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गीता दर्शन भाग-3
मुझसे पूछा, मैंने रास्ता बताया और तू शांत नहीं हो पाया! क्योंकि | पकड़े खड़ा हूं कि जब मुझे ठीक विधि मिल जाए, तो इसकी जगह गोल्ड मेडल जिसे लाना है, वह अशांति का तो सब आरोपण किए | इसको पहुंचाकर अपने घर जाऊ! चला जा रहा है; अशांति का कारण थोपता चला जा रहा है। मेरा ___ वह आदमी ठीक कहता मालूम पड़ता है। वह कहता है कि मैं अहंकार दूसरों के अहंकार के सामने स्वर्ण-मंडित दिखाई पड़े। मैं | | इसीलिए पकड़े खड़ा हूं कि कहीं शाखा भटक न जाए इधर-उधर। सबके आगे खड़ा हो जाऊं। यही तो अशांति की जड़ है। और तू तो जब मुझे कोई ठीक विधि बताने वाला आदमी मिल जाएगा, कोई शांत होना चाहता है इसीलिए, ताकि सबके पहले खड़ा हो जाए! | सदगुरु, तो मैं इसे इसकी जगह पहुंचाकर अपने घर चला जाऊंगा! तू उलटी बातें कर रहा है। अगर तुझे शांत होना है, तो पहले तो तू | कपा करें. उससे कहें कि त हाथ छोड दे इस शाखा का. यह यह समझ, अशांत तू कब से हुआ है!
अपनी जगह पहुंच जाएगी। यह तेरी वजह से परेशानी में है और उसने कहा कि आप ठीक ही कहते हैं, जब से यह गोल्ड मेडल अटकी है। तू छोड़! यह अपने आप चली जाएगी। मेरे दिमाग में चढ़ा है, तभी से मैं अशांत हूं। पहले मैं ऐसा अशांत आपने कभी देखा है, शाखा जब छोड़ दें आप हाथ से, तो नहीं था। पिछले वर्ष बड़ी मुश्किल हो गई कि मैं फर्स्ट क्लास आ | एकदम अपनी जगह पर नहीं चली जाती। कई बार डोलती है। पहले . गया। उसके पहले तो मैं कभी फर्स्ट क्लास आया नहीं था। गोल्ड | लंबा डोल लेती है, फिर छोटा, फिर और छोटा, फिर और छोटा, मेडल कभी मेरे सिर ने न पकड़ा था। पिछले साल गड़बड़ हो गई। | फिर और छोटा। फिर कंपती रहती है। फिर कंपते-कंपते शांत हो तब से मैं बिलकुल अशांत हूं। न नींद है, न चैन है। गोल्ड मेडल | जाती है। क्यों? क्योंकि आपने खींचकर उसके साथ जो कशमकश दिखाई पड़ता है। वह नहीं आया, तो क्या होगा! कोई शांति की | की, और आपने जो इतनी शक्ति खींचकर लगाई, उसको उसे तरकीब बता दें कि मैं शांत हो जाऊं, तो यह गोल्ड मेडल-कम | | फेंकना पड़ता है, थ्रोइंग आउट। उस शक्ति को वह बाहर फेंकती से कम इस सालभर शांत रह जाऊं, बस!
है, छिड़कती है। नहीं तो वह अपनी जगह नहीं पहुंच पाएगी, जब ___ अब यह आदमी जो पूछ रहा है, यह हम सब का यही पूछना | तक आपके हाथ से दी गई शक्ति को फेंक न दे। उसे फेंकने के है। हम शांत इसीलिए होना चाहते हैं, ताकि अशांति की बगिया को लिए वह कंपती है, डोलती है, उसे बाहर निकालती है, फिर अपनी ठीक से पल्लवित कर सकें। बहुत मजेदार है आदमी का मन। तो जगह वापस पहुंच जाती है। फिर शांति झूठी ही होगी। फिर ऊपर से छिड़कने वाली शांति होगी। ठीक ऐसे ही चित्त अशांति के कारणों से अटका है। आप कहते भीतर तो कुछ होने वाला नहीं है।
हैं, शांत कैसे हो जाएं ? तो गलत पूछते हैं। आप इतना ही पूछे कि इसलिए कृष्ण जब कहते हैं, ठीक रूप से शांत हो गया मन अशांत कैसे हो गए? और कृपा करके जहां-जहां अशांति दिखाई जिसका, तो वे कहते हैं कि जिसने अशांत होने के कारण छोड़ | पड़े, उस-उस कारण को छोड़ दें। चित्त अपने आप थोड़ा कंपेगा, दिए हैं।
डोलेगा। कम डोलेगा, कम डोलेगा, वापस अपनी जगह शांत हो और अशांत होने के कारण आपने छोड़े कि मन ऐसे ही शांत हो जाएगा। और जब चित्त सब अशांति के कारणों से छूटकर अपनी जाता है. जैसे कोई वक्ष की शाखा को खींचकर खड़ा हो जाए हाथ जगह पहुंच जाता है, तो अपनी जगह पहुंच गए चित्त का नाम ही से, और रास्ते से आप गुजरें और आपसे पूछे कि मुझे इस वृक्ष की | शांति है। स्व-स्थान पर पहुंच गया चित्त शांति है। शाखा को इसकी जगह वापस पहुंचाना है, क्या करूं? तो आप कहां-कहां आपने अटकाया है चित्त को, वहां-वहां से हटा दें। कहें कि कृपा करके वृक्ष की शाखा को उसकी जगह पहुंचाने का हटा दें, अर्थात न अटकाएं, बस। हटाने के लिए कुछ और आपको आप कोई इंतजाम न करें, सिर्फ इसे पकड़कर मत खड़े रहें, इसे अलग से करने की जरूरत नहीं है, सिर्फ न अटकाएं। व्यक्तियों से छोड़ दें। यह अपने से अपनी जगह पहुंच जाएगी। वृक्ष काफी समर्थ अटकाया है, वस्तुओं से अटकाया है, अहंकार से बांधा है, यश, है। आप कृपा करके इसे छोड़ें। आप पहुंचाने का कोई उपाय न सम्मान–किससे बांधा है? कहां से अशांति पकड़ रही है? उसे करें। वृक्ष को आपकी सहायता की कोई भी जरूरत नहीं है। आप वहां से हट जाने दें। चित्त शांत हो जाएगा। और तब कृष्ण जो कहते सिर्फ छोड़ें। लेकिन वह आदमी कहे कि अगर मैं छोड़ दूं और यह | हैं, वह समझ में आएगा-ठीक रूप से शांत हुआ चित्त। अपना जगह न पहुच पाए, तो बड़ी कठिनाई होगी। मैं इसीलिए ठीक रूप से शांत हुआ चित्त वह है, जिसके भीतर अशांति के
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