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________________ < गीता दर्शन भाग-3> बहुत ज्ञान दिखला रहा है बेटे को, तब उसे पता नहीं कि बेटे की होता। अब शरीर विसर्जित होने की तैयारी कर रहा है। नींद की कोई और उसकी उम्र में कितना फासला है! बेटे को ज्यादा नींद की जरूरत नहीं है। नींद निर्माणकारी तत्व है। उसकी जरूरत तभी तक जरूरत है। है, जब तक शरीर में कुछ नया बनता है। जब शरीर में सब नया मां के पेट में बच्चा नौ महीने तक चौबीस घंटे सोता है; जरा भी बनना बंद हो गया, तो बूढ़े आदमी को ठीक से कहें तो नींद नहीं नहीं जगता। क्योंकि शरीर निर्मित हो रहा होता है, बच्चे का जगना आती; वह सिर्फ विश्राम करता है; वह थकान है। बच्चे ही सोते हैं खतरनाक है। बच्चे को चौबीस घंटे निद्रा रहती है। इतना प्रकृति | । ठीक से; बूढ़े तो सिर्फ थककर विश्राम करते हैं। क्योंकि अब मौत भीतर काम कर रही है कि बच्चे की चेतना उसमें बाधा बन जाएगी: करीब आ रही है। अब शरीर को कोई नया निर्माण नहीं करना है। उसे बिलकुल बेहोश रखती है। डाक्टरों ने तो बहुत बाद में आपरेशन | | लेकिन दुनिया के सभी शिक्षक–स्वभावतः, बूढ़े आदमी करने के लिए बेहोशी, अनेस्थेसिया खोजा; प्रकृति सदा से | | शिक्षक होते हैं वे खबरें दे जाते हैं, चार बजे उठो, तीन बजे उठो। अनेस्थेसिया का प्रयोग कर रही है। जब भी कोई बड़ा आपरेशन चल | कठिनाई खड़ी होती है। बूढ़े शिक्षक होते हैं; बच्चों को मानकर रहा है, कोई बड़ी घटना घट रही है, तब प्रकृति बेहोश रखती है। । चलना पड़ता है। अनुपात टूट जाते हैं। चौबीस घंटे बच्चा सोया रहता है। मांस बन रहा है, मज्जा बन | | भोजन के संबंध में भी वैसा ही होता है। बचपन से ही. बच्चों को रही है, तंतु बन रहे हैं। उसका चेतन होना बाधा डाल सकता है। | कितना भोजन चाहिए, यह बच्चे की प्रकृति को हम तय नहीं करने फिर बच्चा पैदा होने के बाद तेईस घंटे सोता है, बाईस घंटे सोता | | देते। यह मां अपने आग्रह से निर्णय लेती है कि कितना भोजन। बच्चे है, बीस घंटे सोता है, अठारह घंटे सोता है। उम्र जैसे-जैसे बड़ी अक्सर इनकार करते देखे जाते हैं घर-घर में कि नहीं खाना है। और होती है, नींद कम होती चली जाती है। मां-बाप मोहवश ज्यादा खिलाने की कोशिश में संलग्न हैं! और एक इसलिए बूढ़े कभी भूलकर बच्चों को अपनी नींद से शिक्षा न दें। | बार प्रकृति ने संतुलन छोड़ दिया, तो विपरीत अति पर जा सकती है, अन्यथा उनको नुकसान पहुंचाएंगे, उनके अनुपात को तोड़ेंगे। लेकिन संतुलन पर लौटना मुश्किल हो जाता है। लेकिन बूढ़ों को शिक्षा देने का शौक होता है। बुढ़ापे का खास शौक | हम सब बच्चों की सोने की, खाने की सारी आदतें नष्ट करते शिक्षा देना है, बिना इस बात की समझ के। हैं। और फिर जिंदगीभर परेशान रहते हैं। वह जिंदगीभर के लिए इसलिए हम बच्चों के अनुपात को पहले से ही बिगाड़ना शुरू | | परेशानी हो जाती है। कर देते हैं। और अनुपात जब बिगड़ता है, तो खतरा क्या है? इजरायल में एक चिकित्सक ने एक बहुत अनूठा प्रयोग किया अगर आपने बच्चे को कम सोने दिया, जबर्दस्ती उठा लिया, तो | | है। प्रयोग यह है, हैरान करने वाला प्रयोग है। उसे यह खयाल इसकी प्रतिक्रिया में वह किसी दिन ज्यादा सोने का बदला लेगा। और पकड़ा बच्चों का इलाज करते-करते कि बच्चों की आ तब उसके सब अनपात असंतलित हो जाएंगे। अगर आप जीते. तो बीमारियां मां-बाप की भोजन खिलाने की आग्रहपर्ण वत्ति से पैदा वह कम सोने वाला बन जाएगा। और अगर खुद जीत गया, तो | | होती हैं। बच्चों का चिकित्सक है, तो उसने कुछ बच्चों पर प्रयोग ज्यादा सोने वाला बन जाएगा। लेकिन अनुपात खो जाएगा। | करना शुरू किया। और सिर्फ भोजन रख दिया टेबल पर सब तरह अगर मां-बाप बलशाली हुए, पुराने ढांचे और ढर्रे के हुए, तो | का और बच्चों को छोड़ दिया। उन्हें जो खाना है, वे खा लें। नहीं उसकी नींद को कम करवा देंगे। और अगर बच्चा नए ढंग का, नई | खाना है, न खाएं। जितना खाना है, खा लें। नहीं खाना है, पीढ़ी का हुआ, उपद्रवी हुआ, बगावती हुआ, तो ज्यादा सोना शुरू | | बिलकुल न खाएं। फेंकना है, फेंक दें। खेलना है, खेल लें। जो कर देगा। लेकिन एक बात पक्की है कि दो में से कोई भी जीते, | करना है! और विदा हो जाएं। प्रकृति हार जाएगी; और वह जो बीच का अनुपात है, वह सदा के वह इस प्रयोग से एक अजीब निष्कर्ष पर पहुंचा। वह निष्कर्ष लिए अस्तव्यस्त हो जाएगा। | यह था कि बच्चे को अगर कोई खास बीमारी है, तो उस बीमारी में बूढ़े आदमी को जब मौत करीब आने लगती है, तो तीन-चार | जो भोजन नहीं किया जा सकता, वह बच्चा छोड़ देगा टेबल पर, घंटे से ज्यादा की नींद की कोई जरूरत नहीं रहती। उसका कारण है | | चाहे कितना ही स्वादिष्ट उसे बनाया गया हो। उस बीमारी में उस कि शरीर में अब कोई निर्माण नहीं होता, शरीर अब निर्मित नहीं| बच्चे को जो भोजन नहीं करना चाहिए, वह नहीं ही करेगा। और 122
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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