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परमात्मा के स्वर
उसी ध्यान को उपलब्ध हो जाता है, जो ब्राह्मण अपनी कुटी में बैठकर ध्यान करके उपलब्ध होता है।
ध्यान, चारों वर्ण के लोग अपने-अपने ढंग से उपलब्ध हो सकते हैं। और जो भी चेतना ध्यान को उपलब्ध हो जाती है, वह श्रेष्ठ हो जाती है। श्रेष्ठता का संबंध शूद्र, ब्राह्मण और वैश्य और क्षत्रिय से नहीं है। श्रेष्ठता का संबंध ध्यान से है। जो चेतना ध्यान को उपलब्ध हो जाए, किसी भी मार्ग से, वह चेतना श्रेष्ठता को उपलब्ध हो जाती है।
श्रेष्ठता ध्यान से उपलब्ध होती है। और चार तरह के ध्यान होंगे मोटे-शूद्र के लिए, ब्राह्मण के लिए, क्षत्रिय के लिए, वैश्य के लिए। तल्लीनता! इतनी तल्लीनता कि भीतर से कर्ता मिट ही जाए, एक हो जाए। यह एकता किसी भी भांति आ जाए। यह प्रयोगशाला में आ जाए वैज्ञानिक को; कि नृत्यकार को नाचते हुए आ जाए; यह वाद्य बजाने वाले वीणावादक को वीणा में आ जाए; यह शिक्षक को पढ़ाने में आ जाए; यह गिट्टी फोड़ने वाले को गिट्टी फोड़ने में आ जाए। कहीं भी आ जाए। यह ध्यान जहां भी आ जाए, वहीं श्रेष्ठता चेतना की उपलब्ध हो जाती है।
चेतना की श्रेष्ठता वर्ण पर निर्भर नहीं, चेतना की श्रेष्ठता ध्यान पर निर्भर है।
और कुछ सवाल होंगे, तो कल सुबह। आज की रात की बैठक
पूरी हुई।