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________________ - अंतर्यात्रा का विज्ञान - परिणाम होते हैं। जैसे उसने दांतों के आस-पास ऐसी जगह खोज आदमी के दांतों की बीमारियों में नब्बे प्रतिशत कारण दांतों के ली जबड़ों में, जिनमें आदमी की हिंसा संगृहीत है। आपको खयाल आस-पास बने हिंसा के पाकेट हैं। इसलिए जानवरों के दांत जैसे में भी नहीं आ सकता। और अगर कोई आदमी बहुत वायलेंट है, स्वस्थ हैं! जरा कुत्ते के दांत खोलकर देख लेना, तो खुद शर्म बहत हिंसक है. तो थियोडर रेक उसकी जो चिकित्सा करेगा. वह | आएगी किन कभी दतोन करता. न कभी मंजन करता. न कोई बहुत अनूठी है। वह यह है कि उसको लिटाकर वह सिर्फ उसके टुथपेस्ट का, किसी मार्क के टुथपेस्ट का कोई उपयोग करता। ऐसी जबड़ों के विशेष स्थानों को दबाएगा, इतने जोर से कि वह आदमी चमक, ऐसी रौनक, ऐसी सफेदी! बात क्या है? बात गहरे में चीखेगा, चिल्लाएगा, मारने-पीटने लगेगा। और अक्सर यह होता | शारीरिक कम और मनस से ज्यादा जडी हई है। था कि थियोडर रेक को उसके मरीज बुरी तरह पीटकर जाते थे, हिंसा के पाकेट्स कुत्ते के दांत में नहीं हैं। और अगर कुत्तों के दांतों मारकर जाते थे। लेकिन दूसरे दिन से ही उनमें अंतर होना शुरू हो में कभी हिंसा के पाकेट्स हो जाते हैं, तो वे खेलकर उसको रिलीज जाता। उनकी हिंसा में जैसे बुनियादी फर्क हो गया। कर लेते हैं। आपने कुत्तों को देखा होगा, खेलने में काटेंगे। काटते रेक का कहना था, और कहना ठीक है, कि हिंसा का जो नहीं हैं, सिर्फ भरेंगे मुंह, छोड़ देंगे। वे रिलीज कर रहे हैं। खेलकर बुनियादी केंद्र है, वे दांत हैं—समस्त जानवरों में, आदमियों में भी। हिंसा को मुक्त कर लेंगे। तो जानवरों के दांत जैसे स्वस्थ हैं, आदमी क्योंकि आदमी सिर्फ एक जानवरों की श्रृंखला में आगे आ गया सपने में भी नहीं सोच सकता कि उतने स्वस्थ दांत पा जाए। जानवर है, उससे ज्यादा नहीं। आपकी अंगुलियों के आस-पास भी हिंसा के पाकेट्स इकट्ठे समस्त जानवर दांत से ही हिंसा करते हैं। दांत या नाखून, बस दो | | होते हैं। वहां भी हिंसा है। वह भी हमने बंद कर दी है। अब हम ही हिस्से हैं। आदमी ने हिंसा की ऐसी तरकीबें खोज ली हैं, जिनमें | अंगुलियों से किसी को चीरते-फाड़ते नहीं। कभी-कभी गुस्से में हो नाखून की भी जरूरत नहीं है, दांत की भी जरूरत नहीं है। लेकिन | जाता है, किसी का कपड़ा फाड़ देते हैं, नाखून चुभा देते हैं, अलग शरीर का जो मैकेनिज्म है, शरीर का जो यंत्र है, उसे कुछ भी पता | बात है। लेकिन सामान्यतया, हम आमतौर से दूसरी चीजों का नहीं कि आपने छुरी बना ली है। उसे कुछ भी पता नहीं कि आपने | उपयोग करते हैं, सब्स्टीटयूट। हमने बुनियादी प्रकृति की चीजों का दांतों की जगह औजार बना लिए हैं, जिनसे आप आदमी को ज्यादा उपयोग बंद कर दिया है। तो हमारी अंगुलियों के आस-पास हिंसा सुविधा से काट सकते हैं। शरीर को कोई पता नहीं है। शरीर के अंग इकट्ठी हो जाएगी। तो, सेल तो, पुराने ढंग से ही काम करते चले जाते हैं। आदमी की अंगुलियों को देखकर कहा जा सकता है कि उसके ___ इसलिए जब भी आप हिंसा से भरते हैं, खयाल करना, आपके चित्त में कितनी हिंसा है। उसकी अंगुलियों के मोड़ बता देंगे कि दांतों में कंपन शुरू हो जाता है। आपके दांतों में विशेष विद्युत उसके भीतर कितनी हिंसा है। क्योंकि अंगुलियां अकारण नहीं दौड़नी शुरू हो जाती है। दांत पीसने लगते हैं। आप कहते हैं, क्रोध मुड़ती हैं। में इतना आ गया कि दांत पीसने लगा। दांत पीसने का क्रोध से क्या तो बुद्ध की अंगुलियों का मोड़ अलग होगा। अलग होगा ही। लेना-देना! आप मजे से क्रोध में आइए, दांत मत पीसिए! लेकिन कोई हिंसा भीतर नहीं है। हाथ एक फूल की तरह खिल जाएगा। दांत पीसे बिना आप न बच सकेंगे, क्योंकि दांत में विद्युत दौड़नी | | अंगुलियों के भीतर कोई पाकेट्स नहीं हैं। शुरू हो गई। और ठीक ऐसे ही हमारे पूरे शरीर में पाकेट्स हैं। ऐसे बिंदु हैं, लेकिन दांत का उपयोग सभ्य आदमी करता नहीं। कभी-कभी | | जहां बहुत कुछ इकट्ठा है। अगर उन बिंदुओं को दबाया जा सके, असभ्य लोग कर लेते हैं कि क्रोध में आ जाएं, तो काट लें आपको। उन बिंदुओं को मुक्त किया जा सके, तो भेद पड़ेगा। सभ्य आदमी काटता नहीं। लेकिन दांतों को कुछ पता नहीं कि आप | | इस मुल्क ने जो योगासन खोजे, विशेष पद्धतियां बैठने की सभ्य हो गए हैं। जब आप नहीं काटते, तो दांतों में जो विद्युत पैदा खोजी...। अगर आपने बुद्ध या महावीर की मूर्ति देखी है, हो गई, जो काटने से रिलीज हो जाती, वह रिलीज नहीं हो पाएगी। | करीब-करीब सभी ने देखी होगी, गौर से नहीं देखी होगी। उन्होंने भी वह दांतों के मसूढ़ों के आस-पास संगृहीत होती चली जाएगी, गौर से नहीं देखी, जो रोज महावीर को नमस्कार करने मंदिर में जाते उसके पाकेट्स बन जाएंगे। हैं! लेकिन असली राज उस मूर्ति की व्यवस्था में छिपा हुआ है।
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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