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दिव्य जीवन, समर्पित जीवन
बैठेंगे न, तो खड़ा रह सकता है। गैर-अहंकारी तय कर ले, तो | हम अच्छी बात लाने के लिए भी अहंकार का उपयोग करते हैं। थोड़ी-बहुत देर में सोचेगा कि बहुत से बहुत लोग यही कहेंगे न कि | | बाप अपने बेटे से कहता है कि देखो, ऐसा आचरण करोगे, तो अपना वचन पूरा नहीं कर पाया! बैठ जाते हैं। अहंकारी कहेगा कि | हमारे कुल की बड़ी बदनामी होगी। आचरण बुरा है, ऐसा नहीं कह अब चाहे प्राण चले जाएं, लेकिन अब बैठ नहीं सकता। एक | | रहा है। वह यह कह रहा है कि ऐसा आचरण करने से कुल की बड़ी अहंकार की कसम हो गई।
बदनामी होगी। लोग क्या कहेंगे कि मेरा बेटा! और ऐसा कर रहा तो ध्यान रहे, अहंकारी अक्सर तपश्चर्या में उत्सुक हो जाते हैं। है? उसके बेटे के अहंकार को परसुएड किया जा रहा है। इसलिए तपस्वी अगर अहंकारी मिलते हों, तो आश्चर्य नहीं है। ___ चारों तरफ ग्रेट परसुएडर्स बैठे हुए हैं; चारों तरफ फुसलाने वाले
आमतौर से तपस्वी अहंकारी मिलते हैं। उसका कारण यह नहीं कि बैठे हुए हैं। वे अहंकार को फुसला रहे हैं। वे उस अहंकार को तपस्वी अहंकारी होते हैं. उसका बनियादी कारण यह है कि तरकीब-तरकीब से फुसलाकर हमसे काम करवा रहे हैं। अहंकारी आसानी से तपस्वी हो जाते हैं। असल में अहंकार जो भी हमारी पूरी जिंदगी अहंकार के आधार पर होने वाली तपश्चर्या है। जिद्द पकड़ ले, उसको पूरा करने की कोशिश करता है। ___ एक आदमी धन कमाता है, तो कोई कम तप नहीं करता। जंगल
तो सौ में अट्ठानबे तपस्वियों का मौका यह है कि वे अहंकार से में बैठे तपस्वियों से कम नहीं होता तप उसका; एक अर्थ में ज्यादा तपश्चर्या के रास्ते पर आते हैं। इसलिए हम तपस्या की खूब प्रशंसा | | ही होता है। करता क्या है बेचारा? दिनभर सुबह से सांझ तक धन करते हैं, शोभायात्रा निकालते हैं। कोई उपवास कर ले, तो | | इकट्ठा करने में लगा हुआ है। पागल की तरह दौड़ रहा है। शोभायात्रा निकलती है, जुलूस निकलता है; बैंड-बाजे बजाते हैं। जिंदगीभर दौड़ता है; तिजोरी भरकर मर जाता है। लेकिन धन
उपवास के लिए बैंड-बाजों की कोई जरूरत नहीं। लेकिन जिस अहंकार के लिए सुख है। जितना ज्यादा, उतना सुख है। बस, अहंकार से उपवास फलित हुआ है, वह बैंड-बाजे के बिना अहंकार धन को इकट्ठा करवा देता है। शिथिल हो जाएगा। उसके लिए बैंड-बाजा बिलकुल जरूरी है, एक आदमी दिल्ली की तरफ दौड़ता रहता है। अभी बहुत-से उसको जगाए रखने के लिए, फुसलाने के लिए। क्योंकि उस | लोग दौड़ रहे हैं। दिल्ली में ऐसा कुछ रस नहीं है। अहंकार में रस आदमी ने उपवास के लिए उपवास नहीं किया। अंत में यह है। कितना पागलपन चलता है! कितना बेचारा हाथ-पैर जोड़ता है बैंड-बाजा बजने वाला है, बहुत गहरे में इसकी आकांक्षा है। | किसी के भी कि किसी तरह मुझे दिल्ली पहुंचाओ! सब दांव पर
तो हम अहंकार को प्रोत्साहित करते हैं, क्योंकि अहंकार के लगा देता है, किसी तरह दिल्ली पहुंचाओ! एक अहंकार है। आधार पर तप हो सकता है। लो
| दिल्ली पहुंचकर वह समबडी हो जाता है, कुछ हो जाता है। फिर होता है, उससे आत्मा पवित्र नहीं होती और अपवित्र हो जाती है। और दौड़ पर दौड़ चलती जाती है। वर्तुल के भीतर वर्तुल हैं। फिर
इसलिए कृष्ण को कंडीशन लगानी पड़ी, ज्ञानरूपी तप। अकेला दिल्ली पहुंचकर केबिनेट में कैसे प्रवेश कर जाए! फिर सब तप काफी नहीं हैक्योंकि अज्ञानरूपी भी हो सकता है। अकेला | सिद्धांतों की बात करता है, लेकिन सिर्फ सिद्धांत अहंकार है, और तप काफी नहीं है, तप अज्ञान से भी निकल सकता है। और जब | | कोई सिद्धांत नहीं है। न कोई समाजवाद है, न कोई लोकतंत्र है, न तप अज्ञान से निकलता है, तो आत्मा को और भी अपवित्र कर कुछ है। जाता है। ज्ञान से निकलना चाहिए।
दुनिया में कोई सिद्धांत नहीं है आदमी के लिए। आदमी का ज्ञान से निकलने का क्या अर्थ हुआ? ज्ञान से तप कैसे | | गहरा सिद्धांत एक है, ईगो। फिर उस अहंकार के लिए निकलेगा? अज्ञान से तो निकल सकता है; बहुत आसान है। हमारी | | आभूषण-समाजवाद, लोकतंत्र, और-और न मालूम क्या-क्या! पूरी जिंदगी, अज्ञान के केंद्र, अहंकार पर खड़ी होती है। | वे सब आभूषण हैं उस एक सिद्धांत के।
बाप अपने बेटे से कहता है कि देखो पड़ोस का लड़का आगे | ___ सारी दुनिया अहंकार की तपश्चर्या में रत है। इन्हीं तपस्वियों को निकला जा रहा है! हमारे कुल की इज्जत खतरे में है। बेटे के | | हम धर्म की तरफ भी लगा देते हैं। ये ही तपस्वी धर्म में लग जाते
अहंकार को जगाता है। बेटा और रातभर पढ़ने में लग जाता है कि हैं। बैठ जाते हैं उपवास करके! अगर लोग न जाएं, तो बड़ी किसी तरह गोल्ड मेडल ले आए, क्योंकि इज्जत का सवाल है। मुश्किल हो जाती है।
पदार
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