ण कहते हैं, | | दुख-मुक्ति हो सकती है। सुख नहीं मिलेगा। घर जल रहा है। तो हम कहते हैं कि महाराज, आप ठीक कहते हैं। इसलिए जो व्यक्ति योग के पास सुख की खोज में आए हों, वे क्योंकि हम में इतनी भी हिम्मत नहीं कि हम बुद्ध और कृष्ण से कह गलत जगह आ गए हैं। योग से सुख नहीं मिलेगा। जब मैं ऐसा सकें कि आप गलत कहते हैं। किस मुंह से कहें कि गलत कहते | | कहता हूं, तो इसलिए कह रहा हूं कि आप सुख की तलाश में योग हैं? कहीं गहरे में तो हम भी जानते हैं कि ठीक ही कहते हैं। जीवन | | के पास न जाएं। योग से दुख-मुक्ति मिलेगी। इसलिए अगर में सिवाय दुख के कुछ हाथ तो लगा नहीं; सिवाय आग और राख | आपको जीवन दुख प्रतीत हो गया हो, तो योग आपके काम का हो के कुछ हाथ तो लगा नहीं। सिवाय लपटों में झुलसने के और कुछ | सकता है। हाथ तो लगा नहीं।
लेकिन हममें से अधिक लोग योग के पास सुख की तलाश में इसलिए गहरे मन में हम जानते तो हैं कि ठीक कहते हैं। इसलिए
अपने सांसारिक नि हिम्मत भी नहीं होती कि बद्ध को कह दें कि गलत कहते हैं। जीवन | एक साधन बनाना चाहते हैं! हम योग से भी चित्त की साइकिल को सुख है। किस चेहरे से कहें? चेहरे पर एक भी रेखा नहीं बताती | पैडल देना चाहते हैं! तब हम बड़ा कंट्राडिक्टरी, बड़ा व्यर्थ का, कि जीवन सुख है। अनुभव का एक टुकड़ा नहीं बताता कि जीवन | बड़ा स्वविरोधी काम कर रहे हैं। हम चाहते हैं, योग से धन मिल सुख है। और बुद्ध से किस मुंह से कहें, क्योंकि बुद्ध के रोएं-रोएं | | जाए। और ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो कहेंगे, हां मिल जाएगा! से आनंद झलक रहा है। तो बुद्ध से किस मुंह से कहें कि जीवन | हम चाहते हैं, योग से शांति मिल जाए, ताकि शांति के द्वारा हम सुख है! .
धन और यश और कामनाओं की दौड़ को ज्यादा आसानी से पूरा 'अगर जीवन सुख है, तो बुद्ध ही कहते, तो कह सकते थे। कर सकें! लेकिन बुद्ध तो कहते हैं कि जीवन दुख है। और हम, जो कि दुख | | हम योग को भी संसार का एक वाहन बनाना चाहते हैं। यह नहीं में डूबे खड़े हैं सराबोर, हम किस मुंह से कहें कि जीवन सुख है! होगा। क्योंकि योग दूसरा सूत्र है। पहला सूत्र तो है, दुख का तो बद्ध को इनकार भी नहीं कर सकते कि आप गलत कहते हैं। अनिवार्य बोध, तभी उपाय का बोध पैदा होता है। लेकिन हमारी प्रतीति भी नहीं होती कि जीवन दुख है। ___बुद्ध तीसरा आर्य-सत्य भी कहते हैं। यह दूसरे आर्य-सत्य को
तो हम कहते हैं कि आप ठीक कहते हैं। समय पर, अनुकूल मैं और समझाना चाहूंगा। तीसरा आर्य-सत्य भी बुद्ध कहते हैं। समय पर मैं भी इस घर को छोड़ दूंगा। कृपा करके, जब तक अभी | | कहते हैं, दुख है। कहते हैं, दुख से मुक्ति का उपाय है। कहते हैं, इस घर में हूं, मुझे इतना बताएं कि कैसे इस घर में शांति से रहूं! दुख की मुक्ति के बाद की अवस्था है।
और वह रास्ता भी बता दें, क्योंकि फिर दुबारा आप मिले न मिलें, ___ यह बुद्ध अपने अनुभव से कहते हैं कि दुख-मुक्ति के बाद की जब मझे प्रतीति हो कि घर में आग लगी है. तो मझे वह मेथड. वह अवस्था है। दख-मक्ति को उपलब्ध हए लोग हैं। बद्ध खद प्रमाण विधि भी बता दें कि घर के बाहर कैसे निकलूं!
| हैं। कोई पूछे, क्या है प्रमाण? तो योग का प्रमाण बहिर्प्रमाण नहीं बुद्ध कहा करते थे कि जो आदमी पूछता है कि घर में आग लगी हो सकता है। योग का प्रमाण तो अंतर्साक्ष्य हो सकता है। बद्ध कह हो, तो मुझे रास्ता बता दें कि कैसे निकलूं, वह सिर्फ इतनी ही खबर सकते हैं, मैं हूं प्रमाण। देता है कि उसे पता नहीं है कि घर में आग लगी है। और कुछ पता __जब जीसस से कोई पूछता है कि क्या है मार्ग? तो जीसस कहते नहीं देता। क्योंकि जिसके घर में आग लगी है, वह विधि की बात हैं, आई एम दि वे—मैं हं मार्ग। देखो मेरी तरफ; प्रवेश कर जाओ नहीं पूछता। वह छलांग लगाकर बाहर निकल जाता है। बताने मेरी आंखों में। जब बुद्ध से कोई पूछता है, क्या है प्रमाण? तो बुद्ध वाला पीछे रह जाए; जिसको पता चला, घर में आग लगी है, वह कहते हैं, मैं हूं प्रमाण। देखो मुझे। दुख से उपराम पाया हुआ चित्त मकान के बाहर हो जाएगा। दूसरा सत्य बुद्ध कहते हैं, उपाय है। योग उपाय है।
यह तीसरा सत्य तो केवल वे ही लोग उदघोषित कर सकते हैं, इसलिए कृष्ण कहते हैं, योग से उपराम को उपलब्ध हुआ चित्त। जो प्रमाण हैं। दो तक, पहला और दूसरा सत्य तो हम समझ सकते
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