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< अपरिग्रही चित्त -
झूठी शांति हो सकती है—सुझाव से, सम्मोहन से। और | में नहीं ले जाने वाली है। फिर ठीक ढंग की शांति का अर्थ हुआ, सम्मोहन की हजार तरह की विधियां दुनिया में प्रचलित हैं, जिनसे | | जो व्यक्ति अपने भीतर के अशांति के कारणों को समझता है। आदमी अपने को मान ले सकता है कि मैं शांत हूं। और भी रास्ते | ___ ध्यान रहे, ठीक ढंग की शांति शांति लाने से आती ही नहीं। ठीक हैं। और भी रास्ते हैं, जिनसे आदमी अपने को शांत करने के | ढंग की शांति अशांति के कारणों को समझकर, अशांति को निमंत्रण खयाल में डाल सकता है। लेकिन उन रास्तों से शांत हुआ आदमी | देने के हमने जो इंतजाम किए हैं, उनको समझकर आती है। भीतर नहीं जा सकेगा। जबर्दस्ती भी अपने को शांत कर सकते हैं। आप अशांत क्यों हैं, इसे समझें। यही बुनियादी बात है। शांत जबर्दस्ती भी अपने को शांत कर सकते हैं! अगर अपने से लड़े ही कैसे हों, इसे मत समझें। यह बुनियादी बात नहीं है। अशांत क्यों चले जाएं, और जबर्दस्ती अपने ऊपर किए चले जाएं सब तरह की, | तो अपने को शांत कर सकते हैं।
___ अशांति के कारण दिखाई पड़ेंगे; हैं ही। हम ही अपने को अशांत लेकिन वह शांति होगी बस, जबर्दस्ती की शांति। भीतर उबलता | | करते हैं। कारण हैं भीतर हमारे। अशांति के कारणों को समझें। और हुआ तूफान होगा। भीतर जलती हुई आग होगी। ठीक ज्वालामुखी | | जब अशांति के कारण बहुत स्पष्ट दिखाई पड़ेंगे, तो आपके हाथ भीतर उबलता रहेगा और ऊपर सब शांत मालूम पड़ेगा। | में है। अब आप अशांत होना चाहें, तो मजे से हों, कुशलता से हों,
ऐसे शांत बहुत लोग हैं, जो ऊपर से शांत दिखाई पड़ते हैं। ढंग से हों, पूरी व्यवस्था से हों; न होना चाहें, तो कोई दूसरा लेकिन इनके भीतर बहुत ज्वालामुखी है, उबलते रहते हैं। हां, ऊपर आपको कह नहीं रहा है कि आप अशांत हों। से उन्होंने एक व्यवस्था कर ली है। जबर्दस्ती की एक डिसिप्लिन, | अशांति के कारण हैं। लेकिन हम ऐसे लोग हैं कि एक तरफ एक आउटर डिसिप्लिन, एक बाह्य अनुशासन अपने ऊपर थोप | | शांत होने की व्यवस्था करते हैं, दूसरी तरफ अशांति के बीजों को लिया है। ठीक समय पर सोकर उठते हैं। ठीक भोजन लेते हैं। ठीक पानी डालते चले जाते हैं! बात जो बोलनी चाहिए, बोलते हैं। ठीक शब्द जो पढ़ने चाहिए, अब एक आदमी कहता है कि मझे शांत होना है. लेकिन पढ़ते हैं। ठीक समय सो जाते हैं। यंत्रवत घूमते हैं। गलत का प्रभाव | अहंकार का पोषण किए चला जाता है। अब उसको कोई कहे कि न पड़ जाए, उससे बचते हैं। जिस प्रभाव में उनको जीना है, शांति वह शांत होगा कैसे! एक तरफ कहता है, शांत होना है, दूसरी तरफ में जीना है, उसका धुआं अपने चारों तरफ पैदा रखते हैं। तो फिर परिग्रह के लिए पागल हुआ चला जाता है कि एक चीज और बढ़ एक-एक सतह ऊपर की पर्त शांत दिखाई पड़ने लगती है और | जाए घर में तो स्वर्ग उतर आएगा। अब वह एक तरफ शांत होना भीतर सब अशांत बना रहता है।
चाहता है। शायद वह इसीलिए शांत होना चाहता है कि जो फर्नीचर कृष्ण कहते हैं सशर्त बात, ठीक रूप से हो गया है मन शांत | अभी नहीं उपलब्ध कर पाता है, शायद शांत होकर उपलब्ध कर जिसका।
ले। जो दुकान अभी ठीक से नहीं चलती, शायद शांत होने से ठीक किसका होता है ठीक रूप से फिर शांत मन ? ठीक रूप से शांत चलने लगे। शांत भी वह इसीलिए शायद होना चाहता है कि उसका होता है. जो शांति की चेष्टा ही नहीं करता. वरन ठीक इसके अशांति का जो इंतजाम कर रहा है. उसमें जरा और कशलता और विपरीत अशांति को समझने की चेष्टा करता है। इसको फर्क समझ व्यवस्था आ जाए। लें आप। झूठे ढंग से शांत होता है वह मन, जो अशांति के कारणों __ अभी एक युवक मेरे पास आया। उसने कहा कि मन बहुत की तो फिक्र ही नहीं करता कि मैं अशांत क्यों हूं, शांत करने की अशांत है, परीक्षा पास है। मेडिकल कालेज का विद्यार्थी है। परीक्षा फिक्र करता चला जाता है। भीतर अशांति के कारण बने रहते हैं पास है, मन बहुत अशांत है। कोई रास्ता बताएं कि मेरा मन शांत पूर्ववत, भीतर अशांति का सब कुछ जाल, व्यवस्था मौजूद रहती | | हो जाए। मैंने कहा, शांत करना किसलिए चाहते हो? करोगे क्या है पूर्ववत, और वह ऊपर से शांत करने का इंतजाम करता चला शांत करके? उसने कहा, करना किसलिए चाहता हूं? आप भी जाता है।
क्या बात पूछते हैं। मुझे गोल्ड मेडल लाना है परीक्षा में। तो शांत जो व्यक्ति अपने भीतर की अशांति के ऊपर शांति को आरोपित हुए बिना बहुत मुश्किल है। करता है, वह गलत ढंग की शांति को उपलब्ध होता है। वह ध्यान मैंने कहा कि तू मुझे माफ कर, नहीं पीछे मुझे बदनाम करेगा कि
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