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श्रद्धा / कृष्ण को कभी विचलित नहीं देखा / कृष्ण की चेतना सदा युवा, सदा ताजी / बांसुरी और चारों ओर सदा नाचती गोपियां-आंतरिक प्रतीक / संगीत, नृत्य, उत्सव-कृष्ण के होने का ढंग है / भरोसे पर यात्रा संभव / करने से जानना आएगा / धनुर्विद्या और ध्यान / तीर चले-चलाने वाला कोई नहीं हो / समय बोध का तनाव-ध्यान में बाधा / दुख में समय लंबा मालूम पड़ना / ध्यान है समय के बाहर निकल जाना / प्रयत्न और प्रतीक्षा / बिना ऊबे श्रम करना / सोच-विचार के हजार कदम = श्रम का एक कदम / ऊब-साधक के लिए सबसे बड़ी बाधा / कृष्ण बार-बार क्यों दोहराते हैं? / हम सुन नहीं पाते / सुनने के भी क्षण हैं | हर बार कोई नया इशारा / प्रभु का सतत चिंतन / विचार नहीं–प्यास / सब के भीतर प्रभु की प्यास है / प्रभु प्यास को सब लोग पहचान जाते हैं / प्यास की गलत व्याख्या कर लेना / धन, पद, प्रभुता की खोज / नेपोलियन, सिकंदर की गलत दिशा में खोज / गलत दिशाएं छुटे–तो सतत चिंतन शुरू हो जाता है।
मन साधन बन जाए... 179
चंचलता मन का स्वभाव है / मन परिवर्तन सूचक यंत्र है / संसार में मन की उपादेयता है / मन से परमात्मा नहीं जाना जा सकता / परमात्मा शाश्वत है / मन को चालू और बंद करने की कला / मन को मारना नहीं-वश करना है / मन एक उपयोगी साधन हो जाए / मन का कोई कसूर नहीं है / चलने की प्राचीन आदत / मन को ठहराने की कला सिखाना / ब्रेक और गति-वर्धक साथ-साथ न दबाना / मन को गति मिलती है तादात्म्य से / तादात्म्य से वृत्तियां गतिमान / तादात्म्य तोड़ना निरोध है / असहयोग से अगति / साक्षी आया—कि मन गया / मन संसार के लिए साधन है-प्रभु के लिए बाधा / जितना तेज मन-उतना ही संसार में कुशल / परिवर्तन के साथ-तनाव, बेचैनी, चिंता होगी ही / संसार और परमात्मा दोनों में जीने की कला / मन
अनिवार्यतया असंगत होगा / हमारी जिंदगी-एक दुर्घटना है / विक्षिप्त मन के साथ प्रभु की ओर यात्रा असंभव / संसार से टूटना-परमात्मा से जुड़ना / पाप क्या है? / नए-नए रूप और आकारों में पाप की अभिव्यक्ति / पाप के भी फैशन बदलते हैं / पाप के मूल को समझना / रजोगुण पाप का आधार है / तीन गुण-सत्व, रज, तम / तम अवरोधक, रोकने वाली शक्ति है / घर, पत्नी-बच्चे-पुरुष के लिए रोकने वाली शक्ति / पुरुष है-रज, गति / स्त्री है-तम, अगति / सब धर्म पुरुष पैदा करते हैं / मगर धर्मों की सुरक्षा स्त्रियां करती हैं / तम ठहराव है, रज गति है, सत्व स्थिति है / सुषुप्ति में रजशून्यता से जड़ता / समाधि में-रज और तम बराबर–सत्व का उदय / रज आधिक्य पाप करवाता है / अकारण भी पाप करना / कुछ करने के लिए बेचैन आदमी/रज और तम संतुलन में शून्य हो जाएं / गति और अगति का संतुलन / विधि है-मन पर मालकियत / सारी जटिलताएं असंतुलन का परिणाम हैं / तमोगुण से पाप को नकारात्मक सहयोग / निगेटिव पापी के लिए अभी कोई जेल नहीं है / सत्व पुण्य है / सक्रिय ज्ञानी, निष्क्रिय ज्ञानी; निष्क्रिय अज्ञानी, सक्रिय अज्ञानी / सत्व है सक्रिय ज्ञान।
पदार्थ से प्रतिक्रमण-परमात्मा पर ... 193
आत्मा को पदार्थ में लगाए रखना पाप है / आत्मा को परमात्मा में लगाए रखना पुण्य है / पदार्थ का उपयोग करने की कला / पदार्थ नहीं बांधता–रस बांधता है / सुख बाइप्रोडक्ट है / आसक्ति नहीं वरन सम्यक उपयोग / वस्तुएं साधन हैं-साध्य नहीं / रोटी जरूरत है-लक्ष्य नहीं / संपन्नता में भीतर का खालीपन स्पष्ट / वस्तुओं का रस सभी तरह के पाप करवा लेता है / चीजें बच जाती हैं, मालिक मर जाता है / स्वामी रामतीर्थ का जापानी संस्मरण / सदा पदार्थ की ओर दौड़ता हुआ चित्त / पदार्थ की ओर-या परमात्मा की ओर / पदार्थ की ओर चलने में अनंत भटकाव / पदार्थ से परमात्मा पर वापसी प्रतिक्रमण है / त्याग पुण्य है, क्योंकि वह प्रतिक्रमण है / बुद्ध को संपत्ति विपत्ति दिखाई पड़ी / पाप है आक्रमण-पदार्थ पर / पुण्य है