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< अपरिग्रही चित्त >
कोई कारण न रहे—तब। अन्यथा आप जो भी करेंगे, वह सब गैर-ठीक रूप से हुई शांति होगी। और उस शांति से कोई द्वार समाधि का नहीं खुलता। वह अंतर-गुहा के द्वार ठीक शांति से ही गुजरते हैं।
ये दो बातें खयाल में रखेंगे, तो अंतर-गुहा के पास पहुंचने में निरंतर आसानी होती चली जाती है।
एक पांच मिनट और रुकेंगे। संन्यासी कीर्तन करेंगे, उसमें साथ दें। शब्द सुने, बुद्धि की थोड़ी बात की। अब थोड़ी अबुद्धि की, बुद्धिहीन थोड़ी बात कर लें।