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< गीता दर्शन भाग-3
ध्यान रहे, कुछ भी नहीं करना इस पृथ्वी पर सबसे कठिन करने | हैं, पद्मासन कहते हैं, वे न्यूनतम गुरुत्वाकर्षण के आसन हैं। और वाली बात है। इसलिए आप जिसको समझते हैं, कुछ भी न करना, | आज तो वैज्ञानिक भी स्वीकार करता है कि अगर सिद्धासन में वह कुछ भी न करना नहीं है।
आदमी बहुत दिन तक, बहुत समय तक रह सके, तो उसकी उम्र तो कृष्ण का यह वक्तव्य ऐसा लगेगा कि बड़ा साधारण है, | बढ़ जाएगी। बढ़ जाएगी सिर्फ इसलिए कि उसके शरीर और जमीन लेकिन साधारण नहीं है। अगर समतुल आसन हो और आपके | | के आकर्षण के बीच जो संघर्ष है, वह कम से कम होगा और शरीर शरीर के दोनों हिस्से बिलकुल समान स्थिति में भूमि पर हों, कोई कम से कम जरा-जीर्ण होगा। हिस्सा नीचा-ऊपर न हो, आपके शरीर को झुकना न पड़े, तो उसके । अगर कृष्ण कहते हैं कि ऐसी भूमि चुनना ध्यान के लिए, जो बहुत वैज्ञानिक कारण हैं।
नीची-ऊंची न हो; बहुत ऊंची भी न हो, बहुत नीची भी न हो। जमीन चौबीस घंटे प्रतिपल अपने ग्रेविटेशन से हमारे शरीर को | उसके भी कारण हैं। एक आदमी गड्ढे में भी बैठ सकता है। एक प्रभावित करती है। उसका गुरुत्वाकर्षण पूरे समय काम कर रहा है। आदमी एक मचान बांधकर भी बैठ सकता है। खतरे क्या हैं? अगर जब आप बिलकुल समतुल होते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण न्यूनतम होता| आप गड्ढे में बैठ जाते हैं, जमीन के नीचे बैठ जाते हैं, तो एक दूसरे है, मिनिमम होता है। जब आप जरा भी तिरछे होते हैं, तो नियम पर ध्यान दे देना जरूरी है। गरुत्वाकर्षण बढ जाता है. क्योंकि गरुत्वाकर्षण का और आपके | मैं यहां बोल रहा हूं, इस माइक को थोड़ा मैं नीचे कर लूं, अपने शरीर का संबंध बढ़ जाता है। अगर मैं बिलकुल सीधे आसन में हाथ के तल पर ले आऊं, तो मेरी आवाज इस माइक के ऊपर से बैठा हुआ हूं, तो गुरुत्वाकर्षण बिलकुल सीधी रेखा में, सिर्फ रीढ़ निकल जाएगी। मेरी ध्वनि तरंगें इसके ऊपर से निकल जाएंगी। यह को ही प्रभावित करता है। अगर मैं जरा झुक गया, तो जितना मैं आवाज मेरी ठीक से नहीं पकड़ पाएगा। इसे मैं बहुत ऊंचा कर दूं, झुक गया, पृथ्वी उतने ही हिस्से में कोण बनाकर गुरुत्वाकर्षण से तो भी मेरी ध्वनि तरंगें नीचे से निकल जाएंगी। यह माइक उन्हें शरीर को प्रभावित करने लगती है।
पकड़ नहीं पाएगा। यह माइक मेरी ध्वनि तरंगों को तभी ठीक से तिरछे खड़े होकर आप जल्दी थक जाएंगे, सीधे पकडेगा, जब यह ठीक समानांतर. वाणी की तरंगों के समानांतर बैठकर आप कम थकेंगे। तिरछे बैठकर आप जल्दी थक जाएंगे। | होगा। मेरे होंठों के जितने समानांतर होगा, उतनी ही सुविधा होगी जमीन आपको ज्यादा खींचेगी। इसलिए लेटकर आप विश्राम पा | | इसे मेरी ध्वनि पकड़ लेने के लिए। जाते हैं, क्योंकि लेटकर आप जरा भी तिरछे नहीं होते, पूरी जमीन __पूरी पृथ्वी पूरे समय अनंत तरह की तरंगों से प्रवाहित है। अनंत का गुरुत्वाकर्षण आपके शरीर पर समान होता है।
तरंगें चारों ओर फैल रही हैं। इन तरंगों में कई वजन की तरंगें, कई समान गरुत्वाकर्षण आधार है कष्ण के इस वक्तव्य का। जरूरी भार की तरंगें हैं। और यह बडे आश्चर्य की बात है कि जितने बरे नहीं है कि कृष्ण को गुरुत्वाकर्षण का कोई पता हो; आवश्यक भी | विचारों की तरंगें हैं, वे उतनी ही भारी हैं, उतनी ही हैवी हैं। जितने नहीं है। कोई न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण को पैदा नहीं किया है। न्यूटन शुभ विचारों की तरंगें हैं, उतनी हलकी हैं, निर्भार हैं। नहीं था, तो भी गुरुत्वाकर्षण था। शब्द नहीं था हमारे पास कि क्या अगर आप एक गड्ढे में बैठकर ध्यान करते हैं, कुएं में बैठकर है। लेकिन इतना पता था कि जमीन खींचती है, और शरीर को | ध्यान करते हैं, तो आपके संपर्क में इस पृथ्वी पर उठने वाली जितनी चौबीस घंटे प्रतिपल खींचती है।
निम्नतम तरंगें हैं, उनसे ही आपका संपर्क हो पाएगा। वे तो कुएं में शरीर को हम ऐसी स्थिति में रख सकते हैं कि जमीन का उतर जाएंगी. श्रेष्ठ तरंगें कएं के ऊपर से ही प्रवाहित होती रहेंगी। अधिकतम आकर्षण शरीर पर हो। और जहां शरीर पर अधिकतम | इसलिए पहाड़ों पर लोगों ने यात्रा की। पहाड़ों पर यात्रा का आकर्षण होगा, वहां शरीर जल्दी थकेगा, बेचैन होगा, परेशान | | कारण था। कारण थी ऊंचाई, और ऊंचाई से तरंगों का भेद। होगा और चित्त को थिर करने में आपके लिए कठिनाई | तरंगों की अपनी पूरी स्थितियां हैं। हर तल पर विभिन्न प्रकार की होगी-कृष्ण के लिए नहीं।
| तरंगें यात्रा कर रही हैं। और एक तरह की तरंग एक सतह पर यात्रा शरीर ऐसी स्थिति में हो सकता है, जहां गुरुत्वाकर्षण न्यूनतम करती है। तो गड्ढे के लिए इनकार किया है। है, मिनिमम है। जिसको हम सिद्धासन कहते हैं, सुखासन कहते। लेकिन आप पूछेगे कि फिर बहुत ऊंची जगह के लिए क्यों