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________________ परमात्मा के स्वर आज ही कोई मुझे कह रहा था कि आपके ये संन्यासी सड़कों तरह जलाकर भस्म, राख कर डालना है। जो अपने मैं को जरा भी पर नाचते-गाते निकल रहे हैं, इससे फायदा क्या है? मैंने उनसे | बचाना चाहे, वह परम शक्ति के संपर्क में नहीं आ सकता। जैसे कहा, जाओ, और नाचो, और देखो! उन्होंने कहा, हमें कुछ | सूर्य के पास कोई पहुंचना चाहे, तो भस्म हो ही जाएगा। ऐसे ही फायदा दिखाई नहीं पड़ता। मैंने कहा, बिना नाचे मत कहो। नाचो | | परम शक्ति के पास कोई पहुंचना चाहे, तो स्वयं को मिटाए बिना पूरे हृदय से, फिर प्रतीक्षा करो। फायदे की बड़ी वर्षा हो जाएगी। | कोई रास्ता नहीं है। इसलिए परम साहस है, करेज है। निश्चित ही फायदा नोटों में नहीं होगा, कि नोट बरस जाएंगे! धार्मिक व्यक्ति ठीक अर्थों में अपने को मिटाने के साहस से ही लेकिन नोटों से भी कीमती कुछ इस पृथ्वी पर है। और जिसके लिए पैदा होता है। इसलिए अधिक धार्मिक लोग इतना साहस तो नहीं नोट सबसे कीमती चीज है; उससे ज्यादा दरिद्र आदमी खोजना | कर पाते हैं। लेकिन फिर भी सूर्य के पास कोई न जा पाए, तो भी मुश्किल है। भिखारी है, भिखमंगा है। उसे कुछ भी पता नहीं है। | अंधेरे में ही रहे, ऐसा जरूरी नहीं है। छोटे मिट्टी के दीए भी जलाए नाचो प्रभु के सामने और छोड़ दो फिर नाच को उसकी तरफ, | जा सकते हैं। और मिट्टी के छोटे से दीए में जो ज्योति जलती है, फिर लौटेगा। जो नाचकर प्रभु के पास गया है, नाचता हुआ प्रभु वह भी महासूर्यों का ही हिस्सा है। लेकिन वह जलाती नहीं, वह उसके पास भी आता है। जिसने गीत गाकर निवेदन किया है, उसने मिटाती नहीं; वह आपके हाथ में उपयोग की जा सकती है। और महागीत में गाकर उत्तर भी दिया है। उसका ही आश्वासन देवता परम शक्ति के समक्ष दीयों की तरह हैं, छोटे दीयों की कृष्ण के द्वारा अर्जुन को इस सूत्र में दिया गया है। तरह हैं। देवता उन आत्माओं का नाम है...इसे थोड़ा-सा समझ लेना जरूरी होगा, तभी यह बात ठीक से खयाल में आ सकेगी। जैसे ही कोई व्यक्ति मरता है, इस शरीर को छोड़ता है, - कांक्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः।। साधारणतः सौ में निन्यानबे मौकों पर तत्काल ही जन्म हो जाता है। क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा । । १२ ।। कभी-कभी, यदि व्यक्ति बहुत बुरा रहा हो, तो तत्काल जन्म और जो मेरे को तत्व से नहीं जानते हैं, वे पुरुष, इस मनुष्य मुश्किल होता है; या व्यक्ति बहुत भला रहा हो, तो भी तत्काल लोक में, कमों के फल को चाहते हुए देवताओं को पूजते हैं | | जन्म मुश्किल होता है। बहुत भले व्यक्ति के लिए भी गर्भ खोजने और उनके कमों से उत्पन्न हुई सिद्धि भी शीघ्र ही होती है। | में समय लग जाता है। वैसा गर्भ उपलब्ध होना चाहिए। बहुत बुरे व्यक्ति को भी। मध्य में जो हैं, उन्हें तत्काल गर्भ उपलब्ध हो जाता है। जो बहुत बुरे व्यक्ति हैं, उन्हें कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ वन के परम सत्य को भी जो नहीं जानते, वे भी जीवन सकती है, करनी पड़ती है; जब तक उनके योग्य उतना बुरा गर्भ UII की बहुत-सी शुभ शक्तियों से लाभान्वित हो सकते | | उपलब्ध न हो सके। ऐसी आत्माओं को प्रेत पारिभाषिक शब्द हैं। परमात्मा परम शक्ति है, लेकिन शक्ति और छोटे | है-ऐसी प्रतीक्षा कर रही आत्माओं का, जो नई देह को उपलब्ध रूपों में भी बहुत-बहुत मार्गों से प्रकट होती है। नहीं हो पा रही हैं—बहुत बुरी हैं इसलिए। बहुत भली आत्माएं भी कृष्ण अर्जुन को इस सूत्र में कह रहे हैं कि जो मुझे उपलब्ध हो शीघ्र जन्म को उपलब्ध नहीं हो पातीं। ऐसी प्रतीक्षा करती आत्माओं जाते हैं, जो मेरी देह को उपलब्ध हो जाते हैं, वे जन्म-मरण से मुक्त का नाम देवता है। वह भी पारिभाषिक शब्द है। हो जाते हैं। लेकिन जो मुझे नहीं भी उपलब्ध होते सीधे, जो परम ___ जो सीधे परमात्मा से संबंधित नहीं हो पाते, वे भी चाहें तो स्रोत से सीधे संबंधित नहीं होते, वे भी देवताओं से, देवताओं से संबंधित हो सकते हैं। बुरी आत्माएं बुरा करने के लिए उनकी पूजा कर, उनकी सन्निधि में आ, शुभ को उपलब्ध होते हैं। | आतर रहती हैं. देह न हो तो भी। अच्छी आत्माएं अच्छा करने के यहां दो-तीन बातें समझ लेने जैसी हैं। लिए आतुर रहती हैं, देह न हो तब भी। इन आत्माओं का साथ मिल साधारणतः परम शक्ति के संपर्क में आना अति कठिन है। परम | | सकता है। इसका पूरा अलग ही विज्ञान है कि इन आत्माओं का शक्ति के संपर्क में आने के लिए बड़ी छलांग, बड़े साहस की साथ कैसे मिल सके। लेकिन आमंत्रण से, इनवोकेशन से, जरूरत है। परम शक्ति के संपर्क में आने का अर्थ अपने को पूरी निमंत्रण से इन आत्माओं से संबंधित हुआ जा सकता है। समस्त ऊर्जा से
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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