________________
गीता दर्शन भाग-26
जाना खतरनाक है।
बुन लें। अब ड्रीम की कोई जगह न रही। अब रिअलिटी है; अब तो इच्छाओं के सेतु बनाते हैं कल में। बड़े प्रीतिकर लगते हैं। | तथ्य ही सामने रह गया। अब आज ही बचा। इंद्रधनुष के सब रंग होते हैं उनमें। शायद इंद्रधनुष से भी ज्यादा रंग ___ आज के साथ जीने की हमारी कोई आदत नहीं है। कल के साथ होते हैं। फिर कल आता है और इंद्रधनुष दिखाई नहीं पड़ता कि कहां ही सदा जीए थे। अब जीना बहुत मुश्किल है। इसलिए हम मौत है। तब दुख पैदा होता है। दुख था, इसलिए इंद्रधनुष बनाया; फिर | से डरते और भयभीत होते हैं। मौत, कल की मौत है; इससे हम इंद्रधनुष नहीं मिलता, तो दुख पैदा होता है। फिर और बड़े इंद्रधनुष डरते हैं। बनाते हैं। लगता है, शायद छोटे बनाए थे, इसलिए मिल नहीं | ___ कृष्ण कहते हैं—वह जो परम सत्ता है, उसकी तरफ से-कि मैं सके। लगता है, शायद थोड़ी कम मेहनत की, इसलिए कल्पनाएं आज ही जीता हं, अभी और यहीं। फल की स्पहा नहीं है। कल की अधूरी रह गईं। लगता है, शायद थोड़ा दौड़ने में कंजूसी हुई, आकांक्षा नहीं है। टुडे इज़ इनफ, आज काफी है। इसलिए पहुंच नहीं पाए। और जोर से दौड़ो, और बड़े धनुष जीसस अपनी प्रार्थना में कहते हैं, गिव मी टुडेज ब्रेड, आज की बनाओ, और फैलाओ कल्पना के जाल को, तो कल तृप्ति होगी। रोटी पर्याप्त है। फिर वह कल भी आ जाता है। फिर वे कल्पना के जाल भी अधूरे | न्यू मैन ने अपने गीत में लिखा है, आई डू नाट लांग फार दि और टूटे के टूटे रह जाते हैं। टूटे हुए इंद्रधनुष फिर बड़ा दुख देते डिस्टेंट सीन, दूर के दृश्यों की आकांक्षा नहीं है मुझे। वन स्टेप इज़ हैं। फिर और बड़ा करो। फिर जीवन से मृत्यु तक यही करते रहो। | इनफ फार मी, एक कदम काफी है। दूर के दृश्यों की आकांक्षा नहीं बनाओ इंद्रधनुष और खंडों को बटोरो। टूटे हुए इंद्रधनुषों को इकट्ठे मुझे एक कदम काफी है। करते चले जाओ। फिर आखिर में जिंदगी एक खंडहर, । कृष्ण कहते हैं, अभी और यहीं-हियर एंड नाउ—सब है। आर्चिओलाजी के काम का, और किसी काम का नहीं। खंडहर- फल की स्पृहा नहीं है मुझे। दो कारणों से। पुरातत्व के शोधियों के काम का। हाथ में कुछ भी नहीं; सिर्फ | एक तो आनंदमग्न चित्त अभी और यहीं होता है। और जैसा मैंने आशाओं के खंडहर; भग्न आशाओं के सेतु; खो गए सब! और | कहा कि दुख से कल की आकांक्षा पैदा होती; कल की आकांक्षा मौत सामने है। फिर सेतु बनाना भी मुश्किल हो जाता है। | से दुख घना होता; ऐसे ही यह भी आपसे कहूं, आनंदित चित्त में
इसलिए मौत से हम डरते हैं। मौत से डरने का कारण यह नहीं है कल की आकांक्षा पैदा नहीं होती। और कल की आकांक्षा जिस कि मौत से हम डरते हैं। क्योंकि जिससे हम परिचित नहीं हैं, उससे | चित्त में पैदा नहीं होती, उसका आनंद सघन होता है। उसका भी डरेंगे कैसे! जिसे हम जानते नहीं हैं, उससे डरेंगे कैसे! जिसे हमने अपना एक वर्तुल है। कभी देखा नहीं, उससे डरेंगे कैसे! डरने के लिए भी थोड़ा परिचय जितना-जितना कल की आकांक्षा नहीं होती, उतना-उतना आज जरूरी है। मौत से हम नहीं डरते। डरते हम इससे हैं कि मौत का | सघन आनंद से भरता चला जाता है। अनंत आनंद आज ही मतलब है, कल अब नहीं होगा। मौत का मतलब है, नो टुमारो नाउ। | सिकुड़कर मिलने लगता है। मौत का मतलब है, अब आगे कल नहीं है। फिर हमारे इंद्रधनुषों का | ___ परमात्मा क्षणजीवी है। लेकिन उसका क्षण इटरनिटी है; उसका क्या होगा? फिर हमारी कल्पनाओं के जाल का क्या होगा? हम तो क्षण अनंत है। एक क्षण ही अनंत है। हम भविष्यजीवी हैं। लेकिन सदा कल में ही जीए थे; आज तो कभी जीए नहीं थे। मौत कहती है, हमारा भविष्य सिवाय मृत्यु के और कुछ नहीं लाता। हमारा भविष्य बस, अब आज है; कल नहीं। तो हम क्या करें?
अमावस की रात के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं निर्मित करता। इसलिए मौत उदास कर जाती है। मौत नहीं करती उदास, कल | | हमारा भविष्य प्राणों में सिर्फ घाव छोड़ जाता है; अनजीए घाव। घाव का अभाव, कल का समाप्त हो जाना। अब कोई कल नहीं है: अब उस जीवन के, जो हमने जीया नहीं और जिसे हम चक गए हैं। आज ही है। अब हम मरे! अब हम अपने पर ही फेंक दिए गए। कृष्ण कहते हैं, जो इस बात को समझ लेता, जो मेरे इस स्वरूप थ्रोन बैक टु वनसेल्फ। अब कोई कल का उपाय न रहा, जिसमें को समझ लेता, वह भी मेरे जैसा हो जाता है। हम भरोसे खोज लें। अब कल का कोई उपाय न रहा, जिसमें हम आनंद की जिन्हें भी तलाश है, वे कल से मुक्त हो जाएं। सत्य सहारे बना लें। अब कल न रहा, जिसमें हम सपने गूंथ लें, सपने की जिन्हें भी खोज है, वे भविष्य को विदा कर दें। हां, दुख की