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________________ < अपरिग्रही चित्त - वह ध्यान की बात न सोच पाएगा। ऐसी बहुत-सी विधियां प्रचलित हैं, जिनसे आपको शांति का और भी एक खतरा है, वह भी मैं आपसे कह दूं, कि जो साधक | भ्रम पैदा हो सकता है। वह गलत रूप की शांति है। जैसे इस तरह इस भांति मृत्यु से भयभीत होकर लौट आता है, बहुत संभावना है, की हिप्नोटिज्म, सम्मोहन की विधियां हैं, जिनसे आपको प्रतीति हो सौ में कम से कम तीस प्रतिशत लोगों को, कि वे थोड़े-से विक्षिप्त सकती है कि आप शांत हैं। हो जाएं। क्योंकि जो उन्होंने देखा है, मिटने का जो अनुभव उनके __अगर आप कुवे से पूछे, एमाइल कुवे से। वे पश्चिम के एक निकट आया, वह उनके सारे स्नायुओं को कंपा जाता है; उनके बड़े हिप्नोटिस्ट विचारक हैं। तो वे कहते हैं, शांत होने के लिए और हाथ-पैर कंपने लगेंगे, उनका चित्त भय से सदा घबड़ाया हुआ रहने | कुछ करना जरूरी नहीं है। सिर्फ अपने मन में यह दोहराते रहें कि लगेगा। वे नींद लेने तक में डरने लगेंगे। उनका डर बढ़ जाएगा। मैं शांत हो रहा हूं, मैं शांत हो रहा हूं, मैं शांत हो रहा हूं, मैं शांत ___ इसलिए ध्यान में कोई भी जाए, तो यह जानकर जाए, ठीक से | हो रहा हूं। इसे दोहराते रहें। गो आन रिपीटिंग इट। रात सोते वक्त परिचित होकर जाए कि मृत्यु की प्रतीति होगी। भय कुछ भी नहीं है। दोहराते रहें, मैं शांत हो रहा हूं, मैं शांत हो रहा हूं, शांत हो रहा हूं। क्योंकि वह मृत्यु की प्रतीति सौभाग्य है। वह उसको ही होती है, जो | | दोहराते-दोहराते सो जाएं। कब नींद आ जाए, पता न चले; आप ध्यान के बिलकुल मंदिर के द्वार पर चढ़कर पहुंच जाता है—उसको दोहराते रहें, मैं शांत हो रहा हूं। आप मत रुकें। नींद आ जाए, रोक ही. उसके पहले नहीं होती। वह आखिरी प्रतीति है मन की। दे, बात अलग। आप दोहराते चले जाएं। मन मरने के पहले आखिरी बार आपको घबड़ाता है कि मर अगर रात सोते वक्त आप दोहराते रहें, मैं शांत हो रहा है, मैं जाओगे, लौट चलो। अगर आप न घबड़ाए, तो मन मर जाता है, | | शांत हो रहा हूं, तो नींद का क्षण जब आएगा, तो आपका चेतन मन आप बच जाते हैं। आपके मरने का कोई उपाय नहीं है। आप नहीं | | तो सो जाएगा, वह जो दोहरा रहा था, मैं शांत हो रहा हूं, मैं शांत मरं सकते। हो रहा हूं। लेकिन मैं शांत हो रहा हूं, इसकी प्रतिध्वनि अचेतन में लेकिन अभी तक आपने समझा है कि मैं मन हूं। इसलिए जब | गूंजती रह जाएगी। वह रातभर आपके भीतर गूंजती रहेगी-मैं मन कहता है, मर जाऊंगा! तो आप समझते हैं, मैं मर जाऊंगा। शांत हो रहा हूं, मैं शांत हो रहा हूं। वह आपकी भ्रांति स्वाभाविक है। स्वाभाविक, लेकिन सही नहीं। कुवे कहते हैं, सुबह जब नींद खुले, तो पहली बात मन में स्वाभावि क, लेकिन सत्य नहीं। इसलिए जो भी ध्यान का निर्देश दोहराना, मैं शांत हो रहा है, मैं शांत हो रहा है, मैं शांत हो रहा हूं। करेगा, जैसा कृष्ण अर्जुन को निर्देश कर रहे हैं, तो वे उन सारी बातों जब भी स्मरण आ जाए, दोहराना, मैं शांत हो रहा हूं। का निर्देश करेंगे ही, जिन-जिन की जरूरत पड़ेगी। इस भांति अगर आप दोहराते रहें, तो आप अपने को तो एक, निर्भय। और ठीक रूप से शांत हुए मन वाला। ठीक आटो-हिप्नोटाइज कर लेंगे। आपको अशांति रहेगी, लेकिन पता रूप से शांत हुए मन वाले का क्या अर्थ है? इस ठीक से शांत मन नहीं चलेगी। आपको लगेगा, मैं शांत हो गया हूं। यह स्वयं को वाला, इस शब्द से, इन शब्दों के समूह से बहुत-सी गलत | दिया गया धोखा है। यह शांति झूठी है। यह शांति केवल भ्रम है। व्याख्याएं प्रचलित हुई हैं। लेकिन यह हो जाता है। मन की यह क्षमता है कि मन अपने को एक तो, जब कृष्ण कहते हैं, ठीक से शांत हुए मन वाला, तो | धोखा दे सकता है। मन की बड़ी क्षमता सेल्फ डिसेप्शन है। खुद इसके दो मतलब साफ हो गए कि ऐसी शांति भी हो सकती है, जो को धोखा देना मन की बड़ी क्षमता है। अगर आप दोहराए चले ठीक से शांति न हो। गलत किस्म की शांति भी हो सकती है। जाएं, तो यह हो जाता है। . इसका मतलब साफ है। अशांति तो गलत होती ही है; ऐसी शांतियां | अब तो मनोवैज्ञानिक इसको बहुत ठीक से स्वीकार करते हैं कि भी हैं, जो गलत होती हैं। इसलिए तो ठीक से शांत, इस शर्त को | यह हो जाता है। जिन बच्चों को स्कूल का शिक्षक कहता चला लगाना पड़ा है। जाता है, तुम गधे हो, तुम गधे हो। और एक शिक्षक ने कहा, तो ___ इसलिए आप सब तरह के शांत हुए लोग ध्यान में प्रवेश कर दूसरा शिक्षक दूसरी क्लास में फिर धारा को पकड़ लेता है कि तुम जाएंगे, इस भ्रांति में मत पड़ना। गलत ढंग से शांत हुए लोग भी हो गधे हो। और एक बच्चा सुनता है। वह भी मन में दोहराता है, मैं सकते हैं। कौन से ढंग से आदमी गलत रूप से शांत हो जाता है? गधा हूं। दूसरे लड़के भी उसकी तरफ देखते हैं कि तुम गधे हो। घर 113
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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