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________________ गीता दर्शन भाग-2000 यज्ञ आदि शुभ आत्माओं से संबंध स्थापित करने की मनोवैज्ञानिक प्रयास फिर से करवा लेती हैं। प्रक्रियाएं थीं। जिसे दुनिया में ब्लैक मैजिक कहते हैं, उस तरह की ऐसे स्थान हैं, जहां आदमी के मन में शुभ फलित होता है। जिन्हें प्रक्रियाएं बुरी आत्माओं से संबंध स्थापित करने की प्रक्रियाएं थीं। हम तीर्थ कहते थे, उन तीर्थों का कोई और अर्थ नहीं है। जिन स्थानों कृष्ण कहते हैं, जो सीधा मुझको न भी उपलब्ध हो, वह भी पर भली आत्माओं के संघट की संभावना अनेक-अनेक रास्तों से देवताओं की पूजा और अर्चना से शुभ कर्मों को करता हुआ, शुभ निर्मित की गई है, उन स्थानों पर आदमी जाकर अचानक भला कर्म को उपलब्ध हो सकता है। जो परम सत्य को उपलब्ध न भी हो, कर पाता है, जो उसके वश के बाहर दिखाई पड़ता है। वह भी शुभ को उपलब्ध हो सकता है। । हम अकेले नहीं हैं। हमारे चारों ओर और बहुत शक्तियां काम दो कारणों से वह शुभ को उपलब्ध होगा। एक तो, जो शुभ की कर रही हैं। जब हम बुरा होना चाहते हैं, तो बुरी शक्तियां हमारे आकांक्षा करता है, वह शुभ कर्म करता है। आकांक्षा का सबूत | साथ खड़ी हो जाती हैं और हमारे हाथों का बल बन जाती हैं। और और कुछ भी नहीं है सिवाय कर्मों के। हम जो करते हैं, वही गवाही जब हम अच्छा कुछ करना चाहते हैं, तब भी अच्छी शक्तियां हमारे है हमारी आकांक्षाओं की। हमारी डीड, हमारा कर्म ही हमारे प्राणों साथ खड़ी हो जाती हैं और हमारे हाथों का बल बन जाती हैं। की प्यास की खबर है। तो कृष्ण कह रहे हैं, अच्छा कर्म करते हुए, देवताओं की शुभ कर्मों को करता हुआ। अर्चना, प्रार्थना, पूजा से, जो व्यक्ति सीधा मुझ तक न भी पहुंचे लेकिन आदमी बहुत कमजोर है और शुभ कर्म भी आदमी | वह भी शुभ को उपलब्ध होता है। अकेला करना चाहे, तो अति कठिन है। वह अपने चारों तरफ व्याप्त जो शुभ की शक्तियां हैं, उनका सहारा ले सकता है। और कई बार जब आप कोई बड़ा शुभ कर्म करते हैं, तो आप खुद भी | प्रश्नः भगवान श्री, पिछली चर्चाओं के संबंध में दो अनुभव करते हैं, जैसे कोई और बड़ी शक्ति भी आपके साथ खड़ी चीजें स्पष्ट करें। दूसरे श्लोक के हिंदी अनुवाद में हो गई। जब आप कोई बहुत बुरा कर्म करते हैं, तब भी आपको | | लिखा गया है कि बहुत काल से इस पृथ्वी पर योग अनुभव होता है कि जैसे आप अकेले नहीं हैं। कोई और बुरी शक्ति | लुप्तप्राय हो गया है, किंतु संस्कृत श्लोक में योगो भी आपके साथ संयुक्त हो गई है। नष्टः, ऐसा कहा गया है; अर्थात योग करीब-करीब हत्यारों ने अदालतों में बहुत बार बयान दिए हैं, और उनके लोप नहीं, बल्कि योग नष्ट हो गया है। कृपया इसके बयान कभी भी ठीक से नहीं समझे जा सके, क्योंकि अदालतों की बारे में थोड़ा समझाइए। समझ की सीमा है। अदालतों में हत्यारों ने सारी पृथ्वी पर अनेक और आठवें श्लोक के हिंदी अनुवाद में लिखा गया बार यह कहा है कि यह हत्या हमने नहीं की: जैसे हमसे करवा ली है कि साधुओं का उद्धार करने के लिए प्रकट होता गई है। लेकिन अदालत तो इस बात को नहीं मानेगी। मानेगी कि हूं, लेकिन संस्कृत में साधुओं के परित्राण के लिए झूठ है वक्तव्य। झूठ बहुत मौकों पर हो भी सकता है; बहुत मौकों | प्रकट होता हूं, ऐसा कहा गया है। कृपया 'साधुओं पर झूठ नहीं है। के उद्धार' के स्थान पर 'परित्राण' का अर्थ स्पष्ट करें। जो लोग प्रेतात्म-विज्ञान पर थोड़ा-सा श्रम उठाए हैं, उनको इस बात का अनुभव होना शुरू हुआ है कि बुरी आत्माएं दूसरे व्यक्तियों को कमजोर क्षण में प्रभावित कर लेती हैं। 7 रित्राण का तो वही अर्थ है, जो उद्धार का है। उसमें ऐसे मकान हैं पृथ्वी पर, जिन मकानों में निरंतर हत्या होती रही ५ कोई भेद नहीं है। नष्टप्राय का या योग नष्ट हो गया, है, पीढ़ियों से। और जब उन मकानों के लंबे इतिहास को खोजा इसका लुप्तप्राय अर्थ करना भी गलत नहीं है। असल गया है, तो जानकर बड़ी हैरानी हुई कि हर बार हत्या का क्रम वही | में संस्कृत के 'नष्ट होने का अर्थ, जिस दिन उस शब्द का प्रयोग रहा है, जो पिछली बार हत्या का था। उन घरों में उन आत्माओं का किया गया, उस दिन नष्ट होने की जो परिभाषा थी, उसको ध्यान वास है, जो उस घर में आने वाले नए लोगों से हत्या करवाने का में रखकर करना पड़े।
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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