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________________ गीता दर्शन भाग-28 कष्ण कहते हैं, कर्मों के फलों में मेरी स्पृहा नहीं है, | लौटते हो? मन न कहता कि अरे, बिना मुकाम पाए वापस क्यों पा इसलिए कर्म मुझे लिप्त नहीं कर पाते हैं। और जो मुझे जाते हो? घूमने में खेल था; कर्म की स्पृहा न थी। ऐसा जानता है, वह भी कर्मों के लिप्त होने से मुक्त हो परमात्मा कहीं पहुंचने को नहीं कर रहा है। यह परमात्मा का, जाता है। अस्तित्व का, एक्झिस्टेंस का कोई उद्देश्य नहीं है। यह बड़ी कठिन कर्मों के फलों में स्पृहा नहीं है; कर्मों के फलों की आकांक्षा नहीं बात है समझनी। है। खेल और कर्म का यही फर्क है। फल की आकांक्षा हो, तो खेल अस्तित्व निरुद्देश्य है। निरुद्देश्य ही खिलते हैं फूल। निरुद्देश्य ही भी कर्म बन जाता। फल की आकांक्षा न हो, तो कर्म भी खेल बन गीत गाते हैं पक्षी। निरुद्देश्य ही चलते हैं चांद-तारे। निरुद्देश्य ही जाता। बस, कर्म और खेल का फर्क ही फल की आकांक्षा है। । | पैदा होता है जीवन और विलीन। हमें बहुत कठिन हो जाएगा! __ आप सुबह-सुबह घूमने निकले हैं-घूमने, जस्ट फार ए | ह्यूमन माइंड, मनुष्य का मन उद्देश्य के बिना कुछ भी नहीं समझ वाक–कोई पूछता है, कहां जा रहे हैं? आप कहते हैं, कहीं जा | पाता। हमें लगता है, बिना उद्देश्य! फिर किसलिए? यानी मतलब, नहीं रहा; घूमने जा रहा हूं। कहते हैं, कहीं जा नहीं रहा, घूमने जा | | हम फिर से पूछते हैं कि फिर उद्देश्य क्या? निरुद्देश्य है जीवन। रहा हूं, अर्थात फल का कोई सवाल नहीं है; कहीं पहुंचने का कोई | | इसका दूसरा अगर पर्याय बनाएं, तो होगा जीवन आनंद है अपने प्रयोजन नहीं है। कहीं पहुंचने को नहीं जा रहा। कोई मंजिल नहीं | में, उसके बाहर कहीं कोई पहुंचने की बात नहीं है। है, कोई मुकाम नहीं है, जहां के लिए जा रहा हूं। बस, घूमने जा | कृष्ण यही कहते हैं, परपजलेसनेस। कहते हैं, मेरे लिए कोई रहा हूं। ऐसा नहीं है कि जो मैं कर रहा हूं, उसमें कोई मजबूरी, कोई इसी रास्ते से दोपहर को आप दुकान की तरफ भी जाते हैं। तब कंपल्शन नहीं है; आनंद है। सुबह बच्चे उठकर खेल रहे हैं, नाच आप बस घूमने नहीं जा रहे हैं, कहीं जा रहे हैं। रास्ता वही है, आप | रहे हैं—बस, ऐसे ही। बस, ऐसे ही सारा अस्तित्व आनंदमग्न है, वही हैं, पैर वही हैं। लेकिन कभी आपने फर्क देखा कि सुबह के आनंद के लिए ही। घूमने का आनंद और है; और दोपहर को दुकान की तरफ जाने का | । इसलिए कृष्ण के जीवन को हम लीला कहते हैं। राम के जीवन बोझ और है। रास्ता वही, आप वही, पैर वही, हवाएं वही, सूरज को चरित्र कहते हैं। राम का जीवन बड़ा गंभीर है। बड़े उद्देश्यपूर्ण वही, फर्क कहां है? चलते मालूम पड़ते हैं। एक-एक बात का चुनाव है। यह करेंगे और फर्क-सुबह खेल था; दोपहर काम हो गया। सुबह स्पृहा न | | यह न करेंगे। ऐसा ठीक है और ऐसा गलत है। थी फल की। कहीं पहुंचने का कोई प्रयोजन न था। कर्म ही फल राम के जीवन में उद्देश्य की बड़ी स्पष्टता है। कृष्ण के जीवन में था। कर्म के बाहर कोई फल न था। घूम लिए, काफी है। घूमना उद्देश्य बिलकुल ही मटियामेट हो जाते हैं। कृष्ण के जीवन में बड़ी अपने आप में अंत था, एंड इन इटसेल्फ। पार कहीं कोई बात न | | निरुद्देश्यता है। इसलिए राम को हम आंशिक अवतार ही कह पाए; थी। कहीं जाना न था; कुछ पाना न था। कुछ पाने को न था; घूमना | | पूर्ण अवतार न कह सके। कृष्ण को हम पूर्ण अवतार कह सके, ही पाना था। वही क्षण, वही कत्य सब कछ था। उसके बाहर कोई क्योंकि परमात्मा जिस तरह परा निरुद्देश्य है, ऐसा ही यह व्यक्ति स्पृहा न थी। तब एक हल्कापन था पैरों में; पक्षियों के परों का | | भी पूरा निरुद्देश्य है। एक-एक कृत्य खेल की तरह है, काम की हल्कापन था। मन में हवाओं की ताजगी थी; आंखों में फूलों की | तरह नहीं है। सरलता थी। कहीं जा न रहे थे; कोई तनाव न था, कोई टेंशन न | पर कृष्ण जो यह वक्तव्य देते हैं. फल की स्पहा नहीं है। हमें था। एक-एक कदम स्पांटेनियस था। कहीं भी रुक सकते थे और समझना बहुत कठिन हो जाएगा। क्योंकि हम तो कहेंगे, फल की कहीं से भी वापस लौट सकते थे। कोई दबाव न था। कहीं खींचे स्पृहा न हो, तो हम कदम ही न उठाएंगे। अगर फल न पाना हो, न जा रहे थे; कहीं से धकाए न जा रहे थे। न तो पीछे से कोई धक्का | | तो हम कुछ करेंगे ही क्यों? हमें तो सारा कर्म फल प्रेरित है, रिजल्ट दे रहा था कि जाओ; न आगे से कोई खींच रहा था कि आओ। ओरिएंटेड है। फल आता हो, तो हम करेंगे। फल न आता हो तो? प्रत्येक कदम अपने आप में पूरा था, टोटल इन इटसेल्फ। कहीं भी फल न आता हो, तो हम क्यों करेंगे? हमारा जीवन वर्तमान में नहीं, रुक सकते थे, वापस लौट सकते थे। कोई न कहता कि वापस क्यों सदा भविष्य में है। हम आज नहीं जीते; सदा कल जीते हैं।
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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