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गीता दर्शन भाग-28
नहीं है। परमात्मा के लिए सिर्फ वर्तमान है; मात्र वर्तमान। इसलिए | कृष्ण इसलिए कहते हैं, फल की कोई स्पृहा नहीं। भविष्य ही परमात्मा के लिए समय इटरनिटी है, एक अनंतता है। बहाव नहीं नहीं, फल की स्पृहा कैसे करेंगे। यही क्षण सब कुछ है। ऐसा जो है, एक अनंतता है; एक ठहरी हुई अनंतता। सब ठहरा हुआ है, जान लेता है, वह भी इसी स्थिति को उपलब्ध हो जाता है। सरोवर की भांति।
| इस सूत्र को गहरे में अनुभव करने की जरूरत है। यह सार सूत्रों परमात्मा के लिए काज और इफेक्ट नहीं हैं, कार्य और कारण | में से एक है। नहीं हैं। हमारे लिए हैं। कार्य का मतलब, भविष्य; कारण का मतलब, अतीत। वर्तमान, जिसमें से कारण कार्य बनता है या कार्य पुनः कारण बनता है। परमात्मा के लिए कार्य-कारण नहीं हैं। .. प्रश्नः भगवान श्री, बारहवें श्लोक में कहा गया है
हमारी स्थिति करीब-करीब ऐसी है, पूरे हमारे दिमाग की, चाहे कि कर्मफलों को चाहने वाले लोग देवताओं को पूजते वह वैज्ञानिक का दिमाग हो, चाहे दार्शनिक का हो, चाहे गहरे से हैं और उनके कर्मों की सिद्धि भी शीघ्र ही होती है। गहरे सोचने वाले का हो। मनुष्य के मस्तिष्क के सोचने का ढंग परंतु उनको मेरी प्राप्ति नहीं होती। इसलिए तू मेरे को करीब-करीब ऐसा है, जैसे कि एक छोटा-सा छेद हो दीवाल में ही सब प्रकार से भज। कृपया इसका अर्थ स्पष्ट करें। और एक बिल्ली कमरे के भीतर बंद हो। धुंधला प्रकाश हो। और और दूसरी बात, आठवें श्लोक में है, कि धर्म के हम छेद से देख रहे हों।
संस्थापन के लिए मैं आता हूं। धर्म के संस्थापन का बिल्ली निकले छेद के सामने से। पहले उसका चेहरा दिखाई अर्थ भी कृपया समझाएं। पड़े। छेद छोटा है। चेहरा दिखाई पड़ता है। फिर उसकी पीठ दिखाई पड़ती है। फिर उसकी पूंछ दिखाई पड़ती है। फिर बिल्ली लौटती है; फिर उसका चेहरा पहले दिखाई पड़ता है, फिर उसकी पीठ कर्मफलों की चाहना करने वाले लोग देवताओं को दिखाई पड़ती है, फिर उसकी पूंछ दिखाई पड़ती है। फिर हम कहते प भजते हैं। कर्मफल की चाहना करने वाला व्यक्ति हैं, हेड मस्ट बी दि काज एंड टेल मस्ट बी दि इफेक्ट। क्योंकि
परमात्मा को नहीं भज सकता। कर्मफल की चाहना हमेशा सिर के पीछे पूंछ है। कहीं से भी बिल्ली घूमती हो कमरे में, | करने वाला व्यक्ति देवताओं को ही भज सकता है। क्यों? क्योंकि हमारे छेद में से दिखाई पड़ता है पहले सिर, फिर पीठ, फिर पूंछ। परमात्मा के भजने की शर्त है, कर्मफल की चाहना न करना। निश्चित ही सिर कारण है, पूंछ कार्य है।
| परमात्मा के भजन का एक ही अर्थ है, कर्मफल की चाहना छोड़ बेचारी बिल्ली को पता ही नहीं। वहां हेड, टेल एक ही हैं; वहां देना; फल की आकांक्षा छोड़ देना। कोई कार्य-कारण नहीं हैं। वहां दोनों ही एक हैं। वहां बिल्ली के ___ तो फल के लिए तो परमात्मा को भजा ही नहीं जा सकता। वह लिए सिर और पूंछ एक ही चीज के दो हिस्से हैं। | कंडीशन में ही नहीं आता। वह बेशर्त! परमात्मा की शर्त ही यही है
परमात्मा के लिए बीज और वृक्ष, कार्य और कारण नहीं हैं; एक कि तू मेरे पास आएगा तभी, जब बिना कुछ मांगता हुआ आएगा। ही चीज के दो हिस्से हैं। परमात्मा के लिए जन्म और मृत्यु, अतीत | कुछ मांगा, तो मुझसे दूरी हो जाएगी। तेरी मांग ही दूरी बन जाएगी। और भविष्य नहीं हैं; एक ही चीज के दो छोर हैं। हेड एंड टेल, सिर | । असल में मांग बताती है कि परमात्मा की हमें जरूरत नहीं है। और पूंछ। हमारे लिए सब दिक्कत है। हमारे देखने के ढंग की परमात्मा की सेवाओं की जरूरत है। सर्विसेस आर नीडेड; वजह से सारी दिक्कत है। बहुत छोटा छेद है हमारे सोचने का। वह | परमात्मा की कोई जरूरत नहीं है। एक आदमी को अपनी दुकान में छोटा छेद क्यों है? क्योंकि वर्तमान बहुत छोटा है हमारा, इसलिए | सफलता पानी है; चुनाव में जीत जाना है। किसी को धन कमाना छेद छोटा है। वर्तमान बड़ा हो जाए, छेद बड़ा हो जाए। वर्तमान ही | | है; किसी को बीमारी से मुक्ति पानी है। किसी को चाहे गए व्यक्ति रह जाए, तो सब दीवाल गिर जाती है। फिर अस्तित्व को हम वैसा | से विवाह करना है। परमात्मा की सेवाओं की जरूरत है, कि उससे ही जानते हैं, जैसा वह है। अस्तित्व में न तो कुछ बीता है, न कुछ | विवाह करा दो, जिससे करना चाहता हूं; उस कुर्सी पर पहुंचा दो, होने वाला है। सब है। सब मौजूद है।
जहां चढ़ना चाहता हूं। लेकिन मांग बताती है कि परमात्मा की