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________________ गीता दर्शन भाग-3> जाती हैं, सिर से नीचे की तरफ नहीं आतीं। त्राटक का गहन अभ्यास किया है, तो वह ठीक दोपहर बारह बजे ठीक दोपहर में जब सूर्य सिर के ऊपर है, तब सूर्य की सारी भी ध्यान में ऊपर यात्रा कर सकता है; क्योंकि उसने सूर्य की किरणें आपके शीर्ष से, जिसे सहस्रार कहते हैं योगी, उससे प्रवेश किरणों के साथ सीधा संघर्ष करके तैरने की व्यवस्था कर ली है। करती हैं और आपके सेक्स सेंटर तक चोट पहुंचाती हैं। उस वक्त अन्यथा नहीं। पूरी धारा आपके सिर से यौन केंद्र तक बह रही है। | तो अगर पूछे कि किस समय ध्यान करें? तो जो परम ज्ञानी है, और ध्यान की यात्रा उलटी है। ध्यान की यात्रा यौन केंद्र से वह कहेगा, समय का कोई सवाल नहीं है। ध्यान तो टाइमलेसनेस सहस्रार की तरफ है। और सूर्य की किरणें दोपहर के क्षण में सहस्रार है। आप समय के बाहर चले जाएंगे। समय का कोई सवाल ही से यौन केंद्र की तरफ आ रही हैं। नदी जैसे उलटी जा रही हो और नहीं है। सुबह हो, कि दोपहर हो, कि सांझ हो। आप उलटे तैर रहे हों, ऐसी तकलीफ होगी। ऐसी तकलीफ होगी! | वह ठीक कह रहा है। ध्यान की जो परम स्थिति है. वह समय के सुबह यह तकलीफ नहीं होगी। सूर्य की किरणें आर-पार जा रही बाहर है, कालातीत है। लेकिन ध्यान का प्रारंभ समय के भीतर है, हैं आपके। आपको सूर्य की किरणों से नहीं लड़ना पड़ेगा। संध्या | इन दि टाइम। ध्यान का अंत समय के बाहर है। ध्यान का प्रारंभ . भी यह तकलीफ नहीं होगी। फिर किरणें आर-पार जा रही हैं। समय के भीतर है। और जो समय की व्यवस्था को ठीक से न समझे, इसलिए प्रार्थना का नाम ही धीरे-धीरे संध्या हो गया। संध्या का वह ध्यान में व्यर्थ की तकलीफें पाएगा, व्यर्थ के कष्ट पाएगा। मतलब ही इतना है, वह क्षण, जब सूर्य की किरणें आर-पार जा अकारण मुसीबतें खड़ी कर लेगा; व्यर्थ ही अपने हारने का इंतजाम रही हैं। चाहे सुबह हो, चाहे सांझ हो, बीच का गैप-जब सूरज | करेगा। जीतने की सुविधाएं जो मिल सकती थीं, वह खो देगा। आपके ऊपर से सीधा प्रभाव नहीं डालता। __ करीब-करीब ऐसा है, जैसे कि नदी में नाव चलाते हैं पाल लेकिन रात के बारह बजे, आधी रात फायदा हो सकता है। बांधकर। जब हवाओं का रुख एक तरफ होता है, तो यात्रा करते उसका उपयोग योगियों ने किया है, अर्धरात्रि का। क्योंकि तब | | हैं। पाल को खुला छोड़ देते हैं, फिर मांझी को, नाविक को पतवार सूरज आपके ठीक नीचे पहुंच गया। और सूरज की किरणें आपके | नहीं चलानी पड़ती। हवाएं पाल में भर जाती हैं और नाव यात्रा करने यौन केंद्र से सहस्रार की तरफ जाने लगी हैं। दिखाई नहीं पड रही लगती है। हैं, पर अंतरिक्ष में उनकी यात्रा जारी है। उस वक्त नदी सीधी बह | ___ ध्यान की नाव के भी क्षण हैं, स्थितियां हैं। जब हवाएं अनुकूल रही है। आप उसमें बह जाएं, तो सरलता से तैर जाएंगे। तैरने की | होती हैं और ध्यान की हवाएं सूर्य की किरणें हैं-जब हवाएं भी शायद जरूरत न पड़े; बह जाएं, जस्ट फ्लोट, और आप ऊपर अनुकूल होती हैं, जब ग्रेविटेशन अनुकूल होता है, जब तरंगें की तरफ निकल जाएंगे। | अनुकूल होती हैं, जब चारों तरफ ठीक अनुकूल स्थिति होती है, लेकिन दोपहर के क्षण में जब सूरज आपके ऊपर से नीचे की तब पाल खुला छोड़ दें; बहुत कम श्रम में यात्रा हो जाएगी। तरफ यात्रा कर रहा है, तब आप फ्लोट न कर सकेंगे, बहन और जब सब चीजें प्रतिकूल होती हैं, तो फिर बहुत मेहनत सकेंगे। तैरना भी मुश्किल पड़ेगा; क्योंकि सूर्य की किरणें आपके | करनी पड़ती है। तब भी जरूरी नहीं है कि दूसरा किनारा मिल जाए। जीवन का आधार हैं ! सूर्य जीवन है, उससे लड़ना बहुत मुश्किल | | हवाएं बहुत तेज हैं, नदी की धार बहुत प्रगाढ़ है। आप बहुत मामला है। कमजोर हैं। बहुत संभावना तो यही है कि थककर अपने किनारे पर इसलिए सूर्य पर त्राटक शुरू हुआ। वह अभ्यास है सूर्य से वापस लग जाएं। हाथ जोड़ लें कि यह अपने से न हो सकेगा। लड़ने का। वह आपके खयाल में नहीं होगा। त्राटक करने वाले के यही होता है। ध्यान में जो लोग भी लगते हैं, ठीक व्यवस्था न खयाल में भी नहीं होता; क्योंकि किताब में कहीं कोई पढ़ लेता है जानने से, राइट ट्यूनिंग न जानने से व्यर्थ परेशान होते हैं और और करना शुरू कर देता है। परेशान होकर फिर यह सोच लेते हैं कि शायद अपने भाग्य में नहीं सूर्य की किरणों पर जो त्राटक है, घंटों लंबा अभ्यास है खुली है, अपनी नियति में नहीं है, अपने कर्म ठीक नहीं हैं, अपनी पात्रता आंखों से, वह इस बात की चेष्टा है कि हम सूर्य की किरणों के नहीं है। ऐसा अपने को समझाकर, वह जो दुनिया है व्यर्थ की, उसमें विपरीत लड़ने के लिए अपने को तैयार कर रहे हैं! अगर किसी ने फिर वापस लौटकर लग जाते हैं, अपने किनारे पर लग जाते हैं।
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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