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अवनींद्रनाथ और नंदलाल का संस्मरण / शरीर और मन की अनेक पर्तों के पार छिपा परमात्मा / आखिरी रातः जीसस का शिष्यों के पैर धोना / जुदास में भी प्रभु को देखना / पूरा अस्तित्व ही परमात्मा का मंदिर है / समत्व योग है / अपने सादृश्य से सब में सम देखना / स्वयं के लिए और दूसरों के लिए समान माप-दंड रखना / स्वयं को हमेशा बचा रखना / दूसरों के निर्णायक न बनना / तथाकथित साधु-संन्यासी : स्वयं को पवित्र और श्रेष्ठ समझना / सबके भीतर एक ही बैठा हुआ है / मैं को तू के सम लाना महायोग है / दूसरों को नीचा दिखाने की तरकीबें-धन, पद, ज्ञान/निंदा को मान लेना-प्रशंसा के लिए प्रमाण खोजना / निकटतम संबंधों में भी मैं को ऊपर रखने का संघर्ष / महावीर की अहिंसा-स्वयं के सदृश दूसरों से व्यवहार / अहंकार-मेरा जैसा कोई भी नहीं / परमात्मा की मजाक ः तुझ जैसा दूसरा नहीं बनाया / मरघट में निवासः सादृश्य-योग साधना / मौत सबको समान कर देती है। सादृश्यता के साथ करुणा का जन्म / सादृश्यता अहंकार की मृत्यु है।
मन का रूपांतरण...235
मन चंचल और बलशाली है / मन वायु की तरह सूक्ष्म और अदृश्य है / मन की थिरता कठिन है-असंभव नहीं / असंभव कहने से खोज बंद / मन-शरीर और चेतना की एक बाइप्रोडक्ट, उप-उत्पत्ति है / मन वस्तु नहीं-संबंध है / संबंध नष्ट होते हैं—पदार्थ नष्ट नहीं होता / मन को, प्रेम को प्रयोगशाला में पकड़ा नहीं जा सकता / पदार्थ का न सृजन हो सकता—न विनाश / जो चंचल है, वह थिर हो सकता है / सब शक्तियां दो विपरीत ध्रुवों में बंटी / प्रेम-घृणा, मित्रता-शत्रुता–साथ-साथ आते हैं / सिद्धांतों में विरोध हैं-सत्य में नहीं / जीवन की सभी असंगतियां गीता में हैं / कृष्ण से ज्यादा तरल आदमी खोजना कठिन है / अर्जुन के मन का निदान / मन वश में अभ्यास और वैराग्य से / अभ्यास और वैराग्य गीता के प्राण हैं / आदमी वही हो जाता है, जो अभ्यास कर लेता है / अभ्यास से रूपांतरण संभव / पूरे जीवन, दौड़ का प्रतिक्षण / संस्कारों को अभ्यास से काटा जा सकता है। चंचलता का मूल आधार-राग / थिरता का मूल आधार-वैराग्य।
वैराग्य और अभ्यास ...249
राग है-संसार की यात्रा का मार्ग / वैराग्य है-स्वयं के घर की ओर वापसी / जिसे वैराग्य नहीं, वह अभ्यास में नहीं जाएगा / राग से वितृष्णा, विकर्षण / विषाद के बाद नए राग की खोज / सुख मात्र की व्यर्थता का बोध-असामान्य घटना / बोधकथा : ययाति की जीवेषणा / अनुभव के ऊपर
आशा की विजय / शरीर को गहरे देखने पर विषयों से विराग / सोई हुई स्त्रियों को देखकर बुद्ध को जगा वैराग्य / वैराग्य : विषय से मुक्ति और स्वयं की तरफ यात्रा / हमारा राग का गहरा अभ्यास है / सबको वैराग्य आता है, लेकिन थिर नहीं हो पाता / बाहर सुख नहीं है / कामवासना का भारी अभ्यास चल रहा है / वैराग्य का भी अभ्यास करना पड़ेगा/अपना-अपना विशेष राग-काम, भोजन, यश आदि / राग के क्षण-विराग के क्षण-बराबर-बराबर / पति-पत्नी-सुख का धोखाः एक बोध संस्मरण / अतीत के दुखों की स्पष्टता- भविष्य की आशा का क्षीण होना / झेन फकीर कहते हैं : अभ्यास की जरूरत नहीं है स्वभाव को पाने के लिए / हमारा अभ्यास है-परमात्मा को खोने का / गलत आदतों के विसर्जन के लिए प्रयास जरूरी / कुछ न करने का अभ्यास करना / कृष्णमूर्ति की चुनावरहित जागरूकता : एक अभ्यासरहित अभ्यास / रूपांतरण अनिवार्य है / अनंत विधियां हैं / सभी धर्मों का आग्रह ः केवल यही मार्ग सत्य है / आग्रह-करुणावश / महावीर के सप्तभंगी वक्तव्य / किसी एक विधि में ही निष्ठा आवश्यक है / अल्लाह ईश्वर तेरे नाम के पीछे छिपी है राजनीति / अल्लाह और राम का पूरा ध्वनि शास्त्र अलग है / एक साथ दो द्वारों से प्रवेश संभव नहीं है / दो नावों में सवारी संभव नहीं / रामकृष्ण की छलांग-सगुण से निर्गुण में / काली–अंतिम बाधा / राग को अभ्यास से काटना पड़ेगा / कीर्तन की विधि।