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गीता दर्शन भाग - 3 >
झांका जा सके, तो आपको पता चल जाएगा, वे किसका ध्यान कर रहे हैं! किसका ध्यान कर रहे हैं, पता चल जाएगा।
नानक एक गांव में ठहरे हैं। और नानक कहते हैं, न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान है। तो गांव का मुसलमान नवाब नाराज हो गया। उसने कहा, बुला लाओ उस फकीर को कैसे कहता है ? किस हिम्मत से कहता है कि न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान है?
नानक आए। उस नवाब ने पूछा कि मैंने सुना है, तुम कहते हो, न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान? नानक ने कहा, हां, न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान। तो तुम कौन हो ? तो नानक ने कहा कि मैंने बहुत खोजा, बहुत खोजा । चमड़ी, हड्डी, मांस, मज्जा, वहां तक तो मुझे लगा कि हां, हिंदू भी हो सकता है, मुसलमान भी हो सकता है। लेकिन वहां तक मैं नहीं था । और जब उसके पार मैं गया, तो मैंने पाया कि वहां तो कोई हिंदू-मुसलमान नहीं है!
तो उस नवाब ने कहा कि फिर तुम हमारे साथ मस्जिद में नमाज पढ़ने चलोगे? क्योंकि जब कोई हिंदू-मुसलमान नहीं, तो मस्जिद में जाने में एतराज नहीं कर सकते हो। नानक ने कहा, एतराज ! मैं तो यह पूछने ही आया था कि मस्जिद में ठहरूं, तो आपको कोई एतराज तो नहीं है?
नवाब थोड़ा चिंतित हुआ, एक हिंदू कहे ! पर उसने कहा कि देखें, परीक्षा कर लेनी जरूरी है। मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए ले गया नानक को । नवाब तो मस्जिद में नमाज पढ़ने लगा, नानक पीछे खड़े होकर हंसने लगे। तो नवाब को बड़ा क्रोध आया। हालांकि नमाज पढ़ने वाले को क्रोध आना नहीं चाहिए। लेकिन ना कोई पढ़े तब न!
बड़ा क्रोध आया और जैसे क्रोध बढ़ने लगा, नानक की हंसी बढ़ने लगी। अब नमाज पूरी करनी बड़ी मुश्किल पड़ गई। तबियत तो होने लगी, गर्दन दबा दो इस फकीर की। लेकिन नमाज पूरी करनी जरूरी थी। बीच में तोड़ा नहीं जा सकता नमाज को । तो जल्दी पूरी की, जैसा कि अधिक लोग करते हैं।
पूजा अधिक लोग जल्दी करते हैं । इतने जल्दी करते हैं कि कोई भी शार्ट कट मिल जाए, तो जल्दी छलांग लगाकर वे पूजा निपटा देते हैं। लांग रूट से पूजा में शायद ही कोई जाता हो । शार्ट कट सबने अपने-अपने बनाए हुए हैं, उनसे वे निकल जाते हैं, तत्काल ! बाई पास! पूजा को निपटाकर वे भागे, तो फिर लौटकर नहीं देखते पूजा की तरफ। एक मजबूरी, एक काम, उसे निपटा देना है ! नवाब ने जल्दी-जल्दी नमाज पूरी की और आकर नानक से कहा |
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कि बेईमान निकले, धोखेबाज निकले। तुमने कहा था, नमाज में साथ दूंगा। साथ न दिया । नानक ने कहा, मैंने कहा था नमाज में साथ दूंगा, लेकिन तुमने नमाज ही न पढ़ी, साथ किसका देता? तुम तो न मालूम क्या-क्या कर रहे थे। कभी मेरी तरफ देखते थे। कभी नाराज होते थे। कभी मुट्ठियां बांधते थे। कभी दांत पीसते थे। यह कैसी नमाज पढ़ रहे थे? मैंने कहा कि ऐसी नमाज तो मैं नहीं जानता। साथ भी कैसे दूं ! और सच, भीतर तुमने एक भी बार अल्लाह का नाम लिया? क्योंकि जहां तक मैं देख पाया, मैंने देखा कि तुम काबुल के बाजार में घोड़े खरीद रहे हो!
नवाब तो मुश्किल में पड़ गया। उसने कहा, क्या कहते हो ! काबुल के बाजार में घोड़े ! बात तो सच ही कहते हो। कई दिन से सोच रहा हूं कि अच्छे घोड़े पास में नहीं हैं। तो नमाज के वक्त फुरसत का समय मिल जाता है। और तो काम में लगा रहता हूं। | तो अक्सर ये काबुल के घोड़े मुझे नमाज के वक्त जरूर सताते हैं। मैं खरीद रहा था। तुम ठीक कहते हो। मुझे माफ करो। मैंने नमाज नहीं पढ़ी, सिर्फ काबुल के बाजार में घोड़े खरीदे ।
आप जब प्रभु का स्मरण कर रहे हैं, तो ध्यान रखना, प्रभु को छोड़कर और सब कुछ कर रहे होंगे। प्रभु को तो आप जानते नहीं, | स्मरण कैसे करिएगा? ध्यान कैसे करिएगा ?
कृष्ण कहते हैं, ऐसा पुरुष – यह शर्त है ध्यान की, इतनी शर्त पूरी हो, तो ही प्रभु का ध्यान होता है, नहीं तो ध्यान नहीं होता। हां, और चीजों का ध्यान हो सकता है। प्रभु का ध्यान, उसकी शर्त-समत्व जो उपलब्ध हुआ, निष्कंप जिसका चित्त हुआ, ऐसा व्यक्ति फिर एकांत में, अंतर - गुहा में प्रभु को ध्याता है। फिर | प्रभु ही प्रभु चारों तरफ दिखाई पड़ता है। खुद तो खोजे से नहीं | मिलता, प्रभु ही प्रभु दिखाई पड़ता है। उसकी ही स्मृति रोम-रोम में गूंजने लगती है। उसका ही स्वाद प्राणों के कोने-कोने तक तिर जाता है। उसकी ही धुन बजने लगती है रोएं रोएं में। श्वास- श्वास में वही । तब ध्यान है
ध्यान का अर्थ है, जिसके साथ हम आत्मसात होकर एक हो जाएं। नहीं तो ध्यान नहीं है। अगर आप बच रहे, तो ध्यान नहीं है। ध्यान का अर्थ है, जिसके साथ हम एक हो जाएं। ध्यान का अर्थ है कि कोई आपको काटे, तो आपके मुंह से निकले कि प्रभु को | क्यों काट रहे हो ! ध्यान का अर्थ है कि कोई आपके चरणों में सिर रख दे, तो आप जानें कि प्रभु को नमस्कार किया गया है । सोचें नहीं, जानें। आपका रोआं- रोआं प्रभु से एक हो जाए। लेकिन यह
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