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________________ परमात्मा के स्वर इस देश में कभी भी ऐसा नहीं समझा गया कि कोई चीज पूरी असंभव है। सिर्फ चीजें बदलती हैं, नए रूप लेती हैं। कितने ही नए तरह नष्ट हो सकती है। नष्ट होने का इतना ही मतलब होता है कि रूपों में मूलतः वे वही होती हैं, जो थीं। लेकिन उनको फिर पुनः नया वह लुप्त हो गई। रूप, पुराने रूप में लाने को, पुराने को प्रगट करने के लिए कुछ आज विज्ञान भी इस बात से सहमति देता है। डिस्ट्रक्शन का अर्थ उपाय करना होता है। मिट जाना नहीं, सिर्फ लुप्त हो जाना है। क्योंकि कोई चीज पूरी तरह इसलिए कृष्ण का जो अर्थ है, वह लुप्तप्राय ही है। क्योंकि उस नष्ट हो ही नहीं सकती। एक रेत के छोटे-से कण को भी हम नष्ट | दिन नष्ट का यही अर्थ था। आज हमारे लिए दो अर्थ हैं। अगर हम नहीं कर सकते। हम सिर्फ रूपांतरित कर सकते हैं, लुप्त कर सकते | प्रयोग करते हैं, नष्ट हो गया। जब हम कहते हैं, फलां आदमी मर हैं। किसी और रूप में वह प्रगट हो जाएगा। नष्ट नहीं हो सकता। गया, तो हमारे लिए वही मतलब नहीं होता है, जो कृष्ण के लिए इस पृथ्वी पर कोई चीज नष्ट नहीं होती और न कोई चीज सृजित था। कृष्ण के लिए तो मरने का इतना ही मतलब होता है कि उस होती है। जब हम कहते हैं, हमने कोई चीज बनाई, तो उसका | | आदमी ने फिर से जन्म ले लिया। हमारे लिए मरने का मतलब होता मतलब यह नहीं होता है कि हमने कोई नई चीज बनाई। उसका है, खतम हो गया; समाप्त हो गया। आगे कोई जन्म हमें दिखाई इतना ही मतलब होता है कि हमने कुछ चीजों को रूपांतरित किया। नहीं पड़ता। हमारी मृत्यु में अगला जन्म नहीं छिपा हुआ है। कृष्ण हमने रूप बदला। की मृत्यु में भी अगला जन्म छिपा हुआ है। कृष्ण के लिए मृत्यु एक ___ पानी है। गर्म किया, भाप हो गई। पानी नष्ट हो गया। लेकिन द्वार है नए जन्म का; हमारे लिए द्वार है अंत का, समाप्ति का। क्या अर्थ हुआ नष्ट होने का? भाप होकर पानी अब भी है। और उसके आगे फिर कुछ नहीं है; अंधकार है। सब खो गया; सब नष्ट अगर थोड़ी ठंडक दी जाए और बर्फ के टुकड़े छिड़क दिए जाएं, हो गया। तो भाप अभी फिर पानी हो जाए। तो पानी नष्ट हुआ था कि लुप्त इसलिए कृष्ण अगर प्रयोग करें, धर्म मर गया, तो भी हर्जा नहीं हुआ था? ' है। क्योंकि उसका भी मतलब इतना ही होगा कि वह रूपांतरित हो पानी लुप्त हुआ भाप में; रूप बदला। फिर बर्फ छिड़क दी, पानी | गया किसी और जीवन में; कहीं और से छिप गया, कहीं और चला फिर प्रगट हआ। नष्ट नहीं हुआ था। नष्ट होता. तो वापस नहीं गया। लेकिन हम अगर कहें कि धर्म मर गया. तो हमारे लिए लौट सकता था। बहत ठंडा कर दें पानी को. तो बर्फ बन जाएगा। मतलब होगा. समाप्त हो गया: डेड एंड आ गया। पानी फिर नष्ट हो गया। पानी नहीं है अब, बर्फ है अब। लेकिन अंत नहीं आता। कृष्ण की भाषा में कोई शब्द अंतवाची नहीं है। बर्फ को गरमा दें, तो फिर पानी हो जाएगा। सभी शब्द नए आरंभ के सूचक हैं। मृत्यु नया जन्म है। नष्ट होना इस जगत में, इस अस्तित्व में न तो कोई चीज नष्ट होती और नए रूप में खो जाना है। इसलिए नष्ट का अर्थ लुप्त ही है। और न कोई चीज निर्मित होती है। सिर्फ रूपांतरण होते हैं। इसलिए परित्राणाय का अर्थ भी उद्धार के लिए ही है, परित्राण के लिए ही संस्कृत का जो शब्द है, योग नष्ट हो गया, उसके लिए हिंदी का है। उसमें कुछ भूल नहीं हो गई है। अनुवाद में कोई भूल नहीं है। अनुवाद लुप्तप्राय करना बिलकुल ही ठीक है। ठीक इसलिए है कि अगर आज हिंदी में हम प्रयोग करें, नष्ट हो गया, तो लोग शायद यही समझेंगे कि नष्ट हो गया। प्रश्नः भगवान श्री, पिछले एक प्रवचन में आपने कहा लेकिन जिस दिन इस नष्ट शब्द का प्रयोग कृष्ण ने किया था, है कि प्रत्येक मनुष्य अपने अच्छे और बुरे कर्मों के उस दिन नष्ट से कोई भी ऐसा नहीं समझता कि नष्ट हो गया। लिए स्वयं जिम्मेवार है, लेकिन आज सुबह की चर्चा क्योंकि उस दिन की समझ ही यही थी कि कुछ भी नष्ट नहीं होता में आपने कहा है कि सब कुछ विराट, ब्रह्म शक्ति के है। सभी चीजें रूपांतरित होती हैं। इसलिए अनुवादक ने ठीक नियमों के आधार पर होता है, तो व्यक्ति स्वयं कर्मों विवेक का उपयोग किया है। उसने लुप्तप्राय कहा। खो गया; नष्ट | के लिए जिम्मेवार कैसे होगा? नहीं हो गया। नष्ट कभी कुछ होता ही नहीं है। डिस्ट्रक्शन असंभव है। विनाश
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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