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< हृदय की अंतर-गुफा >
होगा; वह शत्रु से भी काम ले रहा है, मुझसे भी काम ले रहा है। खिलाफ लड़ने को तत्पर थे। उसके अनंत हाथ हैं; वह हजार ढंग से काम ले रहा है। तब आपको सारा बंटवारा प्रियजनों का था। मजबूरी में कोई इस तरफ खड़ा शत्रु और मित्र बनाने की कोई जरूरत न रह जाएगी।
हो गया था, कोई उस तरफ। लेकिन सभी बेचैन थे। फिर भी अर्जुन इसका यह मतलब नहीं है कि आपके शत्रु और मित्र नहीं बनेंगे। सर्वाधिक बेचैन था। क्योंकि कहा जा सकता है कि अर्जुन उस युद्ध वे बनेंगे; वह उनकी मर्जी। आपको बनाने की कोई जरूरत न रह | में सर्वाधिक शुद्ध क्षत्रिय था। वह सर्वाधिक बेचैन हो उठा था। जाएगी। और आप दोनों के बीच समभाव रख सकेंगे। भीम उतना बेचैन नहीं है। उसे मित्र दिखाई ही पड़ नहीं रहे हैं। शत्रु यह समता अ तो भी मनुष्य योग में प्रतिष्ठित हो जाता है। इतने साफ दिखाई पड़ रहे हैं कि पहले इनको मिटा डालना उचित
इतने साफ दिखाई समत्व कहीं से आए: वही सार है।
है, फिर सोचा जाएगा। अर्जुन चिंता और संताप में पड़ा है। तो कृष्ण इस सूत्र में कहते हैं शत्रु और मित्र के बीच ठहर जाने __ कृष्ण का यह सूत्र अर्जुन के लिए विशेष है, मित्र और शत्रु के को। अर्जुन के लिए यह सूत्र काम का हो सकता है। उसकी सारी बीच समभाव। इसका मतलब है कि कोई फिक्र न करो, कौन मित्र तकलीफ गीता में यही है। उसको कष्ट यही हो रहा है कि उस तरफ है, कौन शत्रु है। दोनों के बीच तटस्थ हो जाओ। कौन अपना है, बहुत-से मित्र हैं, जिनको मारना पड़ेगा। शत्रु हैं, उनको मारना पड़े, कौन पराया है, इस भाषा में मत सोचो। यह भाषा ही गलत है। उसमें तो उसे अड़चन नहीं है; अर्जुन को अड़चन नहीं है। अगर योगी के लिए निश्चित ही गलत है। विभाजन साफ-साफ होता, तो बड़ी आसानी होती। मगर विभाजन __ और बड़े मजे की बात यही है कि अर्जुन तो केवल युद्ध से बचने बड़ा उलटा था। युद्ध बहुत अनूठा था। और इसीलिए गीता उस का उपाय चाहता था। उसकी सारी जिज्ञासा निगेटिव, नकारात्मक युद्ध के मंथन से निकल सकी; नहीं तो नहीं निकल पाती। | थी। किसी तरह युद्ध से बचने का उपाय मिल जाए! लेकिन कृष्ण
युद्ध इसलिए अनूठा था कि उस तरफ भी मित्र खड़े थे, | जैसा शिक्षक ऐसा अवसर चूक नहीं सकता था। सगे-साथी खड़े थे, प्रियजन खड़े थे, परिवार के लोग थे। कोई भाई | ___ कृष्ण की सारी शिक्षा पाजिटिव है। कृष्ण की सारी चेष्टा अर्जुन था, कोई भाई का संबंधी था, कोई पत्नी का भाई था, कोई मित्र का के भीतर योग को उत्पन्न कर देने की है। अर्जुन तो सिर्फ इतना ही मित्र था। सब गुंथे हुए थे। उस तरफ, इस तरफ एक ही परिवार चाहता था, किसी तरह से यह जो संताप पैदा हो गया है मेरे मन में, खड़ा था। साफ नहीं था कि कौन है शत्रु, कौन है मित्र! सब धुंधला यह जो चिंता हो गई है, इससे मैं बच जाऊं। कृष्ण ने इसका पूरा था। उसी से अर्जुन चिंतित हो आया। उसे लगा, अपने ही इन मित्रों उपयोग किया, अर्जुन के इस चिंता के क्षण का, इस अवसर का। को, प्रियजनों को मारकर अगर यह इतना बड़ा राज्य मिलता हो, तो कृष्ण इसके लिए उत्सुक नहीं हैं कि वह चिंता से कैसे बच जाए। हे कृष्ण, छोडूं इस राज्य को, भाग जाऊं जंगल। इससे तो मर जाना कृष्ण इसके लिए उत्सुक हैं कि वह निश्चित कैसे हो जाए। बेहतर। आत्महत्या कर लूं, वह अच्छा। इतने सब मित्रों की, इतने इस फर्क को आप समझ लेना। चिंता से बच जाना एक बात है। प्रियजनों की हत्या करके राज्य पाकर क्या करूंगा? वह क्षत्रिय वह तो रात में ट्रैक्वेलाइजर लेकर भी आप चिंता से बच जाते हैं। बोला। वह क्षत्रिय का मन है। राज्य दो कौड़ी का है, लेकिन शराब पी लें, तो भी चिंता से बच जाते हैं। शराब कई तरह की हैं। प्रियजनों को, मित्रों को मारने का क्या प्रयोजन है?
| अर्जन को भी शराब पिलाई जा सकती थी। भल-भाल जाता नशे वह क्षत्रिय का ही मन बोल रहा है, जो मित्र और शत्रु की कीमत में; टूट पड़ता युद्ध में। आंकता है। उस तरफ भी अपने ही लोग खड़े हैं। दुर्भाग्य, अभाग्य __ शराब कई तरह की हैं–कुल की, यश की, धन की, राज्य की, का क्षण कि बंटवारा ऐसा हुआ है। ऐसा ही होने वाला था। क्योंकि प्रतिष्ठा की, अहंकार की। वह कुछ भी उसे पिलाई जा सकती थी। जो अर्जुन के मित्र थे, वे ही दुर्योधन के भी मित्र थे। खुद कृष्ण बड़ी | | भूल जाता। दीवाना हो जाता। उसके घाव छुए जा सकते थे। कृष्ण मुश्किल में बंटकर खड़े थे। कृष्ण इस तरफ खड़े थे, कृष्ण की सारी | | उसके घाव छू सकते थे कि अर्जुन, तू जानता है कि तेरी द्रौपदी के फौजें कौरवों की तरफ खड़ी थीं। अजीब थी लड़ाई! अपनी ही साथ दुर्योधन ने क्या किया! नशा शुरू हो जाता। फौजों के खिलाफ, अपने ही सेनापतियों के खिलाफ कृष्ण को उसके घाव छुए जा सकते थे। घाव बहुत गहरे थे और हरे थे। लड़ना था। और उस तरफ से कृष्ण के ही सेनापति कृष्ण के कृष्ण के लिए कठिनाई न पड़ती। इतनी लंबी गीता कहने की कोई