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गीता दर्शन भाग-20
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। | धारा सूख जाए; तट बने रहें और धारा न हो। तट बिना धारा के भी त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ।।९।। | हो सकते हैं। तट स्थूल हैं, दिखाई पड़ते हैं; धारा सूक्ष्म है, अगर हे अर्जुन! मेरा यह जन्म और कर्म दिव्य अर्थात अलौकिक | तट न हों तो दिखाई पड़नी बंद हो जाएगी। है। इस प्रकार जो पुरुष तत्व से जानता है, वह शरीर को जीवन सभी का अलौकिक है, लेकिन कृष्ण जोर देकर कहते हैं, त्यागकर फिर जन्म को नहीं प्राप्त होता है, | मेरा जीवन अलौकिक है। इस जोर का कारण क्या है? इस जोर के किंतु मुझे ही प्राप्त होता है।
दो कारण हो सकते हैं। एक तो यह कि दूसरों का जीवन अलौकिक | नहीं है, कृष्ण का जीवन अलौकिक है: ऐसा जो अर्थ लेंगे. वे भल
में पड़ेंगे। जीवन तो सभी का अलौकिक है, कृष्ण का ही नहीं। फिर वन विपरीत ध्रुवों का संगम है, अपोजिट पोलेरेटीज | कृष्ण क्यों जोर देकर कहते हैं कि मेरा जीवन अलौकिक है? UII का। यहां प्रत्येक चीज अपने विपरीत के साथ मौजूद वे इसलिए जोर देकर कहते हैं कि जिस दिन कोई अपने भीतर
___ है; अन्यथा संभव भी नहीं है। अंधेरा है, तो साथ में | के अलौकिक जीवन को जानेगा, उस दिन वह मुझसे भिन्न नहीं रह जुड़ा हुआ प्रकाश है। जन्म है, तो साथ में जुड़ी हुई मृत्यु है। जो | जाता; वह मुझसे एक ही हो जाता है। उस दिन से उसका जीवन विपरीत हैं, वे सदा साथ मौजूद हैं।
उसका नहीं रह जाता, परमात्मा का ही हो जाता है। मेरा जीवन जो हमें दिखाई पड़ता है, वह लौकिक है। जो हमारी इंद्रियों की | अलौकिक है, ऐसा जानते ही, जीवन मेरा नहीं रह जाता। इस तथ्य पकड़ में आता है, वह लौकिक है। जिसे हमारी आंख देखती और को ठीक से समझ लेना जरूरी है। कान सुनते और हाथ स्पर्श करते हैं, वह लौकिक है। हमारी इंद्रियों | जैसे ही बूंद ने जाना कि वह सागर है, वैसे ही बूंद बूंद नहीं रह के जगत का नाम लोक है। लेकिन इंद्रियों की पकड़ के बाहर भी। | जाती; सागर ही हो जाती है। जैसे ही व्यक्ति ने जाना कि मेरे भीतर कुछ सदा मौजूद है, वह अलौकिक है।
कुछ असीम भी मौजूद है, वैसे ही वह व्यक्ति नहीं रह जाता, इंद्रियां जिसे नहीं पकड़तीं, हाथ जिसे स्पर्श नहीं कर पाते, वाणी | असीम हो जाता है। जिसे प्रकट नहीं करती, मन जिसे समझ नहीं पाता, वह भी सदा यहां कृष्ण उस असीम की तरफ से ही कहते हैं कि मेरा जीवन मौजूद है; उस मौजूद का नाम अलौकिक है। वह लोक के साथ ही | अलौकिक है। इसलिए जो भी इस अलौकिक का दर्शन कर लेता निरंतर उपस्थित है।
है, वह मुझे उपलब्ध हो जाता है। इसलिए वे कहते हैं, मरकर वह जो व्यक्ति इंद्रियों पर ही अपने को समाप्त कर लेता है, उसे | | व्यक्ति नए जन्म को नहीं उपलब्ध होता, वह मुझे उपलब्ध हो अलौकिक का कोई संस्पर्श नहीं हो पाता। जो ऐसा मानकर बैठ जाता है। जाता है कि इंद्रियां ही सब कुछ हैं, वह अलौकिक से वंचित रह जन्म का अर्थ है, बूंद अभी अपने को बूंद ही मानती है; बूंद जाता है।
| अभी अपने को सीमा में बंधा हआ मानती है। न जन्म होने का अर्थ कृष्ण कहते हैं, मेरा यह जीवन अलौकिक है।
है कि बूंद ने अब सीमाओं के बाहर अतिक्रमण किया, ट्रांसेंडेंस जीवन सभी का अलौकिक है। जन्म और मृत्यु लौकिक है, | | हुआ। अब बूंद अपने को बूंद नहीं मानती; अब बूंद अपने को जीवन अलौकिक है। शरीर में जीवन है, लेकिन शरीर जीवन नहीं | | सागर ही जानती है। है। फूल में सौंदर्य है, लेकिन सौंदर्य फूल नहीं है। दीए में ज्योति | | कृष्ण कहते हैं, जो भी अलौकिक जीवन के अनुभव को उपलब्ध है, लेकिन ज्योति दीया नहीं है। यद्यपि ज्योति दीए के बिना प्रकट हो जाता है, वह फिर मुझे ही उपलब्ध हो जाता है। फिर उसका जन्म न हो सकेगी; इंद्रियों की पकड़ में न आ सकेगी। सौंदर्य फूल के | | नहीं होता; फिर उसका जीवन ही होता है। बिना तिरोहित हो जाएगा, खोजे से भी मिलेगा नहीं।
जन्म और मृत्यु का भ्रम जिन्हें है, उन्हें जीवन का अनुभव नहीं जीवन भी जन्म और मृत्यु के दो तटों के बीच बहती हुई धारा है। है। जिन्हें जीवन का अनुभव है, उन्हें जन्म और मृत्यु का भ्रम नहीं दोनों तट न होंगे, धारा दिखाई पड़नी बंद हो जाएगी। लेकिन फिर | | है। जब तक हमें लगता है, मैं जन्मा और मैं मरा, तब तक मुझे भी स्मरण रखें, तट धारा नहीं है। और ऐसा भी हो सकता है कि उसका पता नहीं चलेगा, जो जन्म और मृत्यु के तट के बीच अदृश्य
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