________________
परमात्मा के स्वर
कष्ण इस श्लोक में कहते हैं, गुण और कर्म के अनुसार | का उपाय नहीं है, जिससे हम गुण-भेद मिटा सकें। हम कितनी ही पा चार वर्ण मैंने ही रचे हैं! एक बात। और तत्काल दूसरी | बड़ी कम्युनिस्टिक सोसायटी को पैदा कर लें, कितना ही साम्यवादी
____बात कहते हैं कि फिर भी, उन्हें निर्माण करने वाले मुझ समाज निर्मित कर लें, गुण-भेद नहीं मिटा पाएंगे। धन को बराबर कर्ता को, तू अकर्ता ही जान।
बांट दें; कपड़े एक से पहना दें; मकान एक से बना दें; गुण भिन्न बहुत मिस्टीरियस, बहुत रहस्यपूर्ण वक्तव्य है। पहले हिस्से को ही होंगे। गुण में अंतर नहीं मिटाया जा सकेगा। कोई उपाय नहीं है। पहले समझ लें, फिर दूसरे हिस्से को समझें।
गुण व्यक्ति की आत्मा का हिस्सा है; बाह्य समाज व्यवस्था का वर्ण की बात ही असामयिक हो गई है। कृष्ण के इस सूत्र को हिस्सा नहीं है गुण। पढ़कर न मालूम कितने लोग बेचैनी अनुभव करते हैं। परमात्मा ने | | इसलिए पहली बात आपसे कहता है कि कृष्ण का यह खयाल रचे हैं वर्ण! कठिनाई मालूम पड़ती है। क्योंकि वर्गों के नाम पर कि यह वर्ण की व्यवस्था मैंने बनाई, यह व्यक्ति के आंतरिक इतनी बेहूदगी हुई है और वर्गों के नाम पर इतना अनाचार हुआ है, गुणधर्म की चर्चा है। इसका सामाजिक व्यवस्था से दूर का संबंध वर्णों की ओट और आड़ में इतना सड़ापन पैदा हुआ है, इतनी | है। गहरे में संबंध व्यक्ति के भीतर के निजी व्यक्तित्व से है,
सड़ांध पैदा हुई है कि भारत का पूरा हृदय ही कैंसर से ग्रस्त अगर इंडिविजुअलिटी से है। हुआ, तो वह वर्णों के सहारे हुआ है।
एक-एक व्यक्ति में गुण का भेद है। और गुण हम जन्म से लेकर - तो आज कोई भी विचारशील व्यक्ति जब इस सूत्र को पढ़ता है, पैदा होते हैं। गुण निर्मित नहीं होते, बिल्ट-इन हैं; पैदाइश के साथ तो थोड़ा या तो बेचैन होता है या जल्दी इसको पढ़कर आगे निकल बंधे हैं। वह जो मां और पिता से जो कण मिलते हैं हमें, हमारे सब जाता है। इस पर ज्यादा रुकता नहीं। ऐसा लगता है कि कुछ ठीक गुण उनमें ही छिपे हैं। नहीं है; आगे बढ़ो। पर मैं इस पर जरा रुकना चाहूं। क्यों? क्योंकि | आइंस्टीन इतनी बुद्धिमत्ता को उपलब्ध होगा, यह उसके पहले जीवन में सत्यों के आधार पर भी असत्य चल जाते हैं। सच तो यह | | अणु में छिपी हुई है। और आज नहीं कल, वैज्ञानिक पहले अणु की है कि असत्य के पास अपने पैर नहीं होते; उसे पैर सदा सत्य से | जांच करके खबर कर सकेंगे कि यह व्यक्ति क्या होगा। वैज्ञानिक ही उधार लेने पड़ते हैं। इसलिए असत्य बोलने वाला बहुत कसमें | तो यहां तक पहुंच गए हैं कि उनका खयाल है, जैसे आज बाजार खाता है कि जो मैं बोल रहा हूं, वह सत्य है। बेईमानी को भी | | में फलों की और फूलों की दुकान पर फूलों के बीजों के पैकेट ईमानदारी के वस्त्र पहनने पड़ते हैं। और दुनिया में जब भी कोई मिलते हैं, और अंदर बीज होते हैं और ऊपर फूल की तस्वीर होती सत्य जीवन-सिद्धांत प्रकट होता है, तो उसका भी दुरुपयोग किया | है, कि इन बीजों को अगर बो दिया, तो ऐसे फूल पैदा हो जाएंगे। गया है, किया जाता रहा है। लेकिन इससे सिद्धांत गलत नहीं होता। वैज्ञानिक कहते हैं, पच्चीस साल के भीतर, इस सदी के पूरे
एटम का विश्लेषण हआ। परिणाम में हिरोशिमा और होते-होते. हम आदमी के जीवाण को भी पैकेट में रखकर दकान नागासाकी का विध्वंस मिला। हिरोशिमा और नागासाकी के कारण पर बेच सकेंगे कि यह जीवाण इस तरह का व्यक्ति बन सकेगा। एटम के विश्लेषण का सिद्धांत गलत नहीं होता। लाख आदमी मर उसकी तस्वीर भी ऊपर दे सकेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि वह गए, जलकर राख हो गए। और पीढ़ियों दर पीढ़ियों तक बच्चे | जो पहला अणु है, उसमें सारा बिल्ट-इन, सभी भीतर से निर्मित प्रभावित रहेंगे। पंगु, अपंग, अंधे, लंगड़े, लूले पैदा होंगे। लेकिन गुणों की व्यवस्था है। वह बाद में प्रकट होगी; मौजूद सदा से है। फिर भी अणु के विश्लेषण का सिद्धांत, थिअरी गलत नहीं होती | और उस गुण में बुनियादी भेद है। है। गलत उपयोग हुआ, यह हमारे कारण, सिद्धांत के कारण नहीं।। | | उन भेदों को कृष्ण कहते हैं, चार में मैंने बांटा। मैंने अर्थात प्रभु __ वर्ण के कारण जो-जो हुआ, उसके लिए हम जिम्मेवार हैं, हमने, चार में बांटा। प्रकृति ने, परमात्मा ने, जो भी नाम हम पसंद गलत लोग। उसके लिए वर्ण की वैज्ञानिक चिंतना जिम्मेवार नहीं है। करें, चार मोटे विभाजन किए हैं। और चार मोटे विभाजन हैं। यह
कृष्ण जब कहते हैं, तो वे दो शब्दों का उपयोग करते हैं। वे कहते बहुत संयोग की बात नहीं है कि दुनिया में जब भी जिन लोगों ने हैं, गुण और कर्म के अनुसार मैंने चार वर्ण बनाए। गुण और कर्म! | मनुष्यों के टाइप का विभाजन किया, तो विभाजन हमेशा चार में
व्यक्ति-व्यक्ति में गुणों का भेद है। और दुनिया में कोई समानता किया; चाहे कहीं भी किया हो।