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योगाभ्यास-गलत को काटने के लिए -
शरीर दुख की खबर देता है, तो आप गलत जी रहे हैं। ये सुख और करना पड़ेगा। और जो व्यक्ति भी इस संतुलन से चूक जाएगा, दुख मापदंड बना लेने चाहिए।
| ध्यान तो बहुत दूर की बात है, वह जीवन के साधारण सुख से भी अति श्रम कोई कर ले, तो भी नुकसान होता है। श्रम बिलकुल चूक जाएगा। ध्यान का आनंद तो बहुत दूर है, वह जीवन के न करे, तो भी नुकसान हो जाता है। फिर उम्र के साथ बदलाहट | | साधारण जो सुख मिल सकते हैं, उनसे भी वंचित रह जाएगा। होती है। बच्चे को जितना श्रम जरूरी है, बूढ़े को उतना जरूरी नहीं __ ध्यान और योग के प्रवेश के लिए एक संतुलित शरीर, अति है। बुद्धि से जो काम कर रहा है और शरीर से जो काम कर रहा है, | संतुलित शरीर चाहिए। एक ही अति माफ की जा सकती है, उनकी जरूरतें बदल जाएंगी। बुद्धि से जो काम कर रहा है, उसे | संतुलन की अति, बस। और कोई एक्सट्रीम माफ नहीं की जा ज्यादा भोजन जरूरी नहीं है। शरीर से जो काम कर रहा है, उसे सकती। अति संतुलित! बस, यह एक शब्द माफ किया जा सकता थोड़ा ज्यादा भोजन जरूरी होगा। वह ज्यादा, जो बुद्धि से काम कर | है। बाकी और कोई अति, कोई एक्सट्रीम, कोई एक्सेस माफ नहीं रहा है, उसको मालूम पड़ेगा। उसके लिए वह ठीक है। की जा सकती। अति मध्य, एक्सट्रीम मिडिल, माफ किया जा
जो शरीर से काम कर रहा है, उसे और किसी श्रम की अब सकता है, और कुछ माफ नहीं किया जा सकता। जरूरत नहीं है, कि वह शाम को जाकर टेनिस खेले। वह पागल बुद्ध ऐसा कहते थे। बुद्ध कहते थे, अति से बचो। मध्य में है। लेकिन जो बुद्धि से काम कर रहा है, उसके लिए शरीर के किसी चलो। सदा मध्य में चलो। हमेशा मध्य में रहो, बीच में। खोज लो श्रम की जरूरत है। उसे किसी खेल का, तैरने का, दौड़ने का, कुछ हर चीज का बीच बिंदु, वहीं रहो। न कुछ उपाय करना पड़ेगा।
एक दिन सारिपुत्र ने बुद्ध को कहा कि भगवन! आप इतना प्रकृति संतुलन मांगती है।
ज्यादा जोर देते हैं मध्य पर कि मुझे लगता है कि यह भी एक अति " हेनरी फोर्ड ने अपने संस्मरण में लिखवाया है कि मैं भी एक हो गई! हर चीज में मध्य, मध्य! यह तो एक अति हो गई! पागल हूं। क्योंकि जब एयरकंडीशनिंग आई, तो मैंने अपने सब बुद्ध ने कहा, एक अति माफ करता हूं। मध्य की अति, दि भवन एयरकंडीशन कर दिए। कार भी एयरकंडीशन हो गई। अपने | एक्सेस आफ बीइंग इन दि मिडिल, उसको माफ करता हूं। बाकी एयरकंडीशन भवन से निकलकर मैं अपनी पोर्च में अपनी कोई अति नहीं चलेगी। एक अति को चलाए रहना—मध्य, मध्य, एयरकंडीशन कार में बैठ जाता है। फिर तो बाद में उसने अपना मध्य-सब चीजों में मध्य। तो ध्यान में बड़ी सुगमता हो जाए। पोर्च भी एयरकंडीशन करवा लिया। कार निकलेगी. तब मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं. ध्यान में बडी कठिनाई है। आटोमेटिक दरवाजा खुल जाएगा। कार जाएगी, दरवाजा बंद हो | | ध्यान में बड़ी कठिनाई नहीं है। आप उपद्रव में हैं और आपके जाएगा। फिर इसी तरह वह अपने एयरकंडीशंड पोर्च में दफ्तर के | | उपद्रव की सारी की सारी व्यवस्था आप ही कर रहे हैं, कोई नहीं पहुंच जाएगा। फिर उतरकर एयरकंडीशंड दफ्तर में चला जाएगा। करवा रहा है! जो नहीं खाना चाहिए, वह खा रहे हैं! जो नहीं
फिर उसको तकलीफ शुरू हुई। तो डाक्टरों से उसने पूछा कि पहनना चाहिए, वह पहन रहे हैं! जैसे नहीं बैठना चाहिए, वैसे बैठ क्या करें? तो उन्होंने कहा कि आप रोज सुबह एक घंटा और रोज रहे हैं। जैसे नहीं चलना चाहिए, वैसे चल रहे हैं! जैसे नहीं सोना शाम एक घंटा काफी गरम पानी के टब में पड़े रहें।
चाहिए, वैसे सो रहे हैं। सब अव्यवस्थित किया हुआ है। फिर गरम पानी के टब में पड़े रहने से हेनरी फोर्ड ने लिखा है कि मेरा पूछते हैं एक दिन कि ध्यान में कोई गति नहीं होती है, बड़ी तकलीफ स्वास्थ्य बिलकुल ठीक हो गया। क्योंकि एक घंटे सुबह मुझे होती है। क्या मेरे पिछले जन्मों का कोई कर्म बाधा बन रहा है? पसीना-पसीना हो जाता, शाम को भी पसीना-पसीना हो जाता। ध्यान में कोई गति नहीं होती। बहुत मेहनत करता हूं, कुछ सार हाथ लेकिन तब मुझे पता चला कि मैं यह कर क्या रहा हं! दिनभर | नहीं आता है। पसीना बचाता हूं, तो फिर दो घंटे में इंटेंसली पसीने को निकालना कभी नहीं आएगा, क्योंकि मेहनत करने वाला इस स्थिति में पडता है, तब संतलन हो पाता है।
नहीं है कि भीतर प्रवेश हो सके। आपको अपनी पूरी स्थिति बदल प्रकृति पूरे वक्त संतुलन मांगेगी। तो जो लोग बहुत विश्राम में | लेनी पड़ेगी। हैं, उन्हें श्रम करना पड़ेगा। जो लोग बहुत श्रम में हैं, उन्हें विश्राम | ___ ध्यान एक महान घटना है, एक बहुत बड़ी हैपनिंग है। उसकी
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