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जीवन एक लीला
कल कभी जी नहीं सकते, सिर्फ खयाल में ही रहते हैं। इसलिए अगर आपका प्रेमी आपके पास बैठा है, तो वर्तमान ही रह जाता हम जीते कम, मरते ही ज्यादा हैं। हम कहते हैं, कल। फल सदा है। फिर आप यह नहीं सोचते, कल क्या होगा? फिर आप वही कल है। फल का मतलब, कल।
जानते हैं, जो अभी हो रहा है। कल खो जाता है। फल कभी आज नहीं है। फल आज हो नहीं सकता। आज तो जब आप संगीत में डूब जाते हैं, तो कल खो जाता है। फिर आप कर्म ही हो सकता है; फल तो कल ही होगा। कल भी आ जाएगा, यह नहीं सोचते, कल क्या होगा? फिर आज ही, अभी, दिस वेरी तब भी फल आगे कल पर सरक जाएगा। कल फिर जब आज | मोमेंट, यही क्षण काफी हो जाता है। जब कोई भजन में लीन हो बनेगा, तो कर्म ही होगा।
गया, कीर्तन में डूब गया, तब यही क्षण सब कुछ हो जाता है। सारा आज सदा कर्म है: फल सदा कल है। आज, वर्तमान। कल, | अस्तित्व इसी क्षण में समाहित हो जाता है। सब सिकुड़कर, सारा भविष्य। फल सदा कल्पना में है। फल का कोई अस्तित्व नहीं है; अस्तित्व इसी क्षण में केंद्रित हो जाता है। इस क्षण के बाहर फिर अस्तित्व तो कर्म का है। परमात्मा भविष्य में नहीं जीता, क्योंकि कुछ भी नहीं है। परमात्मा कल्पना में नहीं जीता।
जीवन के जो भी आनंद के क्षण हैं, वे वर्तमान के क्षण हैं। कल्पना में कौन जीते हैं? इसे समझ लें, तो कृष्ण की यह बात परमात्मा तो प्रतिपल आनंद में है। इसलिए उसकी कोई फलाकांक्षा समझ में आ जाएगी। कल्पना में कौन जीते हैं? जो फ्रस्ट्रेटेड हैं, वे नहीं हो सकती। कल्पना में जीते हैं। जिनका जीवन विषाद से भरा है, दुख से भरा कृष्ण कहते हैं, जिस दिन कोई इस सत्य को समझ लेता है, उस है, वे कल्पना में जीते हैं। क्यों? क्योंकि कल्पना से वे अपने विषाद दिन वह भी फलातुर नहीं रह जाता। की परिपूर्ति करते हैं, सब्स्टीटयूट करते हैं।
अब मैं दूसरी बात आपसे कहूं। मैंने कहा, दुखी आदमी फलातुर ' आज जिंदगी इतनी उदास है कि कल के फल की आशा से उस होता है। और अब मैं आपसे यह भी कहूं कि फलातुर आदमी दुखी उदासी को हम मिटाए चले जाते हैं। आज तो जिंदगी में कुछ भी होता चला जाता है। यह विसियस सर्किल है, यह दुष्टचक्र है। नहीं है। कल के फूलों की आशा में आज को सजाए चले जाते हैं। दुखी होंगे, तो फल की आकांक्षा करेंगे। फल की आकांक्षा करेंगे, आज तो सब खाली और रिक्त है। कल का श्रृंगार, कल की आशा, दुखी होंगे। ये जुड़ी हुई बातें हैं दोनों। क्यों? दुखी होंगे, तो मैंने आज पैरों को गति देती है।
समझाया, फल की आकांक्षा क्यों करेंगे! क्योंकि इस क्षण के दुख कल भी यही हुआ था; कल भी यही होगा। आज होगा सदा को मिटाने का भविष्य की कल्पना के अतिरिक्त आपके पास कोई खाली, और कल होगा सदा भरा हुआ! और अंत में जब जिंदगी | भी उपाय नहीं है। दिखाई नहीं पड़ता, उपाय तो है। का जोड़ लगाइएगा, तो ध्यान रखें, जिंदगी कल का जोड़ नहीं है, कृष्ण उसी उपाय को बताते हैं, लेकिन वह हमें दिखाई नहीं जिंदगी आज का जोड़ है। सब खाली आज जब आखिर में जुड़ेंगे, पड़ता। हमें यही दिखाई पड़ता है कि कल्पना में भूल जाओ। इस तो पता चलेगा, हाथ खाली के खाली रह गए। क्योंकि जिंदगी आज क्षण को भूल जाओ। भरोसा रखो, कल सब ठीक हो जाएगा। का जोड़ है, कल का जोड़ नहीं है।
आज जिंदगी अभिशाप है, कल वरदान बन जाएगी। आज कांटे हैं, आज अस्तित्व है; कल तो सिर्फ कल्पना है, इमेजिनेशन है। कल कल फूल हो जाएंगे। भरोसा रखो! कल तो आने दो; कल सब कभी आता नहीं। पर आज है पीड़ा से भरा। अगर कल भी न रह ठीक हो जाएगा। कल तक प्रतीक्षा करने में इससे सहारा मिल जाता जाए, तो बहुत मुश्किल हो जाए; पैर का उठना मुश्किल हो जाए। | है। कंसोलेशन, सांत्वना बन जाती है। फिर कल आ जाता है।
यह जो हमारी दुख से भरी स्थिति है, इसके लिए हम फलातुर | लेकिन दुख के कारण फल के तीर हमने भविष्य में पहुंचाए। हैं। परमात्मा आनंदमग्न है। फलातुर होने की जरूरत नहीं है। सिर्फ | दुख के कारण कामना के सेतु बनाए-इंद्रधनुष के सेतु, रेनबो दुखी आदमी फलातुर होता है; दुखी चित्त फलातुर होता है। | ब्रिजेज-जिन पर चल नहीं सकते, जो सिर्फ दिखाई पड़ते हैं। पास आनंदित चित्त फलातुर नहीं होता। आप भी जब कभी आनंद में होते | | जाओ, खो जाते हैं। इसलिए कभी इंद्रधनुष के पास नहीं जाना हैं. तो भविष्य मिट जाता है और वर्तमान रह जाता है। जब भी। चाहिए। खो जाता है। दर से लगता है कि बना है। चाहो
अगर आप किसी के प्रेम में पड़ गए, तो भविष्य मिट जाता है। तो जमीन से आकाश में चले जाओ चढ़कर। पास भर न जाना।