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-योगाभ्यास-गलत को काटने के लिए
भी रुग्ण है, तो चेतना का अंतर्गमन कठिन हो जाएगा। चेतना उस से कम भोजन किया, तो भी भूख की खबर पेट देता रहेगा कि और, रुग्ण हिस्से पर अटक जाएगी।
और; और जरूरत है। और अगर ज्यादा ले लिया, तो पेट कहेगा, __ अगर ठीक से समझें, तो हम ऐसा कह सकते हैं कि स्वास्थ्य का | | ज्यादा ले लिया; इतने की जरूरत न थी। और पेट पीड़ा का स्थल अर्थ ही यही होता है कि आपकी चेतना को शरीर में कहीं भी बन जाएगा। और तब आपकी चेतना पेट से अटक जाएगी। गहरे अटकने की जरूरत न हो।
नहीं जा सकेगी। आपको सिर का तभी पता चलता है, जब सिर में भार हो, पीड़ा कृष्ण कहते हैं, भोजन ऐसा कि न कम, न ज्यादा। हो, दर्द हो। अन्यथा पता नहीं चलता। आप बिना सिर के जीते हैं, तो एक ऐसा बिंदु है भोजन का, जहां न कम है, न ज्यादा है। जब तक दर्द न हो। अगर ठीक से समझें, तो हेडेक ही हेड है। | जिस दिन आप उस अनुपात में भोजन करना सीख जाएंगे, उस दिन उसके बिना आपको पता नहीं चलता सिर का। सिरदर्द हो, तो ही पेट को चेतना मांगने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। उस दिन चेतना पता चलता है। पेट में तकलीफ हो, तो पेट का पता चलता है। हाथ कहीं भी यात्रा कर सकती है। में पीड़ा हो, तो हाथ का पता चलता है।
अगर आप कम सोए, तो शरीर का रो-रोआं, अणु-अणु ___ अगर आपका शरीर पूर्ण स्वस्थ है, तो आपको शरीर का पता | पुकार करता रहेगा कि विश्राम नहीं मिला, थकान हो गई है। शरीर नहीं चलता; आप विदेह हो जाते हैं। आपको देह का स्मरण रखने | | का अणु-अणु आपसे पूरे दिन कहता रहेगा कि सो जाओ, सो की जरूरत नहीं रह जाती। जरूरत ही स्मरण रखने की तब पड़ती जाओ; थकान मालूम होती हैं; जम्हाई आती रहेगी। चेतना आपकी है, जब देह किसी आपातकालीन व्यवस्था से गुजर रही हो, | शरीर के विश्राम के लिए आतुर रहेगी। तकलीफ में पड़ी हो, तो फिर ध्यान रखना पड़ता है। और उस समय | ___ अगर आप ज्यादा सोने की आदत बना लिए हैं, तो शरीर जरूरत सारे शरीर का ध्यान छोड़कर, आत्मा का ध्यान छोड़कर उस से ज्यादा अगर सो जाए या जरूरत से ज्यादा उसे सुला दिया जाए, छोटे-से अंग पर सारी चेतना दौड़ने लगती है, जहां पीड़ा है! तो सुस्त हो जाएगा; आलस्य से, प्रमाद से भर जाएगा। और चेतना
कृष्ण का यह समत्व-योग शरीर के संबंध में यह सूचना आपको दिनभर उसके प्रमाद से पीड़ित रहेगी। नींद का भी एक अनुपात है, देता है। अर्जुन को कृष्ण कहते हैं कि यदि ज्यादा आहार लिया, तो | गणित है। और उतनी ही नींद, जहां न तो शरीर कहे कि कम सोए, भी योग में प्रवेश न हो सकेगा। क्योंकि ज्यादा आहार लेते ही सारी | न शरीर कहे ज्यादा सोए, ध्यानी के लिए सहयोगी है। चेतना पेट की तरफ दौड़नी शुरू हो जाती है।
इसलिए कृष्ण एक बहुत वैज्ञानिक तथ्य की बात कर रहे हैं। इसलिए आपको खयाल होगा, भोजन के बाद नींद मालूम होने सानुपात व्यक्तित्व चाहिए, अनुपातहीन नहीं। अनुपातहीन व्यक्तित्व लगती है। नींद का और कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है। नींद का अराजक, केआटिक हो जाएगा। उसके भीतर की जो लयबद्धता है, वैज्ञानिक कारण यही है कि जैसे ही आपने भोजन लिया. चेतना पेट वह विशंखल हो जाएगी. टट जाएगी। और टटी हई विश्रंखल की तरफ प्रवाहित हो जाती है। और मस्तिष्क चेतना से खाली होने | | स्थिति में, ध्यान में प्रवेश आसान नहीं होगा। आपने अपने ही हाथ लगता है। इसलिए मस्तिष्क धुंधला, निद्रित, तंद्रा से भरने लगता | से उपद्रव पैदा कर लिए हैं और उन उपद्रवों के कारण आप भीतर है। ज्यादा भोजन ले लिया, तो ज्यादा नींद मालूम होने लगेगी, न जा सकेंगे। और हम सब ऐसे उपद्रव पैदा करते हैं, अनेक कारणों क्योंकि पेट को इतनी चेतना की जरूरत है कि अब मस्तिष्क काम | से; वे कारण खयाल में ले लेने चाहिए। नहीं कर सकता। इसलिए भोजन के बाद मस्तिष्क का कोई काम | - पहला तो इसलिए उपद्रव पैदा हो जाता है कि हम इस सत्य को करना कठिन है। और अगर आप जबर्दस्ती करें, तो पेट को पचने | | अब तक भी ठीक से नहीं समझ पाए हैं कि अनुपात प्रत्येक व्यक्ति में तकलीफ पड़ जाएगी, क्योंकि उतनी चेतना जितनी पचाने के लिए के लिए भिन्न होगा। इसलिए हो सकता है कि पिता की नींद खुल जरूरी है, पेट को उपलब्ध नहीं होगी।
जाती है चार बजे, तो घर के सारे बच्चों को उठा दे कि ब्रह्ममुहूर्त तो अगर अति भोजन किया, तो चेतना पेट की तरफ जाएगी; हो गया, उठो। नहीं उठते हो, तो आलसी हो। और अगर कम भोजन किया या भूखे रहे, तो भी चेतना पेट की लेकिन पिता को पता होना चाहिए, उम्र बढ़ते-बढ़ते नींद की तरफ जाएगी। दो स्थितियों में चेतना पेट की तरफ दौड़ेगी। जरूरत जरूरत शरीर के लिए रोज कम होती चली जाती है। तो बाप जब
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