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गीता दर्शन भाग-3
करती है।
अगर महावीर की मूर्ति को गौर से देखेंगे, तो आपको क्या दिखाई | की एक दीवाल खड़ी हो जाती है, जिसको पार नहीं किया जा पड़ेगा कि महावीर का पूरा शरीर एक विद्युत सर्किट है। दोनों पैर जुड़े | सकता। इस क्षण में अंतर-आकाश में यात्रा आसान हो जाती है। हुए हैं। दोनों पैरों की गद्दियां घुटनों के पास जुड़ी हुई हैं। | अति आसान हो जाती है।
विद्यत के रिलीज के जो बिंदु हैं, वह हमेशा नुकीली चीजों से इसलिए कृष्णमूर्ति कितना ही कहें या कबीर कितना ही कहें, विद्युत बाहर गिरती है। गोल चीजों से कभी विद्युत बाहर नहीं थोड़ी सावधानी से उनकी बात सुनना। उनकी बात खतरे में ले जा गिरती, सिर्फ नुकीली चीजों से विद्युत बाहर यात्रा करती है। जितनी सकती है। वे कह दें, आसन से क्या होगा? वे कह दें कि इससे नुकीली चीज हो, उतनी ज्यादा विद्युत बाहर यात्रा करती है। क्या होगा, उससे क्या होगा? मेथडॉलाजी से क्या होगा? अपनी
जननेंद्रिय से सर्वाधिक विद्युत बाहर जाती है। और इसीलिए तरफ से वे ठीक कह रहे हैं। उनका अंतर-आकाश और उनकी संभोग के बाद आप इतने थके हुए और इतने बेचैन और उद्विग्न हो अंतर्विद्युत की यात्रा शुरू हो गई है। शायद उन्हें पता भी नहीं हो। गए होते हैं। क्योंकि आपका शरीर बहुत-सी विद्युत खो दिया होता | - कृष्णमूर्ति के साथ तो निश्चित ही यह बात है कि कृष्णमूर्ति के है। संभोग के बाद आपका ब्लड-प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ गया होता साथ जो प्रयोग उनके बचपन में किए गए, वे करीब-करीब उनको है। हृदय की धड़कन बढ़ गई होती है। आपकी नाड़ी की गति बढ़ | बेहोश करके किए गए। इसलिए उनको कुछ भी पता नहीं है कि वे गई होती है। और पीछे निपट थकान हाथ लगती है। उसका | | किन प्रयोगों से गुजरे हैं। कांशसली उन्हें कुछ भी पता नहीं है, कारण? उसका कारण सिर्फ वीर्य का स्खलन नहीं है। वीर्य के सचेतन रूप से, कि वे किन प्रयोगों से गुजरे हैं; और जहां पहुंचे स्खलन के साथ-साथ जननेंद्रिय बहत बड़ी मात्रा में विद्यत को हैं, किस मार्ग से गुजरकर पहुंचे हैं। शरीर के बाहर फेंक रही है। उस विद्युत के भी पाकेट्स हैं। उनकी हालत करीब-करीब वैसी है, जैसे हम किसी आदमी को
इसलिए सिद्धासन या पद्मासन में जो बैठने का ढंग है, एड़ियां | | सोया हुआ उसके घर से उठा लाएं और बगीचे में उसकी खाट रख उन बिंदुओं को दबा देती हैं, जहां से जननेंद्रिय तक विद्युत पहुंचती | | दें। और बगीचे में उसकी आंख खुले और वह कहे कि ठीक। और है। और उसका पहुंचना बंद हो जाता है। दोनों पैर शरीर के साथ कोई पूछे उससे कि बगीचे में कैसे आऊं? तो वह कहे, कोई रास्ता जुड़ जाते हैं और दोनों पैर से जो विद्युत निकलती है, वह शरीर नहीं है; बस आ जाओ। कोई मार्ग नहीं है, बस आ जाओ। जागो, वापस एब्जा कर लेता है, फिर पुनः अपने भीतर ले लेता है। दोनों और बगीचे में पाओगे कि तुम हो। वे ठीक कह रहे हैं। वे गलत हाथ जुड़े होते हैं, इसलिए दोनों हाथों की विद्युत बाहर नहीं फिकती, नहीं कह रहे हैं। एक हाथ से दूसरे हाथ में यात्रा कर जाती है। पूरा शरीर एक सर्किट लेकिन कृष्णमूर्ति को बगीचे में ले आने वाले कुछ लोग थे, में है।
एनीबीसेंट थी, लीडबीटर था। उन लोगों ने कृष्णमूर्ति के बचपन में, महावीर की या बुद्ध की मूर्ति आप देखेंगे, तो खयाल में आएगा | जब करीब-करीब कोई होश उनके पास नहीं था...। इसलिए कि पूरा शरीर एक विद्युत चक्र में है। इस बने हुए विद्युत वर्तुल के कृष्णमूर्ति को बचपन की कोई याद नहीं है, बचपन की कोई भीतर इंद्रियों को सिकोड़ लेना अत्यंत आसान है। अत्यंत आसान | याददाश्त नहीं है। बचपन और उनके बीच में एक भारी बैरियर है, है, बहुत सरल है।
एक भारी दीवाल खड़ी हो गई है। यह विद्युत का जो वर्तुल निर्मित हो जाता है, यह आपके और कृष्णमूर्ति को अपनी मातृभाषा का कोई भी स्मरण नहीं है। आपकी इंद्रियों के बीच एक प्रोटेक्शन, एक दीवाल बन जाता है। यद्यपि नौ साल का.या दस साल का बच्चा अपनी मातृभाषा को आप अलग कट जाते हैं, इंद्रियां अलग पड़ी रह जाती हैं। कभी नहीं भूलता। दस साल का बच्चा अपनी मातृभाषा काफी
ध्यान रहे, विद्युत का स्रोत आपके भीतर है। इंद्रियां केवल | सीख चुका होता है—काफी, करीब-करीब पूरी। लेकिन कृष्णमूर्ति विद्युत का उपयोग करती हैं। और अगर बीच में वर्तुल बन को उसकी कोई याददाश्त नहीं है। जाए-जो कि बिलकुल एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, एक साइंटिफिक | कृष्णमूर्ति के नाम से एक किताब है, एट दि फीट आफ दि प्रोसेस है-बीच में वर्तुल बन जाए, तो इंद्रियां बाहर रह जाती हैं, मास्टर-श्री गुरु चरणों में। नाम उस पर कृष्णमूर्ति का है। वह तब आप भीतर रह जाते हैं। और आपके और इंद्रियों के बीच में विद्युत लिखी गई। लेकिन वे कहते हैं कि मुझे कुछ याद नहीं, मैंने कब