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________________ ॐ परमात्मा के स्वर और ध्यान रहे, बड़े मजे की बात है यह कि जो व्यक्ति जितना | | पर तीर रख जाएगा और वे मर जाएंगे। तू फिक्र न कर, तू सिर्फ परमात्मा पर छोड़ देता है, उतना ही बुरा कर्म मुश्किल हो जाता है। | उसके हाथ में निमित्त मात्र हो जा। कर्म के लिए अहंकार का होना जरूरी है। जो व्यक्ति | लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा है। वह कर्ता है। और जो जितना परमात्मा पर छोड़ देता है, उतना ही बुरा कर्म मुश्किल हो कर्ता है, वह निमित्त मात्र कैसे हो जाए? जिसे खयाल है, मैं करने जाता है। जो पूरा परमात्मा पर छोड़ देता है, उससे बुरा कर्म हो ही | वाला हूं, वह किसी के हाथ का माध्यम कैसे बन जाए? नहीं सकता। क्योंकि बुरे कर्म के लिए अहंकार अनिवार्य शर्त है। वह कबीर की तरह अर्जुन नहीं हो सकता। कबीर कहते हैं कि और जो व्यक्ति जितने अहंकार से भरा होता है, उससे शुभ कर्म हो | | यह बांसुरी मैं बजा रहा हूं, इसमें मैं बांसुरी हूं, बांस की पोंगरी, स्वर नहीं सकता। क्योंकि अहंकार शुभ कर्म के लिए अनिवार्य बाधा है। | मेरे नहीं हैं। स्वर उसके हैं, परमात्मा के हैं। इसलिए अगर गीत के इसलिए खुद पर जिम्मा लिया हुआ आदमी, पाप की गठरी को | | लिए कोई धन्यवाद देना हो, तो उसी को दे देना। मेरा कोई हाथ नहीं सिर पर बढ़ाता ही चला जाता है। असल में गठरी सिर्फ पाप की | | है। मैं तो सिर्फ बांस की पोंगरी हूं, जिसमें से स्वर उसके बहते हैं। होती है। पुण्य की गठरी, ऐसा शब्द आपने सुना नहीं होगा। पुण्य कृष्ण पूरी गीता में अर्जुन को कह रहे हैं, तू बांस की पोंगरी हो की कोई गठरी होती नहीं। पुण्य आया कि गठरी वगैरह से मुक्ति | जा। स्वर उसके बहने दे। तू यह मत सोच कि तू गा रहा है। तू बीच हो जाती है, सिर खाली हो जाता है। पाप की ही गठरी होती है, | में मत आ। तू हट जा। तू निमित्त हो जा। वही उसकी समझ में नहीं उसका ही बोझ और बर्डन होता है। पुण्य का कोई बोझ नहीं होता। आ रहा है। जो व्यक्ति सब परमात्मा पर छोड़ देता है, वह हवा-पानी की ___ जब ये दो बातें मैं कहता हूं कि व्यक्ति जिम्मेवार है अपने प्रत्येक तरह सरल हो जाता है। फिर जो होता है, होता है। उसके लिए फिर | | कर्म के लिए, तो मेरा मतलब है, जब तक आपका अहंकार है, जब कोई कठिनाई नहीं है। कोई बोझ नहीं, कोई दायित्व नहीं; कोई पुण्य | तक व्यक्ति है, तब तक आपको जिम्मेवार होना पड़ेगा। व्यर्थ ही नहीं, कोई पाप नहीं; क्योंकि कोई कर्म नहीं। आप जिम्मेवार हैं। ट्रेन में चढ़े हैं, गठरी सिर पर रखे हैं। कोई ट्रेन कृष्ण पूरे वक्त अर्जुन को यही समझा रहे हैं। अर्जुन पक्के बोझ | की जिम्मेवारी नहीं है। आप व्यर्थ परेशान हो रहे हैं। लेकिन जैसे से दबा हुआ है। बहुत रिस्पांसिबल आदमी मालूम होता है! बहुत | ही व्यक्ति ने अपने को छोड़ा, समर्पित किया, वैसे ही व्यक्ति दायित्वपूर्ण है। वह कहता है, ये मर जाएंगे, वे मर जाएंगे। जैसे जिम्मेवार नहीं है, विराट ही है। और विराट की कोई जिम्मेवारी नहीं वह बचाएगा, तो वे बच जाएंगे! जैसे वह न मारेगा, तो वे नहीं | | है। क्योंकि विराट किसके प्रति रिस्पांसिबल होगा? किसके प्रति मरेंगे। वह कुछ ऐसा अनुभव कर रहा है कि जैसे वह कोई सारे | | जिम्मेवार होगा? किसी के प्रति नहीं! व्यक्ति को जिम्मेवार होना अस्तित्व का सेंटर है; सब कुछ उसके ऊपर निर्भर है। वह जमाने | | पड़ेगा। विराट को जिम्मेवारी का कोई सवाल नहीं है। इनमें कोई की बातें कर रहा है कृष्ण से, कि इससे तो कुल का नाश हो जाएगा। | विरोध नहीं है। यह दो तलों पर चीजों को देखना है। इससे तो संतति विकृत हो जाएगी। इससे तो भविष्य में सब दो तल हैं। एक अज्ञानी का तल है, अज्ञानी के तल पर समझना अंधकार हो जाएगा। सधवाएं विधवाएं हो जाएंगी। पापाचरण पड़ेगा। एक ज्ञानी का तल है, ज्ञानी के तल पर भी समझना पड़ेगा। बढ़ेगा। वह सब बता रहा है। उसके कारण ! अगर वह युद्ध करेगा! और बहुत बार बड़ी उलझन होती है कि अज्ञानी होता तो अज्ञानी के अगर वह युद्ध से हट जाएगा, तो सब ठीक होगा? तो अब तो तल पर है और ज्ञानी के तल की बातें करने लगता है; तब बड़ी अर्जन कहीं भी नहीं है। लेकिन सब कहीं भी ठीक दिखाई नहीं कठिनाई खड़ी हो जाती है। ऐसा रोज होता है। हमारे देश में तो जरूर पड़ता। अर्जुन का भ्रम यही है कि वह सोच रहा है, सारा जिम्मा | | हुआ है। क्योंकि इस देश में ज्ञान की इतनी बातें थीं कि अज्ञानी भी मेरा है। मैं हूं सारी चीजों के बीच में। उनको करना सीख गए। वे भी ज्ञान की बातें करने लगे। रहते अज्ञानी __ कृष्ण पूरे समय एक ही बात समझा रहे हैं कि तू अपने को सेंटर | | की तरह हैं, जीते अज्ञानी की तरह हैं, बोझ अज्ञानी का लिए रहते हैं। न मान। तू अपने को केंद्र न मान। तू व्यर्थ की उलझन में मत पड़। । | वक्त पर, मौके पर, ज्ञानी की तरह बातें करने लगते हैं। जो करवा रहा है, जो कर रहा है, उस पर तू छोड़ दे। उसे मारना है, मेरे पड़ोस में एक आदमी मर गया, तो मैं उनके घर गया। तो मारेगा। तेरे बहाने से, किसी और के बहाने से, किसी भी कंधे पास-पड़ोस के लोग इकट्ठे थे। सब समझा रहे थे कि आत्मा तो
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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