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गीता दर्शन भाग-31
कोई हिसाब भी न था। मगर इस वजह से बहुत बड़ा धनपति था, | नहीं, सिर्फ बांटते चले जाते हैं। ऐसा व्यक्ति शत्रु को भी दे देगा इसलिए नहीं। ईसा कहते थे, वह इसलिए बड़ा धनपति था कि धन और मित्र को भी दे देगा, क्योंकि कोई कमी पड़ने वाली नहीं है। पर उसकी पकड़ खो गई थी और धन की उसकी आकांक्षा खो गई और मित्र और शत्रु में फर्क क्यों करें? जब दोनों को देना ही है, तो थी। उसकी अब कोई और आकांक्षा न थी कि मुझे और धन मिल | फर्क का क्या सवाल है! लेना हो, तो फर्क का सवाल है, क्योंकि जाए। इसलिए वह बड़ा धनपति था। और वह धन बांट सकता था। | मित्र देगा और शत्रु नहीं देगा। लेकिन देना ही हो, तो फर्क का क्या क्योंकि जिसकी आकांक्षा शेष है कि मुझे और धन मिल जाए, वह । सवाल है! बांट नहीं सकता, वह दान नहीं कर सकता। वह बांट सकता था। ___ तो तीसरा सूत्र खयाल रख लें कि जो प्रेम के मालिक हुए, वे ही अब पाने की कोई आकांक्षा न थी।
| केवल मित्र और शत्रु के बीच समबुद्धि को उपलब्ध हो सकते हैं। एक दिन सुबह उसके अंगूर के खेत पर उसने अपने मजदूर भेजे। मैंने कहा कि धन और निर्धनता के बीच समबुद्धि लानी बहुत और कहा कि गांव से कुछ मजदूर बुला लाओ। सुबह सूरज उगने कठिन नहीं है, क्योंकि धन बड़ी बाहरी घटना है। और यश-अपयश के वक्त कुछ मजदूर खेत पर काम करने आए। लेकिन मजदूर कम | के बीच भी समबुद्धि लानी बहुत बड़ी बात नहीं है, क्योंकि थे। फिर उसने आदमी भेजा; फिर बाजार से कुछ मजदूर आए। | यश-अपयश भी लोगों की आंखों का खेल है। लेकिन मित्र और लेकिन तब सूरज काफी चढ़ चुका था; दोपहर होने के करीब थी। शत्रु के बीच समभाव लाना बहुत गहरी घटना है। क्योंकि आप और लेकिन फिर भी मजदूर कम थे, काम ज्यादा था। फिर उसने और आपका प्रेम और आपका पूरा व्यक्तित्व समाहित है। आप पूरे आदमी भेजे। ऐसा हुआ कि दोपहर के बाद भी कुछ लोग आए। | रूपांतरित हों, तो ही मित्र और शत्रु को समभाव से देख पाएंगे। और ऐसा हुआ कि सांझ ढलते हुए भी कुछ लोग आए। और फिर । ये तीन तो आधारभूत सूत्र आपको खयाल में रखने चाहिए। और सूरज ढलने लगा। और मजदूरी बंटने का समय आ गया। उसने | जब भी, जब भी मन कहे कि यह आदमी मित्र है, तब पूछना सब मजदूरों को बराबर पैसे दिए।
चाहिए, क्यों? यह सवाल, जब भी मन कहे, फलां आदमी शत्रु सुबह से जो मजदुर आए थे, उनकी तेवर चढ़ गईं। उन्होंने कहा. | है, तो पूछना चाहिए, क्यों? क्या इसलिए कि उससे मुझे प्रेम नहीं यह अन्याय है। हम सुबह से आए हैं। दिनभर सूरज के चढ़ते और मिलेगा? क्या इसलिए कि वह मेरे किसी काम में बाधा डालेगा? उतरते हमने काम किया। और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अभी आए | किसलिए वह मेरा शत्रु है? और किसलिए कोई मेरा मित्र है ? क्या हैं, जिन्होंने काम हाथ में लिया ही था कि सूरज ढल गया और सांझ | | इसलिए कि वह मुझे प्रेम देगा, मैं भरोसा कर सकता हूं? मेरे वक्त हो गई और अंधेरा उतर आया। और हम सबको तुम बराबर देते हो! पर काम पड़ेगा? मेरे काम में सहयोगी होगा, बाधा नहीं बनेगा?
उस धनपति ने कहा, मैं तुमसे यह पूछता हूं कि तुमने जितना अगर यही सवाल आपको उठते हों, तो फिर एक बार सोचना काम किया, उतना काम के योग्य तम्हें मिल गया या उससे कम है? कि आप जिंदगी में कोई काम करने के पागलपन से भरे हैं। अहंका उन्होंने कहा, नहीं, हमें उससे ज्यादा ही मिल गया है। तो उस सदा कहता है कि कुछ करने को आप हैं। आदमी ने कहा. फिर तम इनकी चिंता मत करो। इन्हें मैं इनके काम जो भी करने को है, वह परमात्मा कर लेता है। आप नाहक के के कारण नहीं देता; मेरे पास बहुत है, इसलिए देता हूं। तुम्हें तुम्हारे | बोझ से न भरें। आप व्यर्थ विक्षिप्त न हों। उससे कुछ काम तो न काम से ज्यादा मिल गया हो, तुम निश्चित चले जाओ। और इन्हें होगा, उससे सिर्फ आप परेशान हो लेंगे। उससे कुछ भी न होगा। मैं इनके काम के कारण नहीं देता: मेरे पास देने को बहत है, इस दनिया में कितने लोग आते हैं. जो सोचते हैं. कछ करना है इसलिए देता हूं।
| उनको। आप जरूर कुछ करते रहें, लेकिन इस खयाल से मत करें जिसके पास देने को प्रेम है और उसी के पास है, जिसको कि आपको कुछ करना है। इस खयाल से करते रहें कि परमात्मा अब मांगने की इच्छा न रही, जो अब प्रेम का भिखारी न रहा, जो की मर्जी; वह आपसे कुछ कराता है, आप करते हैं। सम्राट हुआ। बहुत मुश्किल से कभी कोई बुद्ध, कभी कोई कृष्ण अगर ऐसा आपने देखा, तो शत्रु भी आपको परमात्मा का ही इस हालत में आते हैं, जब कि वे प्रेम के मालिक होते हैं, जब वे काम करता हुआ दिखाई पड़ेगा, क्योंकि परमात्मा के अतिरिक्त सिर्फ देते हैं और लेते नहीं। मांगते नहीं, मांगने का कोई सवाल ही और कोई है नहीं। तब आप समझेंगे कि परमात्मा का कोई हिसाब