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________________ गीता दर्शन भाग-2 ब तक व्यक्ति है, तब तक अपने कर्मों के लिए जिम्मेवार है। जब व्यक्ति अपने को विराट में छोड़ देता है, तब जिम्मेवार नहीं है। ज इसे ठीक ऐसा समझें कि एक छोटा बच्चा अपने बाप का हाथ पकड़कर रास्ते पर चल रहा है। बच्चा गिर पड़े, बाप जिम्मेवार है। लेकिन लड़के ने बाप का हाथ छोड़ दिया और खुद ही चल रहा है; अब गिर पड़े, तो बाप जिम्मेवार नहीं है। रिस्पांसिबिलिटी, उत्तरदायित्व आपके अपने ऊपर निर्भर है। अगर आप अहंकार के सहारे जीने की कोशिश में लगे हैं, तो आप अपने प्रत्येक कर्म के लिए जिम्मेवार हैं। बुरा किया है, तो आपने किया है; अच्छा किया है, आपने किया है। क्योंकि आपके प्रत्येक कर्म के पीछे आपके कर्ता का भाव खड़ा है। लेकिन एक व्यक्ति ने समर्पण किया है सब विराट को । उसने कहा, जो तेरी मर्जी । बुरा करवाए, तो तू। अच्छा करवाए, तो तू । अगर उसने मंदिर बनाया और गांव में जाकर कहे कि मंदिर मैंने बनाया। और कल चोरी में पकड़ा जाए और कहे कि चोरी परमात्मा ने करवाई, तब फिर उस आदमी ने छोड़ा नहीं। तब फिर वह बेईमानी कर रहा है, अपने साथ भी और परमात्मा के साथ भी । नहीं, तब वह कहेगा कि परमात्मा ने मंदिर बनवाया, मैं कौन हूं! और तब वह कहेगा, परमात्मा ने चोरी कराई, मैं कौन हूं! और अगर अदालत उसे सजा दे दे, तो वह कहेगा, परमात्मा ने सजा दी। मैं कौन हूं! तब फिर कठिनाई नहीं है। जब तक व्यक्ति कर्ता के भाव से जीता है, तब तक सारी जिम्मेवारी उसकी है। इसलिए है कि वह खुद अपने हाथ से जिम्मेवारी ले रहा है। उसकी हालत करीब-करीब ऐसी है कि मैंने सुना है, एक फकीर एक ट्रेन में सवार हुआ। बैठा है सीट पर, लेकिन अपना बिस्तर अपने सिर पर रखे रहा। पास-पड़ोस के लोगों ने जरा चौंककर देखा । फिर किसी ने कहा कि महाशय ! बिस्तर नीचे आराम से रखें। आप यह क्या कर रहे हैं? उस फकीर ने कहा, लेकिन टिकट मैंने सिर्फ अपने लिए दिया, तो बिस्तर का बोझ ट्रेन पर डालना ठीक नहीं है। मैं अपने ही ऊपर बोझ रखे हुए हूं। लेकिन लोगों ने कहा कि महाशय, आप अपने सिर पर भी रखें, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता, ट्रेन पर बोझ पड़ ही रहा है। आप नीचे रखें कि सिर पर रखें। हां, सिर पर रखकर आप भर परेशान हो रहे हैं। ट्रेन पर कोई अंतर नहीं पड़ रहा है इससे । वह फकीर हंसने लगा, उसने कहा कि मैं तो सोचा कि अज्ञानी हैं यहां, इसलिए सिर पर रखूं। मुझे क्या पता कि इस कमरे में ज्ञानी हैं! उसने बिस्तर नीचे रख दिया। लोग और हैरान हुए। उन्होंने | कहा, हम तुम्हारा मतलब न समझे ! उस आदमी ने कहा, मैं तो यह सोचकर कि तुम सब सारी जिंदगी का भार अपने ऊपर रखते होओगे, ऐसे सब भार परमात्मा पर है! लेकिन मकान बनाओगे तो | कहोगे, मैंने बनाया । बोझ तुम अपने ऊपर रखोगे । इसीलिए मैं बिस्तर अपने सिर पर रखकर बैठा कि तुम्हारे बीच यही संगत | होगा। लेकिन तुम बड़े ज्ञानी हो; अच्छा हुआ । इस फकीर ने हम सब की मजाक की, गहरी मजाक की और हृदय के गहरे घाव को की कोशिश की। जब हम जिम्मेवार हैं, तब भी वस्तुतः तो परमात्मा ही जिम्मेवार है। लेकिन वस्तुतः का कोई सवाल नहीं है। तब तक हम अपने सिर पर बोझा रखने का कष्ट तो भोगेंगे ही। ट्रेन भला ही पूरे बोझ को ढोती हो, लेकिन जो आदमी पेटी अपने सिर पर रखे हुए है, वह तो | वजन ढोएगा ही; तकलीफ भोगेगा ही ! और सिर पर से पेटी गिर पड़े, तो हाथ-पैर उसका टूटेगा ही। इस बात के होते हुए भी कि ट्रेन पूरा बोझ ढो रही है। 54 विराट सब चीजों के लिए जिम्मेवार है। लेकिन ध्यान रहे, विराट से समझौता नहीं हो सकता। आप ऐसा नहीं कह सकते कि कुछ के लिए मैं जिम्मेवार, कुछ के लिए तुम जिम्मेवार । जब बुरा हो, तो तुम जिम्मेवार; जब भला हो, तो मैं जिम्मेवार। वैसा नहीं चलेगा। तो सब छोड़ दो विराट पर, या फिर सब अपने ही ऊपर रखना पड़ता है। अहंकारी सब अपने ऊपर रखकर चलता है। अधार्मिक सब अपने ऊपर रखकर चलता है। धार्मिक सब उस पर छोड़ देता है। लेकिन सब - टोटल । इसमें रत्तीभर बचाया नहीं जा सकता। तो दोनों ही बातें दो तलों पर सही हैं। जहां तक आम आदमी का | संबंध है, वह हर चीज के लिए खुद ही जिम्मेवार होता है। और | इसलिए जिम्मेवारी का दुख भोगता है । जिम्मेवारी में दुख है, पीड़ा है, संताप है। जो जानता है, वह सब छोड़ देता है प्रभु पर। फिर वह दुख नहीं भोगता । फिर वह स्वतंत्रता का सुख भोगता है। फिर वह सब दायित्वों से मुक्त होकर, फूल की तरह हल्का-फुल्का हो जाता है। फिर वह पक्षियों की तरह गीत गा सकता है और नदियों और झरनों | की तरह दौड़ सकता है और नाच सकता है। फिर उसकी जिंदगी किसी भी बोझ से दबी हुई नहीं है।
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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