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जीवन एक लीला
जिन्हें तलाश है, वे कल को खोजें। नर्क के द्वार पर जिनको सकता है, जो बिलकुल गंभीर नहीं है। सिर्फ खेल समझ रहा है। खटखटाना है, वे भविष्य में सेतु बनाएं स्वप्नों के। स्वर्ग के द्वार | इसलिए ठीक है। को जिन्हें खोल लेना है। उनके लिए द्वार अभी और यहीं है। उसे राम का पार्ट दे दो, तो भी परा कर देगा: रावण का दे दो
लेकिन अभी और यहीं होने का राज क्या है, सीक्रेट क्या है ? | तो भी पूरा कर देगा। वह यह नहीं कहेगा कि रावण का पार्ट हम सीक्रेट है—फल की स्पृहा नहीं; कर्म काफी है। जो कर रहे हैं, | पूरा नहीं करते! खेल ही है, तो झंझट क्या है; चलेगा। राम का दे उतना ही काफी है। लेकिन वह कब होगा काफी? जब कर्म खेल दो, तो वह कहेगा, चलेगा। राम और रावण में उसे असंगति नहीं बन जाए, लीला बन जाए।
दिखाई पड़ेगी। इसलिए कि वह कहता है, पर्दे के पीछे न कोई राम लेकिन हम तो खेल को भी कर्म बना लेते हैं। हम तो इतने है, न कोई रावण है। वह पर्दे के बाहर खेल है, जो मर्जी; हम पूरा कशल हैं कि हम खेल को कर्म बना लेते हैं। कष्ण कहते हैं. कर्म | किए देते हैं। गंभीर नहीं है, क्योंकि खेल है जिंदगी। स्पृहा नहीं है को खेल बनाओ। हम दूसरे छोर हैं, ठीक उलटे। हम खेल को कर्म | भविष्य की, फल की, क्योंकि खेल है जिंदगी। परम अस्तित्व के बना लेते हैं! कृष्ण कहते हैं, जीवन नाटक हो जाए। हमने उलटी | लिए तो सभी कुछ खेल है; भविष्य है ही नहीं। कुशलता अर्जित की है। हम नाटक को जीवन बना लेते हैं। । यह आखिरी बात इस सत्र में आपसे कहं। हम समय को तीन
देखा है, सिनेमागृह में बैठे लोगों को? रूमाल गीले कर रहे हैं; | हिस्सों में बांटते हैं हम, ह्यूमन माइंड, मनुष्य का मन समय को आंसू पोंछ रहे हैं। पर्दे पर कुछ भी नहीं है, सिवाय छायाओं के। | तीन हिस्सों में बांटता है-भविष्य, वर्तमान, अतीत; पास्ट, प्रेजेंट, सिवाय प्रकाश के और छायाओं के मेल-जोल के, पर्दे पर कुछ भी | फ्यूचर। समय बंटा हुआ नहीं है। परमात्मा से अगर जाकर पूछेगे, नहीं है। खाली पर्दा है। आंसू पोंछ रहे हैं! हृदय की धड़कन बढ़ | तो वह कहेगा, तीन? समय तो सदा वर्तमान है। समय न तो पास्ट गई है। कोई का ब्लडप्रेशर बढ़ गया होगा! निकलते हैं सिनेमागृह है, और न फ्यूचर है। समय सिर्फ वर्तमान ही है। हम बांटते हैं। से, देखें लोगों के चेहरे, तो पता चलेगा, नाटक जिंदगी बन गई है। सच तो यह है कि अगर हम और थोड़ी बुद्धिमानी करें, तो हमें वह तो सिनेमागृह में अंधेरा रहता है, यह बड़ा अच्छा है। आदमी | वर्तमान को अलग कर देना चाहिए, क्योंकि वर्तमान का हमें कोई अपना चुपचाप रो लेता है; पोंछ लेता है; बैठ जाता है। देखें अनुभव ही नहीं है। हमें या तो अतीत का अनुभव है या भविष्य सिनेमागृह में! अब की बार सिनेमा न देखें, जाएं तो देखने वालों का। या तो हमें उस राख के ढेर का पता है, जो हमारी आकांक्षाओं को देखें। अच्छा तो यह हो, अपने को देखें, तो और मजा आएगा की हमारे पीछे लग गई है। या तो हमें उस सबका पता है, जो बीत कि क्या कर रहे हैं! यह क्या हो रहा है!
गया-अतप्ति के ढेर। और या हमें पता है वह. जो अभी नहीं कृष्ण कहते हैं, यह पूरा जीवन ही नाटक है। हम कहते हैं, | बीता; होना चाहिए, होगा-आकांक्षाओं के इंद्रधनुष। वर्तमान का नाटक! नाटक खद ही जीवन है। अगर यह बात दिखाई पड़ जाए | हमें कोई भी पता नहीं है। हमारे लिए समय अतीत और भविष्य है। कि फिल्म के पर्दे पर सिवाय विद्युत के किरणों के जाल के और ___ वर्तमान हम किसे कहते हैं ? हम वर्तमान उस क्षण को कहते हैं, कुछ भी नहीं, तो किसी दिन यह भी पता चल जाएगा कि इस पृथ्वी | जिस क्षण में हमारा भविष्य अतीत बनता है, दि फ्यूचर पासेस इनटु पर भी विद्युत की किरणों के जाल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं | दि पास्ट। हम उस संक्रमण के क्षण को, ट्रांजीशन को, उस दरवाजे है। यहां भी कुछ भी नहीं है। तब यह सब नाटक हो जाता है, तब को वर्तमान कहते हैं, जिससे भविष्य अतीत बनता है; जिससे एक अभिनय हो जाता है।
| जीवन मृत्यु बनती है; जिससे जो नहीं था, वह नहीं था में वापस इसलिए कृष्ण एक कुशल अभिनेता हैं। बांसुरी भी बजा सकते | | चला जाता है। हैं, सुदर्शन भी उठा सकते हैं। परम ज्ञान की बात भी कर सकते हैं, ___ हमारे लिए वर्तमान सिर्फ एक द्वार है, बहुत बारीक, जिसे हम गंवार ग्वालों के साथ नाच भी सकते हैं। गीता का उपदेश भी दे | | कभी नहीं पकड़ पाते हैं कि वह कहां है। जब हम पकड़ पाते हैं, सकते हैं, स्त्रियों के वस्त्र उठाकर वृक्ष पर भी बैठ सकते हैं। ऐसा | | तब तक अतीत हो चुका होता है। जब तक हम नहीं पकड़ पाते हैं, इनकंसिस्टेंट, ऐसा असंगत आदमी पृथ्वी पर दूसरा नहीं हुआ है। | तब तक वह भविष्य रहता है। लेकिन परमात्मा की स्थिति बिलकुल लेकिन उस असंगति में एक राज है। इतना असंगत वही हो| और है। परमात्मा के लिए भविष्य है ही नहीं। और कोई अतीत भी
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