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-योगाभ्यास-गलत को काटने के लिए
एक बच्चे पर नहीं, ऐसा सैकड़ों बच्चों पर प्रयोग करके उसने हम संख्या गिन लें और सारे आदमियों के नींद के घंटे गिनकर नतीजे लिए हैं। और उस बच्चे को उस समय जिस भोजन की | उसमें भाग दे दें, तो सात आता है; यह एवरेज है। एवरेज से ज्यादा जरूरत है, वह उसको चुन लेगा, उस टेबल पर। इसको वह कहता असत्य कोई चीज नहीं होती। है, यह इंस्टिक्टिव है; यह बच्चे की प्रकृति का ही हिस्सा है। जैसे अहमदाबाद में एवरेज हाइट क्या है आदमियों की? ऊंचाई
यह प्रत्येक पशु की प्रकृति का हिस्सा है। सिर्फ आदमी ने अपनी | क्या है औसत? तो सब आदमियों की ऊंचाई नाप लें। उसमें छोटे प्रकृति को विकृत किया हुआ है। संस्कृति के नाम पर विकृति ही बच्चे भी होंगे, जवान भी होंगे, बूढ़े भी होंगे, स्त्रियां भी होंगी, पुरुष हाथ लगती है। प्रकृति भी खो जाती मालूम पड़ती है। कोई जानवर | भी होंगे। सबकी ऊंचाई नापकर, फिर सबकी संख्या का भाग दे दें। गलत भोजन करने को राजी नहीं होता, जब तक कि आदमी उसको | | तो जो ऊंचाई आएगी, उस ऊंचाई का शायद ही एकाध आदमी मजबूर न कर दे। जो उसका भोजन है, वह वही भोजन करता है। अहमदाबाद में खोजने से मिले—उस ऊंचाई का! वह औसत ऊंचाई
और बड़े मजे की बात है कि कोई भी जानवर अगर जरा ही | है। उस ऊंचाई का आदमी खोजने आप मत जाना। वह नहीं मिलेगा। बीमार हो जाए, तो भोजन बंद कर देता है। बल्कि अधिक जानवर | ___ सब नियम औसत से निर्मित होते हैं। औसत कामचलाऊ है, जैसे ही बीमार हो जाएं, भोजन ही बंद नहीं करते, बल्कि सब | सत्य नहीं है। किसी को पांच घंटे सोना जरूरी है। किसी को छ: जानवरों की अपनी व्यवस्था है, वॉमिट करने की। वह जो पेट में घंटे, किसी को सात घंटे। कोई दूसरा आदमी तय नहीं कर सकता भोजन है, उसे भी बाहर फेंक देते हैं। अगर आपके कुत्ते को जरा | | कि कितना जरूरी है। आपको ही अपना तय करना पड़ता है। प्रयोग पेट में तकलीफ मालूम हुई, वह जाकर घास चबा लेगा और उल्टी से ही तय करना पड़ता है। और कठिन नहीं है। करके सारे पेट को खाली कर लेगा। और तब तक भोजन न लेगा, अगर आप ईमानदारी से प्रयोग करें, तो आप तय कर लेंगे, जंब तक पेट वापस सुव्यवस्थित न हो जाए।
आपको कितनी नींद जरूरी है। जितनी नींद के बाद आपको पुनः नींद सिर्फ आदमी एक ऐसा जानवर है, जो प्रकृति की कोई आवाज | का खयाल न आता हो, और जितनी नींद के बाद आलस्य न पकड़ता नहीं सुनता। लेकिन हम बचपन से बिगाड़ना शुरू करते हैं। | हो, ताजगी आ जाती हो, वह बिंदु आपकी नींद का बिंदु है। इसलिए इस चिकित्सक का कहना है कि सब बच्चे इंस्टिक्टिवली समय भी तय नहीं किया जा सकता कि छः बजे शाम सो जाएं, जो ठीक है, वही करते हैं। लेकिन बड़े उन्हें बिगाड़ने में इस बुरी | कि आठ बजे, कि बारह बजे रात; कि सुबह छः बजे उठे, कि चार तरह से लगे रहते हैं कि जिसका कोई हिसाब नहीं है! जब उन्हें भूख बजे, कि सात बजे! वह भी तय नहीं किया जा सकता। वह भी नहीं है. तब उनको मां दध पिलाए जा रही है। जब उनको भख लगी प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की आंतरिक जरूरत भिन्न है। और उस है, तब मां श्रृंगार में लगी है; उनको दूध नहीं पिला सकती! सब | भिन्न जरूरत के अनुसार प्रत्येक को अपना तय करना चाहिए। अस्तव्यस्त
लेकिन हमारी व्यवस्था गड़बड़ है। हमारी व्यवस्था ऐसी है कि इसलिए भी हमारा भोजन, हमारी निद्रा, हमारा जागरण, हमारे | सबको एक वक्त पर भोजन करना है। सबको एक वक्त पर दफ्तर जीवन की सारी चर्या अतियों में डोल जाती है, समन्वय को खो | | जाना है। सबको एक समय स्कूल पहुंचना है। सबको एक समय देती है।
घर लौटना है। हमारी पूरी की पूरी व्यवस्था व्यक्तियों को ध्यान में दूसरी बात, प्रत्येक व्यक्ति की जरूरत अलग है। उम्र की ही | रखकर नहीं है। हमारी पूरी व्यवस्था नियमों को ध्यान में रखकर है। नहीं, एक ही उम्र के दस बच्चों की जरूरत भी अलग है। एक ही हालांकि इससे कोई फायदा नहीं होता, भयंकर नुकसान होता है। उम्र के दस वृद्धों की भी जरूरत अलग है। एक ही उम्र के दस | और अगर हम फायदे और नुकसान का हिसाब लगाएं, तो नुकसान युवाओं की भी जरूरत अलग है। जो भी नियम बनाए जाते हैं, वे | | भारी होता है। एवरेज पर बनते हैं-जो भी नियम बनाए जाते हैं। ते हैं जो भी नियम बनाए जाते हैं।
अभी अमेरिका के एक विचारक बक मिलर ने एक बहत कीमती जैसे कि कहा जाता है कि हर आदमी को कम से कम सात घंटे | | सुझाव दिया है जीवनभर के विचार और अनुसंधान के बाद। और की नींद जरूरी है। लेकिन किस आदमी को? यह किसी आदमी के | | वह यह है कि सभी स्कूल एक समय नहीं खुलने चाहिए। यह तो लिए नहीं कहा गया है। यह सारी दुनिया के आदमियों की अगर | स्कूल में भर्ती होने वाले बच्चों पर निर्भर करना चाहिए कि वे कितने
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