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गीता दर्शन भाग-20
कभी भी तोड़ा नहीं जा सकता। इस विभाजन को इनकार किया जा प्रश्नः भगवान श्री, अभी आपने कहा कि ब्राह्मण, सकता है। कानन बनाया जा सकता है कि ऐसा कोई विभाजन नहीं
की श्रेष्ठता, है। विधान बनाया जा सकता है, ऐसा कोई विभाजन नहीं है। हायरेकी नहीं है। लेकिन चेतना की ऊंचाइयों एवं लेकिन विभाजन जारी रहेगा।
चेतना के विकास को खयाल में रखने पर, क्या अगर हम एक कानून बना लें। और कोई कठिन नहीं है, हम | | ब्राह्मण की चेतना शूद्र की चेतना से श्रेष्ठ नहीं है? एक कानून बना दें कि स्त्री-पुरुषों के बीच कोई विभाजन नहीं है। कानून बनाया जा सकता है, मेजारिटी चाहिए! और हमेशा मेजारिटी हर तरह की बेवकूफी के लिए मिल सकती है। अगर नहीं ; चेतना किसी की श्रेष्ठ नहीं है। चेतना श्रेष्ठ होती आपकी धारा-सभा में, आपकी असेंबली और पार्लियामेंट में, | UI है अपने गुण को पूरा उपलब्ध कर लेने पर; किसी की बहुमत तय कर ले कि स्त्री-पुरुष में कोई फासला नहीं है, तो कानून
भी श्रेष्ठ हो जाती है। बन सकता है। लेकिन कानून बनने से प्रकृति नहीं बदल जाती। अगर ब्राह्मण ज्ञान के साथ आत्मसात हो जाए, तो उसकी चेतना
कानून बन भी गए हैं करीब-करीब। कानून ही नहीं बन गए, श्रेष्ठ हो जाती है। अगर क्षत्रिय शक्ति के साथ आत्मसात हो जाए. पश्चिम के मुल्कों ने स्त्री और पुरुष के बीच के फासले को गिराना एक हो जाए...। अर्जुन जब तीर चलाए, तो तीर और अर्जुन भी शुरू कर दिया है। तो पुरुष स्त्रियों जैसे होने की कोशिश में लग अलग-अलग न रह जाएं, अर्जुन तीर बन जाए। अर्जुन जब गए हैं; ताकि एक-दूसरे की तरफ थोड़ा-थोड़ा चलें, तो फासला | तलवार हाथ में ले, तो हाथ और तलवार के बीच का फासला गिर कम हो जाए। स्त्रियां पुरुषों जैसी होने लग गई हैं। स्त्रियां पुरुषों के | | जाए; हाथ और तलवार एक हो जाएं। तो ब्राह्मण जब ध्यान में पूरा कपड़े पहन रही हैं। पुरुष स्त्रियों के कपड़े पहनने की कोशिश में | लीन होकर ब्रह्म के साथ एक होता है, तो जिस अनुभव को उसकी लगे हैं। स्त्रियां बाल कटा रही हैं, पुरुष बाल लंबे कर रहे हैं! ऐसा चेतना उपलब्ध होती है, उसी अनुभव को अर्जुन की चेतना भी दोनों थोड़ा-थोड़ा चलेंगे, तो कहीं मिलन हो जाएगा, इस आशा में। | उपलब्ध हो जाएगी, जब वह घूमती हुई तलवार के साथ एक हो
लेकिन अगर स्त्रियों और पुरुषों को बिलकुल एक जैसी शकल | | जाएगा। अर्जुन के लिए वही ध्यान बन जाएगा। का भी बनाकर खडा कर दिया जाए, तो भी नियति का जो फासला जापान में मंदिर हैं. जिन मंदिरों पर तलवारों के चिह्न बने हुए हैं। है, वह नहीं गिर जाता। लेकिन उस फासले में कोई ऊंच-नीच नहीं | | जापान में क्षत्रियों का एक समूह हुआ, समुराई। मंदिरों पर तलवार! है। वह वर्टिकल नहीं है, हारिजांटल है। वह फासला ऊंचा-नीचा | और मंदिरों के भीतर तलवार सिखाने के लिए स्कूल हैं। कभी बहुत नहीं है।
चौंकने की बात मालूम पड़ती है! मंदिर के भीतर तलवार चलाने ठीक गुण और कर्म से भी जो भेद है, वह नियतिगत, स्वभावगत का स्कूल? तलवार की ट्रेनिंग? पागल हो गए हैं आप? मंदिर में है। उस स्वभावगत भेद को कृष्ण कहते हैं, मैंने ही निर्मित किया। | तलवार चलाना सिखाकर क्या करिएगा? __इस विभाजन को स्वाभाविक, परमात्मा से आया हुआ विभाजन लेकिन समुराई कहते हैं कि हम क्षत्रिय हैं। हम तो तलवार की वे कह रहे हैं। इन-बॉर्न, इन-बिल्ट, प्रकृति में ही छिपा हुआ, यही चमक पर जब एक हो जाएंगे, जब तलवार और हमारे बीच कोई उनका अर्थ है। और यह वे इसीलिए कह रहे हैं, ताकि अर्जुन को | फासला न रहेगा, तलवार का नृत्य ही जब हमारे प्राणों का नृत्य हो ठीक से खयाल आ जाए कि उसका अपना गुणकर्म क्या है। और जाएगा, हम बिलकुल एक हो सकेंगे; वही हमारा ध्यान है; वही वह उसके स्मरण को ध्यान में लेकर कर्म में सक्रिय हो सके, गुण हमारी समाधि है। वहीं से समाधि मिल जाएगी। को पहचानकर कर्म कर सके।
अगर श्रम का आतुर व्यक्ति अपने श्रम में इतना डूब जाए कि गुण और कर्म का मेल हो जाए, तो व्यक्ति के जीवन में एक पीछे कोई भी न बचे; फावड़े से खोदता है जमीन को या काटता है हार्मनी, एक अंतर-संगीत पैदा हो जाता है। गुण और कर्म का भेद लकड़ी को कुल्हाड़ी से, उसकी कुल्हाड़ी के उठने के साथ ही टूट जाए, तो व्यक्ति के जीवन में विसंगीत उत्पन्न हो जाता है। | उसका भी उठना हो, और कुल्हाड़ी के गिरने के साथ उसका भी एक प्रश्न है आखिरी। फिर हम सबह बात करेंगे।
गिरना हो, कुल्हाड़ी और उसके बीच कोई अंतर न रह जाए, तो वह
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