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प्रतिक्रमण-पदार्थ से / हीरे और पत्थर पर आदमी द्वारा आरोपित हैं मूल्य / पदार्थ से मुक्ति और प्रभु में प्रवेश-युगपत घटित / पाप से मुक्त होते ही चित्त प्रभु में लग जाता है / प्रभु-स्मरण की सतत अंतर्धारा / सोते हुए रामतीर्थ के शरीर के रोएं-रोएं से राम की गूंज / सुख आनंद नहीं है / अनंत बूंदों का जोड़ सागर है / अनंत सुखों का जोड़ भी आनंद नहीं है / सुख और आनंद में परिमाण का नहीं-गुण का फर्क है / दुख के पार जाना हो, तो सुख के पार जाना पड़े / भारतीय का अध्यात्मवाद झूठा-वह असल में पदार्थवाद है / आध्यात्मिक होने के लिए जीवंत प्रयोग करना पड़े / अनासक्त होने की कला का अभ्यास / संकीर्तन क्या है? / बुद्धि के बाहर भाव-जगत में एक छलांग / गीत और नृत्य में व्यक्ति का खोना-और परमात्मा का होना।
अहंकार खोने के दो ढंग ... 207
परमात्मा अदृश्य नहीं-हम अंधे हैं / सोच-विचार से आंख नहीं खुलती/अरूप की तरफ गति / खिड़की से देखने पर आकाश में आकार / इंद्रियां खिड़कियां हैं / इंद्रियां निराकार को आकार और विराट को सीमा दे देती हैं / स्त्रैण-चित्त को एक में सबको देखने में आसानी / पुरुष-चित्त को अनेक में रुचि / स्त्री को एक में तृप्ति / पश्चिमी स्त्री में स्त्रैणता कम होती जा रही है / स्त्रियों को बुनियादी बदलाहटें पसंद नहीं / स्त्री-पुरुष के चित्त-भेद के कारण उनके बीच बड़ी कलह है / दोनों को इंद्रियों के पार उठना पड़ेगा / चलचित्र के पर्दे पर जीवन होने का भ्रम / चित्त से गहन तादात्म्य / तादात्म्य तोड़ने के लिए साक्षीभाव का अभ्यास / अनेक में एक देखना-भक्ति मार्ग-स्त्रैण-चित्त के लिए / मीरा और महावीर / मीरा के लिए एक ही पुरुष है-कृष्ण / कृष्ण में सब लीन हो गए हैं / स्त्रैण-चित्त के लिए समर्पण है सूत्र / महावीर शुद्ध पुरुष-चित्त हैं / संकल्प, साधना / विज्ञान के विकास से भक्ति के रूप खंडित हुए / बुद्ध द्वारा स्त्रियों को दीक्षा देने से इनकार / समर्पण है छलांग और संकल्प है क्रमिक / गंगा में अशर्फियां फेंकना-गिन-गिनकर / पुरुष का मार्ग है-क्रिस्टलाइजेशन / स्त्री का मार्ग है विसर्जन / पुरुष के लिए तनाव से विश्राम आएगा / स्त्री को स्वीकार पहले आता है-प्रमाण बाद में / पुरुष के लिए पहले प्रमाण-फिर स्वीकार / अहंकार निराकार को नहीं देख पाता है / अहंकार आकार देता है | पुरुष-चित्त में अहंकार सघन होकर फूट जाता है / स्त्री-चित्त में अहंकार फैलकर विराट में लीन हो जाता है / अहंकार खोने के ये दो ढंग / हम वही देख सकते हैं, जो हम हैं / समान ही समान से मिल सकता है / हमारी अशुद्धि, हमारी सीमा / निराकार का आकार से मिलन संभव नहीं है / सब आकार दूसरे से बनते हैं / निराकार और असीम के लिए कोई दूसरा नहीं है / सम्राट से मिलने के लिए योग्यता चाहिए / बूंद बूंद रहते हुए सागर से नहीं मिल सकती / कृष्ण क्यों कहते हैं-मुझ वासुदेव को? / ताकि अर्जुन समझ सके / मुझ निराकार को, मुझ ब्रह्म को–अर्जुन यह न समझ पाएगा / अर्जुन आकार की भाषा समझता है / शुद्ध सत्य अज्ञानी की समझ में नहीं आएंगे / करुणावश थोड़ा गैर-सही होना / बच्चों को भाषा सिखाना—ग गणेश का / सब शास्त्र क ख ग हैं / अर्जुन को उस जगह लाना, जहां वह देख सके कि कृष्ण भगवान हैं, ब्रह्म हैं / कृष्णमूर्ति शुद्ध भाषा बोलने के कारण परिणामकारी नहीं हो सके / विद्यार्थी की भाषा बोलना जरूरी / कृष्णमूर्ति एकालाप करते हैं / संस्मरण : दर्शन शास्त्र के अकेले विद्यार्थी / गीता एक महानतम संवाद है / गीता में बहुत उतार-चढ़ाव हैं / अंत में अर्जुन शुद्ध सत्य को समझ पाएगा।
सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण ... 223
समस्त भूतों में प्रभु-स्मरण / भजन का व्यापक रूप / जीवन के सतत प्रवाह में भजन / अरूप को प्रतिपल देखने की साधना / जीवंत साधना-जीवन के विराट घनेपन में / महानास्तिक-महाआस्तिक-एकनाथ / शिवलिंग पर पैर रखना और कुत्ते को राम कहना / फांसी पर मंसूर-हसन का फूल से मारना / स्मरण की सतत चोट जरूरी/ रूप में अरूप को खोजना / परमात्मा बिना खोज के न मिलेगा / गुरु की कठोर करुणाः