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________________ < गीता दर्शन भाग-3> बीच से उस कुश घास को खोज लाता था, जो ध्यान में सहयोगी के कपड़े भी अलग रख दें, तो आप ही रखेंगे, आप ही उठाएंगे; होने का वातावरण निर्मित करती है। कहीं तो रखेंगे। और अब हमारे घरों में ऐसी कोई जगह नहीं है, इसलिए कृष्ण ने कहा सबसे पहले, कुश। | जिसे हम समस्त प्रभावों के बाहर रख सकें। वस्त्र! विशेष वस्त्र। सभी वस्त्र सहयोगी नहीं होते। जिन वस्त्रों अगर आप अपने घर में एक छोटा-सा कोना समस्त प्रभावों के में आपने भोजन किया है, उन्हीं वस्त्रों में ध्यान करना कठिन होगा। बाहर रख सकते हैं, तो वह मंदिर हो गया। मंदिर का उतना ही जिन वस्त्रों में आपने संभोग किया है, उन्हीं वस्त्रों में ध्यान करना मतलब है। गांव में अगर एक घर आप ऐसा रख सकते हैं, जो तो महा कठिन होगा। जिस बिस्तर पर लेटकर आपने कामवासना समस्त प्रभावों के बाहर है, तो वह मंदिर है। मंदिर का उतना ही के विचार किए हैं, उसी बिस्तर पर बैठकर ध्यान करना बहुत अर्थ है। लेकिन कुछ भी अब बाहर रखना बहुत मुश्किल है। एक मुश्किल होगा। क्योंकि प्रत्येक वृत्ति और प्रत्येक वासना अपने कोना...। चारों तरफ की चीजों को इनफेक्ट कर जाती है। इसलिए वे कह रहे हैं, शुद्ध स्थान। ऐसे लोग आज भी पृथ्वी पर हैं और ऐसी प्रक्रियाएं भी हैं कि शुद्ध स्थान से मतलब है, अप्रभावित स्थान। जो जीवन की . मेरा रूमाल उन्हें दे दिया जाए, तो वे मेरे बाबत सब कुछ बता देंगे, निम्नतर वासनाएं हैं, उनसे बिलकुल अप्रभावित स्थान। और इस हालांकि वे कुछ भी नहीं जानते कि मैं कौन हूं और यह रूमाल | तरह के अप्रभावित स्थान का परिणाम गहरा है। और वह घर बहुत किसका है। क्योंकि यह रूमाल मेरे साथ रहकर मेरी सब तरह की | गरीब है, चाहे वह कितना ही अमीर का घर हो, जिस घर में ऐसी संवेदनाओं को, मेरी सब तरह की तरंगों को, मेरे सब तरह के | थोड़ी-सी जगह नहीं, जिसे शुद्ध कहा जा सके। किस जगह को प्रभाव को आत्मसात कर जाता है, पी जाता है। शुद्ध कहें? सूती कपड़े बहुत तीव्रता से पीते हैं, रेशमी कपड़े बहुत मुश्किल जिस जगह बैठकर आपने कभी कोई दुष्विचार नहीं सोचा; जिस से पीते हैं। रेशमी कपड़े बहुत रेसिस्टेंट हैं। इसलिए ध्यान के लिए जगह बैठकर आपने कोई दुष्कर्म नहीं किया; जिस जगह बैठकर रेशमी कपड़ों का बहुत दिन उपयोग किया जाता रहा है। वे | आपने सिवाय परमात्मा के स्मरण के और कुछ भी नहीं किया; बिलकुल रेसिस्टेंट न के बराबर हैं। कम से कम दूसरी चीजों के | जिस जगह बैठकर आपने ध्यान, प्रार्थना, पूजा के और कुछ भी प्रभावों को पीते हैं, इंप्रेसिव नहीं हैं, उन पर इंप्रेशन नहीं पड़ता। कम | नहीं किया; जिस जगह प्रवेश करने के पहले आप अपनी सारी पड़ता है, फिसल जाता है, बिखर जाता है, टूट जाता है। क्षुद्रताओं को बाहर छोड़ गए—ऐसा एक छोटा-सा कोना! सूती कपड़ा एकदम पी जाता है। तो सूती कपड़े की खूबी भी है, और निश्चित ही ऐसा कोना निर्मित हो जाता है। और अगर इस खतरा भी है। अगर ध्यान के वक्त सूती कपड़े का उपयोग करें, तो कोने पर सैकड़ों लोगों ने प्रयोग किया हो, तो वह धीरे-धीरे घनीभूत वह ध्यान को पी जाएगा। लेकिन फिर उसकी सुरक्षा करनी पड़ेगी, होता चला जाता है, क्रिस्टलाइज हो जाता है। वह आपकी इस उसको बचाना पड़ेगा। क्योंकि वह दूसरे प्रभावों को भी इसी तरह दुनिया के बीच एक अलग दुनिया बस जाती है। वह एक अलग पी जाएगा। और चौबीस घंटे में तो ध्यान का मुश्किल से कभी एक | कोना हो जाता है। जिसके भीतर प्रवेश करते से ही परिणाम शुरू क्षण आएगा, बाकी तो क्षण बहुत होंगे; वह सब पी जाएगा। हो जाएंगे। जिसके भीतर कोई अजनबी आदमी भी आएगा, तो इसलिए रेशमी कपड़े का उपयोग किया जाता रहा। वह प्रभावों परिणाम शुरू हो जाएंगे। को नहीं पीता है। और आपके चारों तरफ एक निष्प्रभाव की धारा । कई बार आपको अनुभव में आया होगा, इससे उलटा आया बना देता है। स्वच्छतम हों. कोरे हों. रेशमी हों। होगा, लेकिन बात तो समझ में आ जाएगी। कई बार आपको और फिर जिन्होंने पाया कि कपड़े का किसी भी तरह उपयोग | अनुभव में आया होगा, किसी घर में प्रवेश करते, किसी स्थान पर करो, कुछ न कुछ कठिनाई होती है, तो महावीर ने दिगंबर होकर बैठते, मन बहुत दुष्विचारों से भर जाता है। किसी व्यक्ति के पास प्रयोग किया। उसके कारण थे। ऐसे ही नग्न नहीं हो गए। ऐसा कोई | | जाते, मन बहुत दुष्कर्मों की वासनाओं से भर जाता है। इससे उलटा दिमाग खराब नहीं था। कारण थे। कैसे ही कपड़े का उपयोग करो, | | बहुत कम खयाल में आया होगा। क्योंकि इससे उलटे आदमी बहुत कुछ न कुछ प्रभाव संक्रमित हो जाते हैं। आप अगर अपने ध्यान | कम हैं, इससे उलटी जगह बहुत कम हैं कि किसी के पास जाकर
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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