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< हृदय की अंतर-गुफा -
लग होकर
घटना तो एकांत में घटती है। इनर अलोननेस, वह जो भीतरी एकांत है। वे उनके लक्षण हैं। अगर आप घडीभर एकांत में रह जाएं, तो गुहा है, जहां सब दुनिया खो जाती, बाहर समाप्त हो जाता। मित्र, | | आपका रो-रोआं आनंद की पुलक से भर जाएगा। और आप प्रियजन, शत्रु सब छूट जाते। धन, दौलत, मकान सब खो जाते। घडीभर अकेलेपन में रह जाएं, तो आपका रो-रोआं थका और
और आखिरी पड़ाव पर स्वयं भी खो जाते हैं आप। क्योंकि उस | | उदास, और कुम्हलाए हुए पत्तों की तरह आप झुक जाएंगे। स्वयं की भीतर कोई जरूरत नहीं है, बाहर जरूरत है। अकेलेपन में उदासी पकड़ती है, क्योंकि अकेलेपन में दूसरों की
अगर ठीक से समझें, तो वह जिसको आप कहते हैं मैं, वह याद आती है। और एकांत में आनंद आ जाता है, क्योंकि एकांत में साइनबोर्ड है, जो घर के बाहर लगाने के लिए दूसरों के काम पड़ता प्रभु से मिलन होता है। वही आनंद है, और कोई आनंद नहीं है। है। आपने कभी खयाल किया कि जब आप अपने दरवाजे के भीतर तो अगर आपको अकेले बैठे हुए उदासी मालूम होने लगे, तो घुसते हैं, तो साइनबोर्ड को अपनी छाती पर लटकाकर मकान के आप समझना कि यह एकांत नहीं है; यह दूसरों की याद आ रही है भीतर नहीं जाते। क्यों? आपका ही घर है, यहां साइनबोर्ड को ले | | आपको। और एकांत की खोज करना। और एकांत खोजा जा जाने की क्या जरूरत है? साइनबोर्ड तो दरवाजे की चौखट पर लगा| सकता है। देते हैं। बाहर से जाने वाले, राह से गुजरने वाले, औरों को पता ध्यान कहें, स्मरण कहें, सुरति कहें, नाम कहें, कोई भी, सब चले कि कौन यहां रहता है। आप अपना साइनबोर्ड अपनी छाती | एकांत की खोज है। इस बात की खोज है कि मैं उस जगह पहुंच पर लटकाकर घर के भीतर नहीं जाते।
जाऊं, जहां कोई रूप-रेखा न रह जाए दूसरे की। और जहां दूसरे वह जिसको हम कहते हैं, मैं, नाम-धाम, पता-ठिकाना, वह भी | की कोई रूप-रेखा नहीं रह जाती, वहां स्वयं की भी रूप-रेखा के एक साइनबोर्ड है बहुत सूक्ष्म, जो हमने दूसरों के लिए लगाया है। बचने का कोई कारण नहीं रह जाता। सब हो जाता है निराकार। जब भीतर के एकांत में कोई प्रवेश करता है, तो उसे ले जाने की उस निराकार क्षण में ईश्वर को ध्याया जाता है, जाना जाता है, कोई भी जरूरत नहीं पड़ती। वहां आपकी भी कोई जरूरत नहीं है।।
खते उसे। वह परिचय आप भी वहां शून्यवत हो जाते हैं। उस शून्यवत एकाकार स्थिति में | नहीं है। हम उसके साथ एकमेक होकर जानते हैं। वह पहचान नहीं प्रभु को ध्याया जाता है।
है दूर से, बाहर से, अलग से। वह एक होकर ही जान लेना है। यह एकांत जंगल में, अरण्य में भाग जाने वाला एकांत नहीं, यह | हम वही होकर जानते हैं। स्वयं के भीतर प्रविष्ट हो जाने वाला एकांत है।
और जिस दिन कोई अपनी अंतर-गुहा में पहुंच जाता है, वह और कृष्ण ने यहां अर्जुन को जो कहा है, वह योग की परम स्वयं ही भगवान हो जाता है। उपलब्धि है। समस्त योग इसलिए है कि हम अंतर-गुफा में कैसे भगवान हो जाने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि वहां उसके और • प्रवेश करें। योग विधि है अंतर-गुफा में प्रवेश की। और अंतर-गुफा | भगवान के बीच कोई फासला नहीं रह जाता। और प्रत्येक व्यक्ति में प्रवेश के बाद जो प्रभु का ध्यान है, वह अनुभव है, वह प्रतीति की मंजिल यही है कि वह भगवान हो जाए। भगवान के होने के है, वह साक्षात्कार है।
पहले कोई पड़ाव मंजिल मत समझ लेना। सबके भीतर है वह गुफा। लेकिन सब अपनी गुफा के बाहर | निराकार हो जाने के पहले, कहीं रुक मत जाना। सब पड़ाव हैं। घूमते रहते हैं, कोई भीतर जाता नहीं। शायद हमें स्मरण ही नहीं रहा रुकना तो वहीं है, जहां स्वयं भी मिट जाए, सब मिट जाए; शून्य, है, क्योंकि न मालूम कितने जन्मों से हम बाहर घूमते हैं। और जब निराकार रह जाए। वही है परम आनंद। उस परम आनंद की दिशा भी एकांत होता है, तो हम अकेलेपन को एकांत समझ लेते हैं। और में ही कृष्ण अर्जुन को इस सूत्र में इशारा करते हैं। तब हम तत्काल अपने अकेलेपन को भरने के लिए कोई उपाय कर आज के लिए इतना ही। लेते हैं। पिक्चर देखने चले जाते हैं, कि रेडियो खोल लेते हैं, कि लेकिन उठेंगे नहीं। पांच मिनट उस अंतर-गुहा की तलाश में अखबार पढ़ने लगते हैं। कुछ नहीं सूझता, तो सो जाते हैं, सपने | | कीर्तन करेंगे, आप भी साथ दें। जो सुना, उसे भूल जाएं। जो देखने लगते हैं। मगर अपने अकेलेपन को जल्दी से भर लेते हैं। समझा, उसे थोड़ा पांच मिनट जीएं।
ध्यान रहे, अकेलापन सदा उदासी लाता है, एकांत आनंद लाता कोई उठेगा नहीं, कोई यहां-वहां हिलेगा नहीं। जिन मित्रों को भी
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