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________________ << अंतर्यात्रा का विज्ञान > इनकार किया है? क्योंकि ऊंचे जितने हम होंगे, उतनी श्रेष्ठतर तरंगें| | मृगचर्म की बात कही है। उसके भी कारण हैं। और कारण ऐसे मिल जाएंगी! | हैं, जो आज ज्यादा स्पष्ट हो सके हैं। इतने स्पष्ट कृष्ण के समय ___ तो वह भी आप ध्यान रख लें। ऊंचे पर श्रेष्ठतर तरंगें मिलेंगी, | | में भी नहीं थे। प्रतीति थी, प्रतीति थी कि कुछ फर्क पड़ता है। लेकिन लेकिन अगर आपकी पात्रता न हो, तो श्रेष्ठतर तरंगें भी सिर्फ | | किस कारण से पड़ता है, उसकी वैज्ञानिक स्थिति का कोई स्पष्ट आपके भीतर उत्पात पैदा करेंगी। आपकी पात्रता के साथ ही | बोध नहीं था। श्रेष्ठतर तरंगों को झेलने की क्षमता पैदा होती है। संन्यासी इस देश में हजारों, लाखों वर्षों से कहना चाहिए, आप कितना झेल सकते हैं? हम जहां जीते हैं, वही तल अभी लकड़ी की खड़ाऊं का उपयोग करता रहा है, अकारण नहीं। हमारे झेलने का तल है। जहां बैठकर आप दुकान करते हैं, भोजन मृगचर्म का उपयोग करता रहा है, अकारण नहीं। सिंहचर्म का करते हैं, बात करते हैं, जीते हैं जहां, प्रेम करते हैं, झगड़ते हैं जहां, । उपयोग करता रहा है, अकारण नहीं। लकड़ी के तख्त पर बैठकर वही आपके जीवन का तल है। उस तल से ही शुरू करना उचित | ध्यान करता रहा है, अकारण नहीं। कुछ प्रतीतियां खयाल में आनी है; न बहुत नीचे, न बहुत ऊपर। शुरू हो गई थीं कि भेद पड़ता है। ___ जहां आप हैं, वहीं आपकी ट्यूनिंग है। अभी आप वहीं से शुरू जो चीजें भी विद्युत के लिए नान-कंडक्टिव हैं, वे सभी ध्यान में करें। और जैसे-जैसे आपकी क्षमता बढ़े वैसे-वैसे ऊपर की यात्रा सहयोगी होती हैं। लेकिन अब इसके वैज्ञानिक कारण स्पष्ट हो हो सकती है। और जैसे-जैसे आपकी क्षमता बढ़े, तो आप गड्ढे में | सके हैं। आज विज्ञान कहता है कि जिन चीजों से भी विद्युत प्रवाहित बैठकर भी ध्यान कर सकते हैं। क्षमता बढ़े, तो ऊपर जा सकते हैं, होती है, उन पर बैठकर ध्यान करना खतरे से खाली नहीं है। क्यों? पर्वत शिखरों की यात्रा कर सकते हैं। क्योंकि जब आप गहरे ध्यान में लीन होते हैं, तो आपका शरीर एक पुराने तीर्थ इस हिसाब से बनाए गए थे कि जो श्रेष्ठतम तीर्थ हो, | बहुत अनूठे रूप से एक बहुत नए तरह की अंतर्विद्युत पैदा करता वह सबसे ऊपर हो। और धीरे-धीरे साधक यात्रा करे; धीरे-धीरे है, एक इनर इलेक्ट्रिसिटी पैदा करता है। जब आप पूरे ध्यान में होते यात्रा करे। वह आखिरी यात्रा कैलाश पर हो उसकी पूरी। वहां | | हैं, तो आपके शरीर की बाडी इलेक्ट्रिसिटी सक्रिय होती है। जाकर वह समाधि में लीन हो। वहां शुद्धतम तरंगें उसे उपलब्ध | | और सबके शरीर में विद्युत का बड़ा आगार है। हम सबके शरीर होंगी। लेकिन उसकी क्षमता भी निरंतर ऊंची उठती जानी चाहिए, | में विद्युत का बड़ा आगार है। उसी विद्युत से हम जीते हैं, चलते हैं, ताकि उतनी शुद्ध तरंगों को वह झेलने में समर्थ हो सके। अन्यथा | | उठते हैं, बैठते हैं। यह जो श्वास आप ले रहे हैं, वह सिर्फ आपके शुद्धतम को झेलना भी उत्पात का कारण हो सकता है। जितनी शरीर की विद्युत को आक्सीजन पहुंचाकर जीवित रखती है, और आपकी पात्रता नहीं है, उससे ज्यादा आपके ऊपर गिर पड़े, तो वह | | कुछ नहीं करती। वह आक्सीडाइजेशन करती है। आपको प्रतिपल • आपको हानि ही पहुंचाता है, लाभ नहीं। आपके शरीर की विद्युत को चलाए रखने के लिए आक्सीजन की सूफी फकीरों में गड्ढे में जाकर ध्यान करने की प्रक्रिया है, कुएं | जरूरत है, इसलिए श्वास के बिना आप जी नहीं सकते। और शरीर में जाकर ध्यान करने की प्रक्रिया है, नीचे जमीन में उतरकर ध्यान | | विद्युत का, कहना चाहिए, एक जेनेरेटर है। वहां पूरे समय विद्युत करने की प्रक्रिया है। लेकिन इस प्रक्रिया के लिए तभी आज्ञा दी पैदा हो रही है। इस विद्युत को ध्यान के समय में कंजरवेशन मिलता जाती है, जब कोई श्रेष्ठतम पर्वत शिखर पर ध्यान करने में समर्थ | है, संरक्षण मिलता है। हो जाता है-तब। यह क्यों? यह तब आज्ञा दी जाती है, जब वह । साधारणतः आप विद्युत को फेंक रहे हैं। मैंने इतना हाथ हिलाया, व्यक्ति इस स्थिति में पहुंच जाता है कि उसके आस-पास सब तरह तो भी मैंने विद्युत की एक मात्रा हाथ से बाहर फेंक दी। मैं एक शब्द की गलत तरंगें मौजद रहें. लेकिन वह अप्रभावित रह सके. तब बोला. तो उस शब्द को गति देने के लिए मेरे शरीर की विद्यत की उसे गड्ढे में बैठकर साधना करने की आज्ञा दी जाती है। एक मात्रा विनष्ट हुई। रास्ते पर आप चले, उठे, हिले, आपने कुछ कृष्ण ने अर्जुन को देखकर कहा है कि तू ऐसा आसन चुन, जो | भी किया कि शरीर की विद्युत की एक मात्रा उपयोग में आई। बहुत नीचा न हो, ऊंचा न हो, तिरछा-आड़ा न हो। वहां तू सरलता ___ लेकिन ध्यान में तो सब हिलन-डुलन बंद हो जाएगा। वाणी से शांत होने में सुगमता पाएगा। शांत होगी, विचार शून्य होंगे, शरीर निष्कंप होगा, चित्त मौन होगा,
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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