SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4 गीता दर्शन भाग-3> जाता है, बाप भी कहता है कि तुम गधे हो। जहां जाता है, वहां पता गए, पानी वाले भी तीन ठीक हो गए! अब दवा को क्या कहें? यह चलता है कि सिर्फ कान की कमी है, बाकी मैं गधा हूं! और जब दवा थी नहीं; यह सिर्फ पानी था। लेकिन दवा वाले भी, पांच में से इतने सब लोग कहते हैं, तो इन सबको गलत करना भी ठीक नहीं तीन ठीक हो गए हैं और ये भी पांच में से तीन ठीक हो गए हैं, पानी मालूम पड़ता। मन फिर इनको सही करने के उपाय खोजने लगता | वाले! अब क्या कहें? है कि सब लोग सही ही कहते होंगे। इतने लोग जब कहते हैं, तो मनोविज्ञान तो कहता है कि अब तक की जितनी दवाएं हैं दुनिया इनको गलत कहना भी तो ठीक नहीं है। | में, वे सिर्फ सजेशन का काम करती हैं। असली परिणाम सजेशन मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आज दुनिया में जितने अप्रौढ़ चित्त | का है, सुझाव का है। असली परिणाम दवा के तत्व का नहीं है। दिखाई पड़ते हैं, उनका जिम्मेवार शिक्षक, शिक्षा की व्यवस्था है, इसीलिए तो इतनी पैथी चलती हैं। इतनी पैथी चल सकती हैं? जहां इनको हिप्नोटाइज किया जा रहा है कि तुम ऐसे हो, तुम ऐसे पागलपन की बात है। बीमारी अगर होगी, तो इतनी पैथी चल हो, तुम ऐसे हो। कहा जा रहा है; सर्टिफिकेट दिए जा रहे हैं; सकती हैं वैज्ञानिक अर्थों में? अखबारों में नाम दिए जा रहे हैं; सिद्ध हो जाता है कि वह आदमी होम्योपैथी भी चलती है! और होम्योपैथी के नाम पर ऐसा है। करीब-करीब शक्कर की गोलियां चलती हैं। कम से कम हिंदुस्तान आपने कभी खयाल किया है, बीमार पड़े हों बिस्तर पर सभी | में बनी तो बिलकुल शक्कर की गोली ही होती हैं। शक्कर भी शुद्ध कभी न कभी पड़ते हैं आपने कभी खयाल किया है कि बीमार | | होगी, इसमें संदेह है। बायो-केमिस्ट्री चलती है। आठ तरह की पड़े हों, बड़ी तकलीफ मालूम पड़ती है, बड़ी बेचैनी है, बड़ी भारी | | दवाओं से सब बीमारियां ठीक हो जाती हैं! नेचरोपैथी चलती है; बीमारी है। डाक्टर आया। डाक्टर के बूट बजे, उसकी शक्ल दवा वगैरह की कोई जरूरत नहीं है। पेट पर पानी की पट्टी या मिट्टी दिखाई दी। उसका स्टेथस्कोप! थोड़ी बीमारी एकदम उसको की पट्टी से भी बीमार ठीक होते हैं! जंत्र, मंत्र, तंत्र-सब चलता देखकर कम हो गई! अभी उसने दवा नहीं दी है। डाक्टर ने थोड़ा है। जादू-टोना चलता है। सब चलता है। क्या, मामला क्या है ? ठकठकाया, इधर-उधर ठोंका-पीटा। उसने अपना स्पेशलाइजेशन | और आदमी सबसे ठीक होता है! दिखाया कि हां! फिर उसने कहा कि कोई बात नहीं, बहुत साधारण | आदमी के ठीक होने के ढंग बड़े अजीब हैं। शक इस बात का है, कुछ खास नहीं है। दो दिन की दवा में ठीक हो जाएंगे। फिर | है कि आदमी की अधिक बीमारियां भी उसके सुझाव होती हैं, कि उसने जितनी बड़ी फीस ली, उतना ही अर्थ मालूम पड़ा कि यह बात | | उसने माना है कि वह बीमार हुआ है। और आदमी का अधिकतर ठीक होगी ही। | स्वास्थ्य भी उसका सुझाव होता है कि उसने माना है कि वह ठीक आपने खयाल किया है, डाक्टर की दवा और उसका प्रिस्क्रिप्शन हुआ है। बीमारियां भी बहुत मायनों में झूठी होती हैं, मन का खेल। आने में तो थोड़ी देर लगती है, लेकिन मरीज ठीक होना शुरू हो और उसके स्वास्थ्य के परिणाम भी झूठे होते हैं, मन का खेल। जाता है। मन ने अपने को सुझाव दिया कि जब इतना बड़ा डाक्टर | | लेकिन मन आटो-सजेस्टिबल है, अपने को सुझाव दे सकता है। कहता है, तो ठीक हैं ही। अगर आप बीमार पड़े हैं और आपको उस तरह की शांति झूठी है, जो कुवे की पद्धति से आती है। जो पता चला कि डाक्टर ने ऐसा कहा है कि बिलकुल ठीक हैं, कोई कहती है कि तुम शांत हो रहे हो। इसको माने चले जाओ, कहे चले खास बीमारी नहीं है, तो तत्काल आपके भीतर बीमारी क्षीण होने | जाओ, दोहराए चले जाओ-शांत हो जाओगे। का अनभव आपको हआ होगा तत्काल। एक ताजगी आ गई है। जरूर शांत हो जाएंगे। लेकिन वैसी शांति सिर्फ सतह पर दिया बुखार कम हो गया है। बीमारी ठीक होती मालूम पड़ती है। अभी गया धोखा है। वह शांति वैसी है, जैसे नाली के ऊपर हमने फूलों कोई दवा नहीं दी गई है, तो यह परिणाम कैसे हुआ है? को बिछा दिया हो, तो क्षणभर को धोखा हो जाए। हां, किसी नेता पश्चिम में डाक्टर एक नई दवा पर काम करते हैं, उस दवा को | की पालकी निकलती हो सड़क से, तो काफी है। चलेगा। क्षणभर कहते हैं, धोखे की दवा, प्लेसबो। बड़े हैरान हुए हैं। दस मरीज हैं, | को धोखा हो जाए, कोई नाली नहीं है, फूल बिछे हैं। लेकिन दसों एक बीमारी के मरीज हैं। पांच को दवा दी है और पांच को | घडीभर बाद फूल कुम्हला जाएंगे, नाली की दुर्गंध फूलों के पार सिर्फ पानी दिया है। बड़ी मुश्किल है। दवा वाले भी तीन ठीक हो | आकर फैलने लगेगी। थोड़ी देर में नाली फूलों को डुबा लेगी। [114
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy