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दिव्य जीवन, समर्पित जीवन
कृष्ण जब कहते हैं मैं, तो उनके मैं में सब तू समाए हुए हैं। और का केंद्र एक ही है। हां, कोई उसकी तरफ भागता, कोई उससे पीठ जब हम कहते हैं मैं, तो हमारे मैं में सब तू अलग हैं, बाहर हैं; कोई करके भागता, लेकिन वही दोनों के ध्यान में है। दोनों की अटेंशन, भी समाया हुआ नहीं है। कृष्ण के मैं में तू इनक्लूसिव है। हमारे मैं | | दोनों की एकाग्रता वही है। दोनों की एकाग्रता में भेद नहीं है। में तू एक्सक्लूसिव है, बाहर है।
___ जो आदमी स्त्री के पीछे भागता, उस आदमी की एकाग्रता, और हम जब बोलते हैं मैं, तो हम तू से फासला बताने के लिए बोलते | जो आदमी स्त्री को छोड़कर भागता, उस आदमी की एकाग्रता में हैं। कृष्ण जब बोलते हैं मैं, तो वे तू को ढांक लेने के लिए बोलते | | भेद नहीं है। उनका कनसनट्रेशन एक है-स्त्री। जो आदमी स्त्री हैं। लेकिन यह हमारे खयाल में नहीं आ सकता।
के लिए पागल है, उसके मन में भी स्त्री के चित्र चलते हैं। या जो उनका मैं इतना बड़ा है कि उस मैं के बाहर और कोई भी नहीं। | स्त्री आदमी के लिए पागल है, उसके मन में पुरुष के चित्र चलते और हमारा मैं इतना छोटा है कि उस मैं के भीतर हमारे सिवाय और | | हैं। और जो छोड़कर भागता है, विपरीत रूप से पागल हो जाता है, कोई भी नहीं। इस फर्क को खयाल में रखेंगे, तो बार-बार उनके मैं | उसके मन में भी चित्र चलते हैं। का प्रयोग ठीक से समझ में आ सकता है।
__ वीतराग का अर्थ है, पार हुआ। वीतराग तीसरी बात है। न राग, न विराग। जो राग और विराग दोनों के पार होता है, वह वीतराग
है। जिसके लिए बात बस व्यर्थ हो जाती है। वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामपाश्रिताः।
ध्यान रहे. जो आदमी कहता है. मैं धन का त्याग कर रहा हं. बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः।।१०।। | धन उसे व्यर्थ नहीं हुआ; धन उसे अभी भी सार्थक है। जो आदमी और हे अर्जुन! पहले भी राग, भय और क्रोध से रहित, कहता है, मैं लाखों त्याग किया हूं, उसके लिए भी व्यर्थ नहीं हुआ; अनन्य भाव से मेरे में स्थित रहने वाले, मेरे शरण हुए बहुत | अभी उसके लिए भी धन सार्थक है, मीनिंगफुल है। हां, मीनिंग से पुरुष, ज्ञानरूप तप से पवित्र हुए मेरे स्वरूप को | बदल गया, अर्थ बदल गया। पहले तिजोरी में बंद करने का अर्थ प्राप्त हो चुके हैं।
था, अब त्याग करने का अर्थ है; लेकिन अर्थ है। जो आदमी | तिजोरी में बंद कर रहा था, वह भी कह रहा था, मेरे पास इतने लाख
| हैं; और जिस आदमी ने त्याग किया, वह भी कह रहा है, मैंने इतने र पहले भी राग के ऊपर उठे, क्रोध से मुक्त हुए, मोह लाख का त्याग किया। लेकिन धन दोनों के लिए मूल्यवान है, II के पाश के बाहर, तप से पवित्र हुए पुरुष मेरे शरीर वेल्युएबल है। ___ को उपलब्ध हो चुके हैं!
— वीतराग वह है, जो कहता है, धन में कुछ अर्थ ही नहीं। न मैं राग के पार हुए, वीतराग हुए। वीतराग शब्द गहरा है और बहुत | | तिजोरी में बंद करता, न मैं त्यागता। धन में कुछ अर्थ नहीं। जिसके अर्थपूर्ण है। वीतराग का अर्थ वैराग्य नहीं है। वीतराग का अर्थ | लिए धन बस मिट्टी जैसा हो गया। जिसके लिए धन मिट्टी जैसा हो विराग नहीं है। विराग का अर्थ है, राग के विपरीत हुआ। वीतराग | गया, वह त्याग के अहंकार से भी नहीं भरता है। का अर्थ है, राग के पार हुआ।
बड़ी मीठी कथा है, याज्ञवल्क्य घर छोड़कर जाने लगा। उसकी राग का अर्थ है, एक आदमी धन के पीछे पागल है। धन को | | दो पत्नियां हैं, कात्यायिनी और मैत्रेयी। उसने उन दोनों को बुलाकर पकड़ता है। धन देखता है, तो लार टपक-टपक जाती है। रात-दिन | | कहा कि मेरी धन-संपदा आधी-आधी बांट देता हूं। मैं जाता हूं अब गिनता ही रहता है। विराग का अर्थ है, धन के विपरीत हुआ धन त्याग करके। अब मैं प्रभु की खोज में निकलता हूं। से भागता है। कोई धन उसके सामने करे. तो आंख फेर लेता है। मैत्रेयी राजी हो गई: साधारण स्त्री थी। साधारण स्त्री का कोई रुपया उसके पास रखे, तो छलांग लगाकर खड़ा हो जाता है। | मतलब, जिसे पति भी इसीलिए मूल्यवान होता है कि उसके पास
राग धन को पकड़ता है, विराग धन को छोड़ता है। विराग, | | संपत्ति है। ठीक है, पति जाता है, संपत्ति दे जाता है-कुछ भी नहीं विपरीत राग है; उलटा हुआ राग है। राग स्त्री के पीछे दौड़ता, पुरुष | जाता। मैत्रेयी राजी हो गई। वह ठीक स्त्री थी। के पीछे दौड़ता; विराग स्त्री से भागता, पुरुष से भागता; लेकिन दोनों | लेकिन कात्यायिनी ने एक सवाल उठाया। वह साधारण स्त्री न