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- अपरिग्रही चित्त -
दी हो, ऐसे साफ कर दिए गए हों। ऐसा एकांत जिसके मन में हो, समय घड़ी तुम्हें भेंट कर दूंगा। तो उस दिन उसकी नींद हराम हो वह अंतर-गुहा में प्रवेश कर जाता है।
जाएगी। घड़ी से एक रागात्मक संबंध निर्मित हुआ। नहीं थी घड़ी, एक शब्द और कृष्ण ने कहा है, अपरिग्रही चित्त वाला, उससे हो गया! इतने दिन तक घड़ी थी, घड़ी का उपयोग किया था, अपरिग्रही चित्त।
| कोई रागात्मक संबंध न था। आज घड़ी टूटकर चूर-चूर हो गई है। क्या अर्थ होता है अपरिग्रह का? सीधा-सादा अर्थ शब्दकोश | | लेकिन मालिक ने कहा कि दुख, दुर्भाग्य तुम्हारा, क्योंकि सोचता में जो लिखा होता है, वह यह है कि जो वस्तुओं का संग्रह न करे। | था मैं कि आज संध्या यह घड़ी तुम्हें भेंट कर दूंगा। अब घड़ी है लेकिन कृष्ण का यह अर्थ नहीं हो सकता। नहीं हो सकता इसलिए | नहीं, जो भेंट की जा सके। लेकिन नौकर अब चिंतित और दुखी कि कृष्ण, व्यक्ति जीवन और संसार को छोड़ जाए, इसके पक्ष में | | और पीड़ित होने वाला है। होगा इसलिए पीड़ित और दुखी कि अब नहीं हैं। अगर सारी वस्तुओं को छोड़ दे, तो संसार और जीवन | | जो घड़ी नहीं है, उससे भी एक रागात्मक संबंध स्थापित हुआ। वह छूट ही जाता है। कृष्ण इस पक्ष में भी नहीं हैं कि कर्म को छोड़कर | मिल सकती थी, मेरी हो सकती थी। अब भीतर उसने जगह बनाई। चला जाए। अगर सारी वस्तुओं को कोई छोड़कर चला जाए, तो | अब तक वह बाहर दीवाल पर लटकी थी, अब वह हृदय के किसी कर्म भी अपने आप छूट जाता है। तो कृष्ण का अर्थ अपरिग्रह से कोने में लटकी है। कुछ और होगा।
जब वस्तुएं बाहर होती हैं और भीतर नहीं, जब उनका उपयोग कृष्ण का अर्थ है अपरिग्रही चित्त से, ऐसा चित्त जो वस्तुओं का | चलता हो, लेकिन आसक्ति निर्मित न होती हो, तब कृष्ण का उपयोग तो करता है, लेकिन वस्तुओं को अपनी मालकियत नहीं दे | | अपरिग्रह फलित होता है। जीवन को जीना है उसकी समग्रता में, देता है। जो वस्तुओं का उपयोग तो करता है, लेकिन वस्तुओं का | | लेकिन ऐसे, जैसे कि जीवन छू न पाए। गुजरना है वस्तुओं के बीच मालिक ही बना रहता है। कोई वस्तु उसकी मालिक नहीं हो जाती।। से, व्यक्तियों के बीच से, लेकिन अस्पर्शित। वस्तुओं का उपयोग करता है, लेकिन वस्तुओं के साथ कोई राग | । इसलिए और जो अपरिग्रह की व्याख्याएं हैं, वे सरल हैं। कृष्ण का, कोई आसक्ति का संबंध निर्मित नहीं करता।
| की व्याख्या कठिन है। और जो व्याख्याएं हैं, साधारण हैं। ठीक है, ' ऐसा समझें कि जैसे आपका नौकर आपके घर में वस्तुओं का | | जिन वस्तुओं से मोह निर्मित हो जाता है, उनको छोड़कर चले उपयोग करता है। सम्हालकर रखता है चीजों को, सम्हालकर जाओ, थोड़े दिन में मन भूल जाता है। बड़ी से बड़ी चीज को मन उठाता है। उनका उपयोग भी करता है, काम में भी लाता है। लेकिन | | भूल जाता है। छोड़ दो, हट जाओ, तो मन की स्मृति कमजोर है, आपकी कोई बहुमूल्य चीज खो जाए, तो उसे कोई पीड़ा नहीं होती। कितने दिन तक याद रखेगा! भूल जाएगा, विस्मरण हो जाएगा। यद्यपि आपसे ज्यादा उस वस्तु के संपर्क में नौकर को आने का नए राग बना लेगा, पुराने राग विस्मृत हो जाएंगे। मौका मिला था। शायद आपको इतना मौका भी न मिला हो। __ आदमी मर भी जाए जिसे हमने बहुत प्रेम किया था, तो कितने आपसे ज्यादा उसने उपयोग किया था। लेकिन खो जाए, टूट जाए, | | दिन, कितने दिन स्मरण रह जाता है ? रोते हैं, दुखी-पीड़ित होते हैं। नष्ट हो जाए, चोरी चली जाए, तो नौकर को जरा भी चिंता पैदा नहीं | फिर सब विस्मरण हो जाता है, फिर सब घाव भर जाते हैं। फिर नए होती। वह रात शांति से घर जाकर सो जाता है। क्या, बात क्या है? | | राग, नए संबंध निर्मित हो जाते हैं। यात्रा पुनः शुरू हो जाती है।
वस्तु का उपयोग तो कर रहा था, लेकिन वस्त से किसी तरह किसके मरने से यात्रा रुकती है। किस चीज के खोने से यात्रा का रागात्मक कोई संबंध न था। लेकिन अगर चीज टूट गई | | रुकती है! कुछ रुकता नहीं; सब फिर चलने लगता है पुनः। जैसे हो-समझें कि एक घड़ी फूट गई हो, जिसे वह रोज साफ करता थोड़ा-सा बीच में भटकाव आ जाता है; रास्ते से जैसे गाड़ी का था और चाबी देता था, वह आज गिरकर टूट गई हो। नौकर को चाक उतर गया; फिर उठाते हैं चाक को, वापस रख लेते हैं; गाड़ी कुछ भी भीतर नहीं टूटेगा, क्योंकि घड़ी ने भीतर कोई स्थान नहीं फिर चलने लगती है। बनाया था।
तो अगर कोई वस्तुओं को छोड़कर भाग जाए, तो थोड़े दिन में लेकिन टूटी हुई घड़ी के बाद अगर आप नौकर से कहें कि यह उन्हें भूल जाता है। लेकिन भूल जाना, मुक्त हो जाना नहीं है। भाग तो बहुत बुरा हो गया। आज तो मैं सोच रहा था कि संध्या जाते जाना, मुक्त हो जाना नहीं है। सच तो यह है, भागता वही है, जो
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