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________________ - हृदय की अंतर-गुफा - परमेश्वर के ध्यान में लगाए। एकांत में नहीं हैं। एकांत का तो अर्थ है कि भीतर एक ही स्वर बजे, कोई दूसरे की मौजूदगी न रह जाए भीतर। तो इससे उलटा भी हो सकता है। जिस म हां दो-तीन बातें कृष्ण कहते हैं, जो बड़ी विपरीत जाती आदमी को एकांत का रहस्य पता चल गया हो, वह भीड़ में खड़े 4 हुई मालूम पड़ेंगी। और ऐसे सूत्रों की बड़ी गलत | होकर भी एकांत में होता है। भीड़ कोई बाधा नहीं डालती। भीड़ व्याख्या की गई है। प्रकट व्याख्या मालूम पड़ती है, सदा बाहर है। कौन आपके भीतर प्रवेश कर सकता है? इसलिए गलती करने में आसानी भी हो जाती है। आप यहां बैठे हैं, इतनी भीड़ में बैठे हैं। आप अकेले हो सकते कहते हैं वह, वासना से रहित हुआ, संग्रह से मुक्त हुआ, हैं। भीड़ अपनी जगह बैठी है। कोई आपकी जगह पर नहीं चढ़ा समत्व को पाया हुआ, ऐसा जो योगी-चित्त है, वह एकांत में हुआ है। अपनी-अपनी जगह पर लोग बैठे हुए हैं। कोई चाहे, तो परमात्मा का स्मरण करे, परमात्मा को ध्याये, परमात्मा का ध्यान | भी आपकी जगह पर नहीं बैठ सकता है। अपनी-अपनी जगह पर करे; परम सत्ता की दिशा में गति करे। लोग हैं। अगर उनका हाथ भी आपको छू रहा है चारों तरफ से, तो एकांत में! तो इस सूत्र के गलत अर्थ बहुत आसान हो गए। तो | हाथ ही छू रहा है। हाथ का स्पर्श भीतर प्रवेश नहीं करता। भीतर यही तो अर्जुन कह रहा है कि मुझे जाने दो महाराज इस युद्ध से।। । | आप बिलकुल एकांत में हो सकते हैं। एकांत में जाऊं, चिंतन-मनन करूं, प्रभु का स्मरण करूं। जाने दो | एक ही स्वर हो भीतर, स्वयं के होने का; एक ही स्वाद हो भीतर, मुझे। कृष्ण फिर उसे रोक क्यों रहे हैं? फिर युद्धोन्मुख क्यों कर | | स्वयं के होने का; एक ही संगीत हो भीतर, स्वयं के होने का। दूसरे रहे हैं? फिर कर्मोन्मुख क्यों कर रहे हैं? फिर क्यों कह रहे हैं कि का कोई भी पता नहीं। कोसों तक नहीं, अनंत तक कोई भी पता नहीं। कर्म में रत रहकर तू जी? सम होकर, समत्व को पाकर, पर कर्म | भीतर कोई है ही नहीं दूसरा। आप बिलकुल अकेले हैं। में रत होकर। इस एकांत, इस आंतरिक, इनर एकांत का अर्थ और है, और एकांत! तो एकांत से कृष्ण का जो अर्थ है, वह समझ लेना बाह्य अकेलेपन का अर्थ और है। भीड़ से भाग जाना बड़ी सरल चाहिए। बात है, लेकिन स्वयं के भीतर से भीड़ को बाहर निकाल देना बहुत एकांत से अर्थ अकेलापन नहीं है। एकांत से अर्थ अकेलापन कठिन बात है। नहीं है, आइसोलेशन नहीं है। एकांत से अर्थ लोनलीनेस नहीं है। भीड़ से निकल जाने में कौन-सी कठिनाई है? दो पैर आपके एकांत से अर्थ है, अलोननेस। एकांत से अर्थ है, स्वयं होना, पास हैं, निकल भागिए! दो पैर काफी हैं भीड़ से बाहर निकलने के पर-निर्भर न होना। एकांत से अर्थ, दूसरे की अनुपस्थिति नहीं है। लिए, कोई कठिन बात है? दो पैर आपके पास हैं, निकल भागिए! .एकांत से अर्थ है, दूसरे की उपस्थिति की कोई जरूरत नहीं है। | मत रुकिए तब तक, जब तक कि भीड़न छंट जाए। एकांत में पहुंच इस फर्क को ठीक से समझ लें। जाएंगे? अकेलेपन वाले एकांत में पहुंच जाएंगे। आप जंगल में बैठे हैं। बिलकुल एकांत है। कोई नहीं चारों लेकिन भीड़ को भीतर से बाहर निकाल फेंकना अति कठिन तरफ। दूर कोसों तक कोई नहीं। फिर भी मैं नहीं मानता कि आप मामला है। पैर साथ न देंगे; कितना ही भागिए, भीतर की भीड़ एकांत में हो सकेंगे। आपके होने का ढंग भीड़ में होने का ढंग है। भीतर मौजूद रहेगी। जहां भी जाइएगा, साथ खड़ी हो जाएगी। जहां आप अकेले हो सकेंगे; एकांत में नहीं हो सकेंगे। अकेले तो प्रकट | भी वृक्ष के नीचे विश्राम करने बैठेंगे, भीतर के मित्र बात-चीत शुरू हैं। अकेले बैठे हैं। कोई नहीं दिखाई पड़ता आस-पास। लेकिन | कर देंगे कि कहिए, क्या हाल है! मौसम कैसा है? सब शुरू हो एकांत नहीं हो सकता। भीतर झांककर देखेंगे, तो उन सबको मौजूद जाएगा! बैठकखाना वापस आपके साथ भीतर मौजूद हो जाएगा। पाएंगे, जिनको गांव में, घर छोड़ आए हैं। मित्र भी वहां होंगे, शत्रु और कई बार तो ऐसा होगा कि जिनकी मौजूदगी में जिनका कोई भी वहां होंगे; प्रियजन भी वहां होंगे, परिवार भी वहां होगा; । पता नहीं चलता, उनकी गैर-मौजूदगी में उनका पता और भी ज्यादा दुकान-बाजार, काम-धंधा, सब वहां होगा। भीतर सब मौजूद चलता है! होंगे। पूरी भीड़ मौजूद होगी। तो अकेले में तो आप हैं, लेकिन | अपनी पत्नी के पास बैठे हैं घंटेभर, तो भूल भी जा सकते हैं कि 81
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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