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________________ अंतर्यात्रा का विज्ञान मन उड़ान लेने लगता है आकाश की, जमीन को छोड़ देता है। क्षुद्र से हट जाता है, विराट की यात्रा करने लगता है— किसी के पास । इस तरह किसी के पास होने का पुराना नाम सत्संग था। सत्संग का मतलब किसी को सुनना नहीं था । सत्संग का मतलब कोई व्याख्यान नहीं था। सत्संग का मतलब, सन्निधि; ऐसे व्यक्ति की सन्निधि, जहां पहुंचकर आपकी अंतर्यात्रा को सुगमता मिलती है। इसलिए इस मुल्क में दर्शन का बड़ा मूल्य हो गया। पश्चिम के लोग बहुत हैरान होते हैं कि दर्शन से क्या होगा? किसी के पास जाकर आप नमस्कार कर आए, उससे क्या होगा? पश्चिम के लोगों को पता नहीं कि कोई गहरा वैज्ञानिक कारण दर्शन के पीछे है। अगर किसी पवित्र व्यक्ति के पास जाकर आप दो क्षण खड़े भी हुए हैं, दो क्षण सिर भी झुकाया है, तो परिणाम होगा। सिर झुकाने का भी विज्ञान तो है ही। क्योंकि जैसे ही आप सिर झुकाते हैं, उस पवित्र व्यक्ति की तरंगें आप में प्रवेश करने के लिए सुविधा पाती हैं, आप रिसेप्टिव होते हैं। किसी के चरणों में सिर रखने का कुल कारण इतना था कि आप अपने को पूरा का पूरा सरेंडर करते हैं उसकी किरणों के लिए, उसके रेडिएशन के लिए, वह आप में प्रवेश कर जाए। एक क्षण का भी वैसा स्पर्श, एक आंतरिक स्नान करा जाता है। शुद्ध स्थान के लिए कृष्ण कह रहे हैं। शुद्ध स्थान हो, ऐसी वस्तुएं आस-पास मौजूद हों, जो ध्यान में यात्रा करवाती हैं। इस तरह की बहुत-सी चीजें खोज ली जा सकीं। ऐसी सुगंधें खोज ली गईं, जो ध्यान में सहयोगी हो जाती हैं। ऐसी वस्तुएं खोज ली गईं, जो ध्यान में सहयोगी हो जाती हैं। ऐसे चार्ज्ड आब्जेक्ट्स खोज लिए गए, जो ध्यान में सहयोगी हो जाते हैं। आज भी, आज भी बचाने की कोशिश चलती है, लेकिन पता नहीं रहता। पता नहीं है, इसलिए बचाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। आज भी कोशिश चलती है अंधेरे में टटोलती हुई, लेकिन उसके साइंटिफिक, उसके वैज्ञानिक कारण खो जाने की वजह से जो बचाने की कोशिश में लगा है, वह बुद्धिहीन मालूम पड़ता है। जो तोड़ने की कोशिश में लगा है, बुद्धिमान मालूम पड़ता है। और उस व्यक्ति को बहुत कठिनाई हो जाती है, जो जानता है कि बहुत-सी चीजें तोड़ देने जैसी हैं, क्योंकि उनके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नहीं, वे सिर्फ समय की धारा में जुड़ गई हैं। और बहुत-सी चीजें बचा लेने जैसी हैं, क्योंकि उनके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण हैं । यद्यपि समय की धारा में वैज्ञानिक कारण भूल गए हैं और खो गए हैं। यह बाह्य परिस्थिति का निर्माण करना है एक मनःस्थिति के जन्माने के लिए। और निश्चित ही बाहर की परिस्थिति में सहारे खोजे जा सकते हैं, क्योंकि बाहर की परिस्थिति में विरोध और अड़चन भी होती है। समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः । संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ।। १३ ।। प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः । मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ।। १४ । उसकी विधि इस प्रकार है कि काया, सिर और ग्रीवा को समान और अचल धारण किए हुए दृढ़ होकर, अपने नासिका के अग्रभाग को देखकर, अन्य दिशाओं को न देखता हुआ और ब्रह्मचर्य के व्रत में स्थित रहता हुआ, भयरहित तथा अच्छी प्रकार शांत अंतःकरण वाला और सावधान होकर मन को वश में करके, मेरे में लगे हुए चित्त वाला और मेरे परायण हुआ स्थित होवे । स विधि के और अगले कदम। एक, शरीर बिलकुल सीधा हो, स्ट्रेट, जमीन से नब्बे का कोण बनाए। वह जो आपकी रीढ़ है, वह जमीन से नब्बे का कोण बनाए, तो सिर सीध में आ जाएगा। और जब आपकी बैक बोन, आपकी रीढ़ जमीन से नब्बे का कोण बनाती है | और बिलकुल स्ट्रेट होती है, तो आप करीब-करीब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो जाते हैं— करीब-करीब, एप्रोक्सिमेटली । और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो जाना ऊर्ध्वगमन के लिए मार्ग बन जाता है, एक। | 99 उ दूसरी बात, दृष्टि नासाग्र हो । पलक झुक जाएगी, अगर नासाग्र | दृष्टि करनी है। नाक का अग्र भाग देखना है, तो पूरी आंख खोले रखने की जरूरत न रह जाएगी। आंख झुक जाएगी। अगर आप बैठे हैं, तो मुश्किल से दो फीट जमीन आपको दिखाई पड़ेगी । अगर खड़े हैं, तो चार फीट दिखाई पड़ेगी। लेकिन वह भी ठीक से दिखाई | नहीं पड़ेगी और धुंधली हो जाएगी, धीमी हो जाएगी। दो कारण हैं। एक, अगर बहुत देर तक नासाग्र दृष्टि रखी जाए, तो पूरा संसार
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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