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अंतर्यात्रा का विज्ञान
लिखी ! वह उनसे लिखवाई गई। सिर्फ मीडियम की तरह उन्होंने उसमें काम किया। उन्हें कुछ स्मरण नहीं कि उन्होंने कब लिखी। वे यह भी नहीं कहते कि मैं उसका लेखक हूं या नहीं।
लीडबीटर, एनीबीसेंट और थियोसाफिस्टों ने कृष्णमूर्ति को बहुत ही अचेतन मार्गों से वहां पहुंचाया, जहां पहुंचकर, जहां जागकर उन्होंने पाया कि किसी मार्ग की कोई जरूरत नहीं है । लेकिन वे भी मार्गों से पहुंचे हैं।
आज जब वे लोगों से कह देते हैं, कोई मार्ग नहीं है, कोई विधि, कोई व्यवस्था नहीं है, तो सुनने वालों का इतना अहित हो जाता है। कि जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है।
कृष्णमूर्ति के सत्यों ने न मालूम कितने लोगों को भयंकर हानियां पहुंचाई हैं। और उसके कारण हैं। उनका कोई कसूर नहीं है। उन्होंने आंख खोली और पाया कि वे बगीचे में हैं। वे आपसे भी कहते हैं, आंख खोलो और पाओगे कि तुम बगीचे में हो !
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नहीं! कई बार ऐसा होता है कि अतीत जन्मों में कोई साधक यात्रा कर चुका होता है, परिपक्व हो गई होती है यात्रा । जैसे निन्यानबे डिग्री पर पानी खौल रहा हो गर्म । अभी भाप नहीं बना है, एक डिग्री की कमी रह गई है। पिछले जन्म से वह निन्यानबे डिग्री की हालत लेकर आया है। और इस जन्म में कुछ छोटी-सी घटना हो जाए कि एक डिग्री गर्मी पूरी हो जाए कि वह भाप बनना शुरू हो जाए। और आप उससे कहें कि मैं कैसे गर्म होऊं ? तो वह कहे, कुछ खांस करने की जरूरत नहीं है। जरा आकर धूप में, खुले आकाश में खड़े हो जाओ; भाप बन जाओगे । और आप जमे हुए बरफ के पत्थर हैं। आप खड़े हो जाना धूप में, कुछ न होगा। बरफ तो कुछ सिकुड़ा हुआ था, एक जगह में सीमित था; और पानी बनकर और फैल जाएंगे; ज्यादा जमीन घेर लेंगे; और मुसीबत खड़ी हो जाएगी।
आपके लिए तो भयंकर आग की भट्ठियां चाहिए। एटामिक भट्ठियां ! तब, तब शायद आप भाप बन पाएं उतनी ही तीव्रता से ।
इसलिए कई बार पिछले जन्म से आया हुआ साधक, अगर बहुत यात्रा पूरी कर चुका है; इंच, आधा इंच बाकी रह गया है; जरा-सा झटका, जरा-सी बात, कोई भी जरा-सी बात, जो हमें लगेगा कि कैसे इससे हो सकता है...!
रिझाई ने कहा है, एक फकीर ने, जो कि जरा-सी बात से जाग गया। सोया है एक रात एक वृक्ष के तले। पतझड़ के दिन हैं और वृक्ष से पके पत्ते नीचे गिर रहे हैं। वह खड़ा होकर नाचने लगा और
गांव-गांव कहता फिरा कि अगर किसी को भी ज्ञान चाहिए हो, तो पतझड़ के समय में वृक्ष के नीचे सो जाए। और जब पके पत्ते नीचे गिरते हैं, तो ज्ञान घटित हो जाता है !
उसे हुआ। पका पत्ता टूटते देखकर उसके लिए सारी जिंदगी पके पत्ते की तरह टूट गई। मगर वह यात्रा कर चुका है निन्यानबे | दशमलव नौ डिग्री तक। नाइनटी नाइन प्वाइंट नाइन डिग्री पर वह जी रहा होगा। एक सूखा पत्ता गिरा और सौ डिग्री पूरी हो गई बात, वह भाप बनकर उड़ गया।
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उसका कोई कसूर नहीं है कि वह लोगों से कहता है, ज्ञान | चाहिए? पतझड़ में सूखे वृक्ष के नीचे बैठ जाओ, ध्यान करो। जब | सूखा पत्ता गिरे, मेडिटेट आन इट; उस पर ध्यान करो, ज्ञान हो
जाएगा।
जिन्होंने सुना, उन्होंने कई ने पतझड़ के पत्तों के नीचे बैठकर | कोशिश की। क्योंकि जब रिझाई जैसा आदमी कहता है, तो ठीक ही कहता है । और रिझाई की आंखें गवाही देती हैं कि वह ठीक कहता है। झूठ कहने का कोई कारण भी तो नहीं है। उसका आनंद कहता है कि उसे घटना घटी है। और सारा गांव जानता है उसका कि पतझड़ में घटी है और सूखे पत्ते गिरते थे रात में, तब घटी है। सुबह हमने इसे नाचते हुए पाया। सांझ उदास था, सुबह आनंद से | भरा था। रात कुछ हुआ है; एक्सप्लोजन हुआ है। झूठ तो कहता नहीं। वह आदमी गवाह है; उसकी जिंदगी गवाह है; उसकी रोशनी, उसकी सुगंध गवाह है। लेकिन फिर अनेक लोगों ने पत्तों | के नीचे रात-रात गुजारी; बहुत ध्यान किया। कुछ न हुआ। सिर्फ | सूखे पत्ते गिरते रहे ! सुबह वे और उदास होकर घर लौट आए। रातभर की नींद और खराब हो गई । .
लोगों के स्थान हैं उनकी यात्राओं के।
कृष्ण जो कह रहे हैं, वह अर्जुन के लिए कह रहे हैं । अर्जुन जहां खड़ा है वहां से वहां से यात्रा शुरू करनी है।
आसन उपयोगी होगा। स्थान, समय उपयोगी होगा। दोपहर में | बैठकर ध्यान करें, बहुत कठिनाई हो जाएगी। कोई कारण नहीं है। क्योंकि दोपहर कोई ध्यान का दुश्मन नहीं है। लेकिन बहुत कठिनाई हो जाएगी।
सूर्य जब पूरा उत्तप्त है और सिर के ऊपर आ जाता है, तब सिर को शांत करना बहुत कठिन है। सूर्य जब जाग रहा है सुबह, बालक है अभी अभी गर्मी भी नहीं है उसमें। और जब उसकी किरणें आप पर सीधी नहीं पड़तीं, आड़ी पड़ती हैं; आपके शरीर के आर-पार