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गीता दर्शन भाग-3
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः। पुरुष का अर्थ है, एक बहुत बड़ी पुरी के बीच रहते हैं आप, एक न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन । । १६ ।। बहुत बड़े नगर के बीच। आप खुद एक बड़े नगर हैं, एक बड़ा पुर। - युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु । उसके बीच आप जो हैं, उसको पुरुष कहा है। इसीलिए कहा है युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा । । १७ ।। पुरुष कि आप छोटी-मोटी घटना नहीं हैं; एक महानगरी आपके परंतु हे अर्जुन, यह योग न तो बहुत खाने वाले का सिद्ध भीतर जी रही है। होता है और न बिलकुल न खाने वाले का तथा न अति | एक छोटे-से मस्तिष्क में कोई तीन अरब स्नायु तंतु हैं। एक शयन करने के स्वभाव वाले का और न अत्यंत जागने वाले छोटा-सा जीवकोश भी कोई सरल घटना नहीं है: अति जटिल का ही सिद्ध होता है।
घटना है। ये जो सात करोड़ जीवकोश शरीर में हैं, उनमें एक यह दुखों का नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार जीवकोश भी अति कठिन घटना है। अभी तक वैज्ञानिक-अभी
और विहार करने वाले का तथा कर्मों में यथायोग्य चेष्टा तक-उसे समझने में समर्थ नहीं थे। अब जाकर उसकी मौलिक करने वाले का और यथायोग्य शयन करने तथा जागने वाले रचना को समझने में समर्थ हो पाए हैं। अब जाकर पता चला है कि का ही सिद्ध होता है।
उस छोटे से जीवकोश, जिसके सात करोड़ संबंधियों से आप निर्मित होते हैं, उसकी रासायनिक प्रक्रिया क्या है।
यह सारा का सारा जो इतना बड़ा व्यवस्था का जाल है आपका, 1 मत्व-योग की और एक दिशा का विवेचन कृष्ण करते इस व्यवस्था में एक संगीत, एक लयबद्धता, एकतानता, एक हार्मनी रा हैं। कहते हैं वे, अति–चाहे निद्रा में, चाहे भोजन में, | अगर न हो, तो आप भीतर प्रवेश न कर पाएंगे। अगर यह पूरा का
चाहे जागरण में समता लाने में बाधा है। किसी भी | पूरा आपका जो पुर है, आपकी जो महानगरी है शरीर की, मन की, बात की अति, व्यक्तित्व को असंतुलित कर जाती है, अनबैलेंस्ड | | अगर यह अव्यवस्थित, केआटिक, अराजक है, अगर यह पूरी की कर जाती है।
पूरी नगरी विक्षिप्त है, तो आप भीतर प्रवेश न कर पाएंगे। प्रत्येक वस्तु का एक अनुपात है; उस अनुपात से कम या ज्यादा आपके भीतर प्रवेश के लिए जरूरी है कि यह पूरा नगर हो, तो व्यक्ति को नुकसान पहुंचने शुरू हो जाते हैं। दो-तीन बातें संगीतबद्ध, लयबद्ध, शांत, मौन, प्रफुल्लित, आनंदित हो, तो . खयाल में ले लेनी चाहिए।
आप इसमें भीतर आसानी से प्रवेश कर पाएंगे। अन्यथा बहुत एक, आधारभूत। व्यक्ति एक बहुत जटिल व्यवस्था है, बहुत छोटी-सी चीज आपको बाहर अटका देगी-बहुत छोटी-सी कांप्लेक्स युनिटी है। व्यक्ति का व्यक्तित्व कितना जटिल है, चीज। और अटका देती है इसलिए भी कि चेतना का स्वभाव ही इसका हमें खयाल भी नहीं होता। इसीलिए प्रकृति खयाल भी नहीं यही है कि वह आपके शरीर में कहां कोई दुर्घटना हो रही है, उसकी देती, क्योंकि उतनी जटिलता को जानकर जीना कठिन हो जाएगा। खबर देती रहे।
एक छोटा-सा व्यक्ति उतना ही जटिल है, जितना यह पूरा - तो अगर आपके शरीर में कहीं भी कोई दुर्घटना हो रही है, तो ब्रह्मांड। उसकी जटिलता में कोई कमी नहीं है। और एक लिहाज चेतना उस दुर्घटना में उलझी रहेगी। वह इमरजेंसी, तात्कालिक से ब्रह्मांड से भी ज्यादा जटिल हो जाता है, क्योंकि विस्तार बहुत | | जरूरत है उसकी, आपातकालीन जरूरत है कि सारे शरीर को भूल कम है व्यक्ति का और जटिलता ब्रह्मांड जैसी है। एक साधारण से | जाएगी और जहां पीड़ा है, अराजकता है, लय टूट गई है, वहां शरीर में सात करोड़ जीवाणु हैं। आप एक बड़ी बस्ती हैं, जितनी ध्यान अटक जाएगा। बड़ी कोई बस्ती पृथ्वी पर नहीं है। टोकियो की आबादी एक करोड़ | छोटा-सा कांटा पैर में गड़ गया, तो सारी चेतना कांटे की तरफ है। अगर टोकियो सात गुना हो जाए, तो जितने मनुष्य टोकियो में दौड़ने लगती है। छोटा-सा कांटा! बड़ी ताकत उसकी नहीं है, होंगे, उतने जीवकोश एक-एक व्यक्ति में हैं।
| लेकिन उस छोटे-से कांटे की बहुत छोटी-सी नोक भी आपके ___ सात करोड़ जीवकोशों की एक बड़ी बस्ती हैं आप। इसीलिए भीतर सैकड़ों जीवकोशों को पीड़ा में डाल देती है और तब चेतना सांख्य ने, योग ने आपको जो नाम दिया है, वह दिया है, पुरुष। उस तरफ दौड़ने लगती है। शरीर का कोई भी हिस्सा अगर जरा-सा
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