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गीता दर्शन भाग-3
बजे उठते हैं; उस हिसाब से उनके स्कूल में भर्ती हो जाए। कई तरह | | इसलिए उपद्रव शुरू होते हैं-उपद्रव का कुल कारण इतना है कि के स्कूल गांव में होने चाहिए। सभी होटलों में एक ही समय, खाने | आपकी सब आदतें पैंतीस साल के पहले के आदमी की हैं और के समय पर लोग पहुंच जाएं, यह उचित नहीं है। सब लोगों के | उन्हीं आदतों को आप पैंतीस साल के बाद भी जारी रखना चाहते खाने का समय उनकी आंतरिक जरूरत से तय होना चाहिए। | हैं, जब कि सब जरूरतें बदल गई हैं। और इससे फायदे भी बहुत होंगे।
आप उतना ही खाते हैं, जितना पैंतीस साल के पहले खाते थे। सभी दफ्तर एक समय खोलने की कोई भी तो जरूरत नहीं है। उतना कतई नहीं खाया जा सकता। शरीर को उतने भोजन की सभी दूकानें भी एक समय खोलने की कोई जरूरत नहीं है। इसके | जरूरत नहीं है। उतना ही सोने की कोशिश करते हैं, जितना पैंतीस बड़े फायदे तो ये होंगे कि अभी हम एक ही रास्ते पर ग्यारह बजे साल के पहले सोते थे। अगर नींद नहीं आती, तो परेशान होते हैं ट्रैफिक जाम कर देते हैं; वह जाम नहीं होगा। अभी जितनी बसों कि मेरी नींद खराब हो गई। अनिद्रा आ रही है। कोई गड़बड़ हो रही की जरूरत है, उससे तीन गुनी कम बसों की जरूरत होगी। अभी है। तो ट्रैक्वेलाइजर चाहिए, कि कोई दवाई चाहिए, कि थोड़ी शराब एक मकान में एक ही दफ्तर चलता है छः घंटे और बाकी वक्त पूरा पी लूं, कि क्या करूं! लेकिन यह भूल जाते हैं कि अब आपकी मकान बेकार पड़ा रहता है। तब एक ही मकान में दिनभर में चार जरूरत बदल गई है। अब आप उतना नहीं सो सकेंगे। दफ्तर चल सकेंगे। दुनिया की चौगुनी आबादी इतनी ही व्यवस्था रोज जरूरत बदलती है, इसलिए रोज सजग होकर आदमी को में नियोजित हो सकती है, चौगुनी आबादी! अभी जितनी आबादी तय करना चाहिए, मेरे लिए सुखद क्या है। है उससे। यही रास्ता अहमदाबाद का इससे चार गुने लोगों को | | और ध्यान रखें, दुख सूचना देता है कि आप कुछ गलत कर रहे चला सकता है।
हैं। सिर्फ दुख सूचक है। और सुख सूचना देता है कि आप कुछ लेकिन गड़बड़ क्या है? ग्यारह बजे सभी दफ्तर जा रहे हैं! ठीक कर रहे हैं। समायोजित हैं, संतुलित हैं, तो भीतर एक सुख इसलिए रास्ते पर तकलीफ मालूम हो रही है। रास्ता भी परेशानी में की भावना बनी रहती है। यह सुख बहुत और तरह का सुख है। है और आप भी परेशानी में हैं. क्योंकि ग्यारह बजे सबको दफ्तर यह वह सख नहीं है, जो ज्यादा भोजन कर लेने से मिल जाता है। जाना है, तो ग्यारह बजे सबको खाना भी ले लेना है। फिर सबको ज्यादा भोजन करने से सिर्फ दुख मिल सकता है। यह वह सुख नहीं समय पर उठ भी आना है। ऐसा लगता है कि नियम के लिए है, जो रात देर तक जागकर सिनेमा देखने से मिल जाता है। ज्यादा आदमी है, आदमी के लिए नियम नहीं है।
| जागकर सिर्फ दुख ही मिल सकता है। यह सुख संतुलन का है। हम एक बच्चे को कहते हैं कि उठो, स्कूल जाने का वक्त हो ठीक समय पर अपनी जरूरत के अनुकूल भोजन; ठीक समय गया। स्कूल को कहना चाहिए कि बच्चा हमारा नहीं उठता, यह पर अपनी जरूरत के अनुकूल निद्रा; ठीक समय पर अपनी जरूरत आने का वक्त नहीं है। स्कूल थोड़ी देर से खोलो! जिस दिन हम | के अनुकूल स्नान। ठीक चर्या, सम्यक चर्या से एक आंतरिक सुख वैज्ञानिक चिंतन करेंगे, यही होगा। और उससे हानि नहीं होगी, | की भाव-दशा बनती है। अनंत गुने लाभ होंगे।
वह बहुत अलग बात है। वह सुख है बहुत और अर्थों में। वह यह जो कृष्ण कह रहे हैं, यह आप अपने-अपने, एक-एक | उत्तेजना की अवस्था नहीं है। वह सिर्फ भीतर की शांति की अवस्था व्यक्ति अपने लिए खोज ले कि उसके लिए कितनी नींद आवश्यक है। उस शांति की अवस्था में व्यक्ति ध्यान में सरलता से प्रवेश कर है। और यह भी रोज बदलता रहेगा। आज का खोजा हुआ सदा सकता है। और योग के लिए अनिवार्य है वह। काम नहीं पड़ेगा। पांच साल बाद बदल जाएगा, पांच साल बाद तो अपनी चर्या की सब तरफ से जांच-परख कर लेनी चाहिए। जरूरत बदल जाएगी।
| किसी नियम के अनुसार नहीं, अपनी जरूरत के नियम के सारी तकलीफें पैंतीस साल के बाद शुरू होती हैं आदमी के | अनुसार। किसी शास्त्र के अनुसार नहीं, अपनी स्वयं की प्रकृति के शरीर में बीमारियां, तकलीफें, परेशानियां। अगर साधारण | अनुसार। और दुनिया में कोई कुछ भी कहे, उसकी फिक्र नहीं स्वस्थ आदमी है, तो पैंतीस साल के बाद उपद्रव शुरू होते हैं। और करना चाहिए। एक ही बात की फिक्र करनी चाहिए कि आपका उपद्रव का कुल कारण इतना है-यह नहीं कि आप बूढ़े हो रहे हैं, शरीर सुख की खबर देता है, तो आप ठीक जी रहे हैं। और आपका
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