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दिव्य जीवन, समर्पित जीवन
बहता था, जो जीवन था। मुझे किनारों का पता है, बीच की धारा | जाती हैं। उस अदृश्य का नाम अलौकिक है। का कोई भी पता नहीं है। इन दोनों किनारों के बीच में तीसरी चीज इस अलौकिक को जो पुरुष जान लेता है, कृष्ण कहते हैं, वह भी थी; जीवन भी था। जन्म से शुरू हुआ, मृत्यु से तिरोहित हुआ, फिर शरीर में जन्म नहीं लेता। क्योंकि वह विराट शरीर के साथ एक लेकिन इन दोनों के बीच में जीवन भी था। वह जीवन, उसका हमें | हो जाता है। फिर उसे छोटे-छोटे शरीरों में जन्म लेने की जरूरत कोई पता नहीं है, वह अलौकिक है।
नहीं रह जाती। फिर वह मेरे साथ ही एक हो जाता है। यहां जब अलौकिक का अर्थ यह हुआ, इंद्रियों से पकड़ में आने योग्य कहते हैं कृष्ण, मेरे साथ, तो उसका अर्थ है अस्तित्व के साथ। वन नहीं है। अलौकिक का अर्थ यह हुआ कि पदार्थ को जिस भांति हम | विद दि एक्झिस्टेंस; वह जो समस्त अस्तित्व है, उसके साथ एक जानते हैं, उस भांति उसे जानने का उपाय नहीं है।
हो जाता है। फिर उसे अलग-अलग छोटे-छोटे घर बनाने की पत्थर को मुझे हाथ में उठाकर देखना है, तो मैं स्पर्श करके देख | जरूरत नहीं पड़ती। सकता हूं। आपको अगर मुझे देखना है, तो आपके शरीर के स्पर्श | बुद्ध को ज्ञान हुआ, तो ज्ञान की घड़ी के बाद आनंदमग्न हो से मैं आपको नहीं जानता; केवल आपके गृह को, आपके घर को | | उन्होंने जोर से कहा, मेरे मन! मेरे अहंकार! अब तक तुझे मेरे लिए जानता हूं। आप भीतर अछूते, अनटच्ड छूट जाते हैं। शरीर छू जाता | छोटे-छोटे घर बनाने पड़े, लेकिन अब तुझे मैं काम से मुक्त करता है, आपको नहीं छू पाता हूं। स्पर्श की सीमा है; वह पदार्थ के पार | हूं। अब तुझे मेरे लिए छोटे-छोटे घर न बनाने पड़ेंगे। नहीं जाती।
कृष्ण उसी का दूसरा हिस्सा कह रहे हैं। कह रहे हैं, छोटे घर इसलिए विज्ञान कठिनाई में पड़ गया है। क्योंकि विज्ञान का | | इसलिए नहीं बनाने पड़ेंगे कि घर नहीं रहेगा; छोटे घर इसलिए नहीं खयाल है, जो इंद्रियों के भीतर है, वही रियलिटी है, वही यथार्थ | | बनाने पड़ेंगे कि सारा विश्व, सारा अस्तित्व, वैसी चेतना का घर है; जो इंद्रियों के भीतर नहीं है, वह यथार्थ नहीं है। लेकिन अब | हो जाता है। फिर छोटे की जरूरत नहीं रह जाती। विज्ञान को रोज-रोज उन चीजों का पता चल रहा है, जो इंद्रियों की । स्वभावतः, जिसे हीरे मिल जाएं, वह कंकड़-पत्थर मुट्ठी से छोड़ सीमा के भीतर नहीं हैं।
देता है; और जिसे महल मिल जाएं, वह झोपड़ियों को भूल जाता जैसे आज तक किसी ने भी इलेक्ट्रिसिटी नहीं देखी। आप | है। जिसे अलौकिक का दर्शन हो जाए, लौकिक कंकड़-पत्थर कहेंगे, हम रोज देखते हैं। घर हमारे बल्ब जलता है, पंखा चलता जैसा हो जाता है; फिर उसमें प्रवेश की आकांक्षा नहीं रह जाती। है, रेडियो बजता है; हम रोज देखते हैं। लेकिन जो आप देख रहे यहां कृष्ण का यह जोर कि मेरा जीवन दिव्य और अलौकिक है, हैं, वह सिर्फ परिणाम है, विद्युत नहीं है। वह सिर्फ कांसिक्वेंस है, | इस बात का ही जोर है कि जीवन दिव्य और अलौकिक है। यहां रिजल्ट है, काज़ नहीं है। आप जो देख रहे हैं, वह विद्युत का | | कृष्ण जीवन के प्रतिनिधि की तरह बोलते हैं। और इससे बड़ी भ्रांति परिणाम है, काम है; विद्युत नहीं है। जब आप बल्ब को फोड़ देते | | होती है। उनकी भी मजबूरी है। हैं, तो विद्युत नहीं फूटती, सिर्फ विद्युत को प्रकट करने वाला जीसस भी इसी तरह बोलते हैं, और इसीलिए जीसस को सूली उपकरण टूट जाता है, इंस्ट्रमेंट टूट जाता है; विद्युत नहीं टूट जाती। | पर लटका दिया। क्योंकि समझने वालों ने समझा कि यह तो गलत
आप बिजली के तार को काट देते हैं, तब बिजली नहीं कटती; सिर्फ बात बोलते हैं। जीसस ने कहा कि वह परमात्मा जो आकाश में है बिजली का तार कटता है, जिससे बिजली बहती थी। जब आप और मैं, हम दोनों एक हैं। लोगों ने कहा, यह तो कुफ्र हो गया, यह बिजली के तार को पकड़ लेते हैं, तो जो झटका, जो शॉक आपको आदमी तो काफिर मालूम होता है! परमात्मा के साथ अपने को एक लगता है, वह भी बिजली नहीं है; वह भी बिजली का परिणाम है। बताता है! यह तो बड़ा अहंकारी मालूम होता है। हम सिर्फ बिजली का परिणाम जानते हैं, बिजली को नहीं जानते; नहीं; वे नहीं समझ सके, नहीं समझ पाए। वह अदृश्य है।
जब जीसस ने कहा कि मैं और परमात्मा एक है, तो जीसस यही अगर हम जीवन को इसी तरह खोजें, तो हम पाएंगे कि हम सिर्फ | कह रहे हैं कि मैं अब कहां हूं ? परमात्मा ही है। सूली पर लटका परिणाम जानते हैं। मूल कारण भीतर अदृश्य रह जाता है। जड़ें दिया लोगों ने। सूली पर लटके आखिरी क्षण में जीसस ने कहा, हे दिखाई नहीं पड़ती, शाखाएं दिखाई पड़ती हैं। जड़ें अदृश्य में रह प्रभु! इन्हें माफ कर देना, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं!
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