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परमात्मा के स्वर
नहीं, श्रम भी उतना ही ऊपर है, जितना ज्ञान। और अगर किसी को | कृष्ण के लिए, जिस दिन वर्ण की उन्होंने बात कही, चारों वर्गों ज्ञान की पिपासा है और किसी को अगर श्रम की पिपासा है, तो | | में एक अंतर-सहयोग था, एक इनर को-आपरेशन था। एक श्रम की पिपासा का भी हकदार है आदमी कि अपनी पिपासा को आर्गेनिक यूनिटी थी। इन चारों के बीच एक शरीर-संबंध था। पूरी करे। ज्ञान की पिपासा का भी हकदार है आदमी कि अपनी ___इसलिए कृष्ण ने पीछे शरीर से तलना भी की है कि कोई सिर पिपासा को पूरी करे। और दोनों ही पिपासाएं विराट से मिली हैं, | है, कोई पैर है, कोई पेट है। अंग की भांति सारे वर्ण हैं। कोई जन्म से मिली हैं, बिल्ट-इन हैं। इसलिए गौरव की बात क्या है? | | नीचे-ऊपर नहीं है। लेकिन नीचे-ऊपर दिखाई पड़ता है। क्योंकि __ अगर मुझे सत्य की खोज की आकांक्षा है, तो इसमें गौरव की उन्होंने कहा कि सिर। सिर ऊपर मालूम होता है। पैर! पैर नीचे बात क्या है? यह मुझे वैसे ही मिली है, गिवेन है, वरदान है | मालूम होते हैं। लेकिन यह ऊपर-नीचे होना फिजिकल है। यह परमात्मा का, जैसे एक आदमी को श्रम की क्षमता मिली है। इसमें | ऊपर-नीचे होना मूल्यांकन नहीं है। यह मूल्यांकन, इसमें कोई अगौरव क्या है? कोई नीचे-ऊपर नहीं है। वह उसका बिल्ट-इन | वेल्युएशन नहीं है कि पैर नीच है, ऐसा नहीं है। अगर नीचा है, तो प्रोग्रेम है।
उसका कुल मतलब इतना है कि स्पेस में सिर ऊपर मालूम हो रहा एक फूल गुलाब बनने को हुआ है, एक फूल कमल बनने को | | है, पैर नीचे। लेकिन वह भी सब बातचीत काल्पनिक है। हुआ है, एक फूल जुही बना है, एक फूल चमेली बना है। दुनिया ___ एक आदमी किसी की छत पर खड़े होकर देखे, तो आपका सिर सुंदर है। जितने ज्यादा फूल हैं, उतनी ही सुंदर है। लेकिन गुलाब नीचे हो जाता है, उसका सिर ऊंचा हो जाता है। छोटे बच्चे करते गलाब होने की मजबरी में है। कमल कमल होने की मजबरी में है। हैं। कर्सी पर खड़े हो जाते हैं बाप के पास और कहते हैं. हम तमसे
कमल का कमल होना, कमल का गौरव नहीं है; वह कमल की | | बड़े हैं। फिजिकल! हैं भी बड़े, जब ऊपर हो गए। अगर सिर ऊपर 'नियति है, डेस्टिनी है। गुलाब का गुलाब होना भी गुलाब की | है पैर से, तो बेटा कुर्सी पर खड़ा होकर बड़ा है। डेस्टिनी है। और एक घास के फूल का घास का फूल होना भी | ___ तो छिपकली, जो आपके छत पर चल रही है आपके सिर के उसकी अपनी डेस्टिनी है।
ऊपर! छिपकली के बाबत क्या खयाल है? ब्राह्मण के ऊपर और मजे की बात यह है कि जब घास का फूल अपने पूरे सौंदर्य | छिपकली चल रही है! छिपकली बहुत ऊपर है! में खिलता है, तो किसी गुलाब के फूल से पीछे नहीं होता। आपके ये ऊपर-नीचे की बचकानी बातें हैं। इसमें कुछ भेद, कोई लिए होगा. क्योंकि बाजार में बेचेंगे. तो घास के फल का दाम नहीं मल्यांकन कष्ण के मन में नहीं है: किसी के मन में नहीं था। हमारे मिलेगा। लेकिन घास के फूल के लिए, खुद घास के फूल के लिए, | मन में पैदा हुआ। हमने थोपा। घास का फूल जब पूरी तरह खिलता है, तो उतनी ही एक्सटैसी में, __कृष्ण कहते हैं, गुण और कर्म के अनुसार मैंने विभाजित किया उतने ही हर्षोन्माद में होता है, जितना जब गुलाब का फूल अपनी | | व्यक्तियों को। पूरी पंखुड़ियों को खिलाकर नाचता है सूरज की रोशनी में। दोनों गुण, भीतरी क्षमता; कर्म, बाहरी अभिव्यक्ति; कर्म, अपने आनंद में होते हैं। और सूरज घास के फूल से यह नहीं कहता मैनिफेस्टेशन। कि शूद्र! हट, मैं सिर्फ गुलाब के फूलों के लिए आया हूं। नहीं, ___ ध्यान रहे, गुण जब कर्म बनता है, तभी दूसरों को पता चलता सूरज उतने ही आनंद से बरसता है घास के फूल पर। चांद उतने ही है। जब तक गुण गुण रहता है, तब तक किसी को पता नहीं चलता। आनंद से अमृत बरसाता है। हवाएं उतने ही आनंद से घास के फूल दूसरों को ही नहीं, खुद को भी पता नहीं चलता। खुद को भी पता को भी नृत्य और थपकी देती हैं, जितनी गुलाब के फूल को देती। तभी चलता है, जब गुण कर्म बनता है। जब एक व्यक्ति अपने को हैं। इसमें कोई भेद-भाव नहीं है।
प्रकट करता है अपने कर्मों में, तभी आपको भी पता चलता है और जगत के, अस्तित्व के भीतर कोई भेद-भाव नहीं है। गुण-भेद | उसको भी पता चलता है कि वह क्या है। है, भेद-भाव नहीं है। कोई नीचे-ऊपर नहीं है। विभाजन है, शत्रुता ___ गुण, बीज की तरह छिपा हुआ अस्तित्व है। कर्म, वृक्ष की तरह नहीं है। कोई एक-दूसरे के काफ्लिक्ट में नहीं है। संघर्ष नहीं है, | प्रकट अस्तित्व है। सहयोग है।
गुण और कर्म के अनुसार विभाजित मनुष्य हैं। इस विभाजन को
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