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गीता दर्शन भाग-3>
इंद्रियां शिथिल होकर निष्क्रिय हो जाएंगी। तो वह जो चौबीस घंटे | है। एक घड़ी ऐसी आ जाती है कि शरीर की विद्युत का अंतर-वर्तुल विद्युत बाहर फिकती है, वह सब कंजर्व होगी, वह सब भीतर | निर्मित हो जाता है। और जो लोग भी परम शांति को उपलब्ध होते इकट्ठी होगी।
हैं, उनके हृदय में अंतर-वर्तुल निर्मित हो जाता है। विद्युत अगर आप ऐसी जगह बैठे हैं, जहां से विद्युत आपके शरीर के | अंतर-वर्तुल बना लेती है। फिर वे जमीन पर बैठ जाएं, तो उन्हें बाहर जा सके. तो आपको ठीक वैसा ही शॉक अनभव होगा. | कोई शॉक नहीं लगने वाला है। जैसा बिजली के तार को छूकर अनुभव होता है। और जो लोग | | लेकिन वह घटना अभी आपको नहीं घट गई है। आपके भीतर ध्यान में थोड़े गहरे गए हैं, उनमें से अनेकों का यह अनुभव है। कोई अंतर-वर्तुल नहीं है, कोई इनर सर्किट नहीं है। आपको तो मेरे पास सैकड़ों लोग हैं, जिनका यह अनुभव है कि अगर वे | अभी बाह्य-वर्तुल पर निर्भर रहना पड़ेगा। वह मजबूरी है; उससे गलत जगह बैठकर ध्यान किए हैं, तो उनको शॉक लगा है, उनको बचने का उपाय नहीं है; उससे पार होने का उपाय है। जो बचने की धक्का लगा है।
कोशिश करेगा, कि इसे बाई-पास कर जाएं, वह दिक्कत में जब आप बिजली का तार छूते हैं, अगर लकड़ी की खड़ाऊं पड़ेगा। उसके पार हो जाना ही उचित है। क्योंकि पार होकर ही . पहनकर छ लें, तो शॉक नहीं लगेगा। क्यों? शॉक बिजली की पात्रता निर्मित होती है। वजह से नहीं लगता, बिजली के तार को छूने से नहीं लगता शॉक। ___ तो कृष्ण कहते हैं, ऐसी आसनी पर बैठे, ऐसा आसन लगाए, शॉक लगता है, बिजली के तार से आपके भीतर बिजली आ जाती | ऐसी जमीन पर हो, ऊंचा न हो, नीचा न हो और तब, तब इंद्रियों है और झटके के साथ जमीन उसको खींच लेती है। वह जो जमीन | को सिकोड़ ले। खींचती है झटके के साथ, उसकी वजह से शॉक लगता है। अगर | और इंद्रियों को सिकोड़ना ऐसी स्थिति में आसान होता है। बाह्य आप खड़ाऊं पहने खड़े हैं, तो शॉक नहीं लगेगा। बिजली का तार विघ्न और बाधाओं को निषेध करने की व्यवस्था कर लेने पर आपने छू लिया है। वह नहीं लगेगा इसलिए कि जमीन उसे झटके इंद्रियों को सिकोड़ लेना आसान होता है। से खींच नहीं सकी और लकड़ी की खड़ाऊं ने बिजली को वापस कभी आपने खयाल न किया होगा, योग ने ऐसे आसन खोजे वर्तुल बनाकर लौटा दिया।
हैं, जो आपकी इंद्रियों को अंतर्मुखी करने में अदभुत रूप से शॉक लगता है वर्तुल के टूटने से, सर्किट टूटने से शॉक लगता | सहयोगी हो सकते हैं। इस तरह की मुद्राएं खोजी हैं, जो आपकी है। अगर बिजली एक वर्तुल बना ले, तो आपको कभी धक्का नहीं | | इंद्रियों को अंतर्मुखी करने में सहयोगी हो सकती हैं। बैठने के ऐसे लगता। और वर्तुल बनाने का एक ही उपाय है कि आप | | ढंग खोजे हैं, जो आपके शरीर के विशेष केंद्रों पर दबाव डालते हैं नान-कंडक्टर पर बैठे हों।
और उस दबाव का परिणाम आपकी विशेष इंद्रियों को शिथिल कर मृगचर्म नान-कंडक्टर है, सिंहचर्म नान-कंडक्टर है। बिजली जाना होता है। उसके पार नहीं जा सकती, वह बिजली को वापस लौटाता है। अभी अमेरिका में एक बहत बड़ा विचारक और वैज्ञानिक था. लकड़ी नान-कंडक्टर है, वह बिजली को वापस लौटा देती है। थियोडर रेक। उसने मनुष्य के शरीर के बाबत जितनी जानकारी की, खड़ाऊं नान-कंडक्टर है, वह बिजली को वापस लौटा देती है। कम लोगों ने की है। वह कहता था कि शरीर में ऐसे बिंदु हैं मनुष्य तो जो ध्यान कर रहा है, उसके लिए खड़ाऊं उपयोगी है। जो के, जिन बिंदुओं को दबाने से मनुष्य की वृत्तियों में बुनियादी अंतर
पर बैठना उपयोगी है। जो | पड़ता है। और यह कोई योगी नहीं था रेक। रेक तो एक मनसविद ध्यान कर रहा है, उसे मृगचर्म का उपयोग सहयोगी है। | था। फ्रायड के शिष्यों में से, बड़े शिष्यों में से एक था। और उसने
फिजूल लगेगा। अगर कबीर से पूछने जाएंगे, कृष्णमूर्ति से, वे हजारों लोगों को सहायता पहुंचाई। उसे कुछ पता नहीं था। काश, कहेंगे, बकवास है। लेकिन अगर वैज्ञानिक से पूछने जाएंगे, वह उसे पता होता तिब्बत और भारत में खोजे गए योगासनों का, तो कहेगा, सार्थक है बात। और सार्थक है।
| उसकी समझ बहुत गहरी हो जाती। एक घड़ी ऐसी आ जाती है, जहां बिलकुल बेकार है। लेकिन वह बिलकुल अंधेरे में टटोल रहा था, लेकिन उसने ठीक जगह वह घड़ी अभी आ नहीं गई है। वह घड़ी आ जाए, तब तक उपयोगी टटोल ली। उसने कुछ स्थान शरीर में खोज लिए, जिनको दबाने से
ध्यान कर