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________________ भागवत चेतना का करुणावश अवतरण रहे हैं कि जब भी धर्म के जन्म के लिए और जब भी अधर्म के विनाश | रोता, अपने लिए रोता हूं। क्योंकि ऐसी चेतना जन्मी है, उसी को के लिए कोई आता है, तो मैं ही आता हूं। इसे ऐसा समझें, जब भी खोजते मैं हिमालय से यहां तक आया हूं। कहीं प्रकाश के लिए और अंधकार के विरोध में कोई आता है, तो ___ जब भी कोई महाकरुणावान चेतना पृथ्वी पर उतरती है, तो मैं ही आता हूं। यहां इस मैं से उस परम चेतना का ही प्रयोजन है। जिनके हृदय भी पवित्र हैं, उनके हृदयों में कंपन शुरू हो जाते हैं। जो भी व्यक्ति अपनी वासनाओं को क्षीण कर लेता है, तब वह उन तक खबरें पहुंच जाती हैं। वह लहर, वह झील पर पड़ा हुआ करुणा के कारण लौट आ सकता है; युगों-युगों में, कभी भी, जब पत्थर उन तक लहरें ले जाता है। वे उस ध्वनि तरंग को समझ पाते भी जरूरत हो उसकी करुणा की, कोई लौट आ सकता है। उस हैं, वे भागे हुए चले आते हैं। व्यक्ति का कोई नाम नहीं रह जाता, कि वह कौन है। क्योंकि सब रोने लगा वह महायोगी। उसने कहा, दुखी हूं, क्योंकि मैं मर सनाओं के नाम हैं। जब तक मेरी वासना है. तब तक मेरा जाऊंगा। मेरी तो मौत करीब आ गई, और मैं बद्ध के चरणों में न नाम है, तब तक मेरी एक आइडेंटिटी है। बैठ पाऊंगा। अभी ही नमस्कार कर लेता हूं। उस बच्चे के पैरों में __इसलिए कृष्ण मुझसे नहीं कह सकते कि तुम कृष्ण हो। लेकिन | सिर रखकर वह योगी चला गया। अगर मेरे भीतर कोई वासना न रह जाए, निर्वासना हो जाए, तो कोई जब कृष्ण कहते हैं, तो आमतौर से लोग भूल समझ लेते हैं। वे अहंकार भी नहीं रह जाएगा, मेरा कोई नाम भी नहीं रह जाएगा। समझ लेते हैं कि अगर आज अधर्म होगा, दुष्ट होंगे, साधु कष्ट तब मेरा जन्म भी कृष्ण का ही जन्म है। अगर आपके भीतर कोई | | में होंगे, तो कृष्ण लौट आएंगे। कृष्ण नहीं लौटेंगे। जो भी लौटेगा, वासना न रह जाए, तो आपका जन्म भी कृष्ण का ही जन्म है। वही कृष्ण है। कृष्ण कोई व्यक्ति नहीं है। जहां भी कोई लौटेगा, सल में ठीक से समझें तो हमारी अशद्धियां हमारे व्यक्तित्व वही कष्ण है। लेकिन जब भी जरूरत होती है. अंधेरा घना होता है. हैं। और जब हम शुद्धतम रह जाते हैं, तो हमारा कोई व्यक्तित्व नहीं | तो कोई प्रकाश किरण लौट आती है। क्यों लौट आती है? करुणा रह जाता। इसलिए कहीं भी कोई पैदा हो...। के कारण। जरूरत हो तो ही लौटती है, अन्यथा कोई जरूरत नहीं। मोहम्मद ने कहा है कि मुझसे पहले भी आए परमात्मा के भेजे | आपके घर में कोई बीमार हो तो डाक्टर आता है, न हो तो कोई हुए लोग और उन्होंने वही कहा। उनके ही वक्तव्य को पूरा करने | जरूरत नहीं। अंधेरा हो तो ठीक, अंधेरा न हो तो कोई जरूरत नहीं। मैं भी आया हूं। अगर पिछली पीढ़ी में ऐसी आत्माएं मरी हों जो कि वासना से मुक्त ___ जब जीसस का जन्म हुआ, तो सारी दुनिया से बुद्धिमान लोग | हो गई हों, लेकिन पृथ्वी पर कोई जरूरत न हो, तो वे न लौटेंगी। जीसस के गांव पहुंचे, बड़ी हजारों मील की यात्रा करके। क्योंकि लेकिन अगर जरूरत हो, तो लौट आ सकती हैं। जो भी इस पृथ्वी पर बुद्धिमान थे और जानते थे, उनको तत्काल जरूरत सदा है। अब तक तो ऐसा कोई समय नहीं आया, जब अनुभव हुआ कि कोई करुणा से प्रेरित आत्मा फिर जन्म गई। | जरूरत न रही हो। जरूरत सदा है। पृथ्वी सदा ही अंधेरे से भरी है। इसकी ध्वनियां उन तक पहुंची, इसकी लहरें उन तक पहुंची। पृथ्वी सदा ही अधर्म से भरी है। लौटना ही पड़ता है। लेकिन लौटने जब बुद्ध का जन्म हुआ, तो हिमालय से एक महायोगी उतरकर का प्रयोजन स्वयं की कोई वासना नहीं है। लौटने का प्रयोजन दूसरों बुद्ध के गांव आया। बुद्ध के द्वार पर खड़ा हुआ। बुद्ध के पिता बुद्ध पर करुणा है। को लेकर योगी के चरणों में रख दिए और कहा कि आशीर्वाद दें, इस करुणा के दो कारण उन्होंने कहे, असाधुओं के विनाश के शुभ वचन कहें, शुभ कामनाएं करें। लेकिन वह योगी रोने लगा। लिए, दुष्टों के विनाश के लिए; साधुओं के उद्धार के लिए। ये जरा तो बुद्ध के पिता बहुत चिंतित हुए। उन्होंने कहा, कोई अपशगुन कठिन हैं दोनों बातें। इन्हें थोड़ा-सा खयाल में ले लेना जरूरी है। है? आप रोते हैं। उस योगी ने कहा. मेरे रोने का कारण दसरा है। ___ दुष्टों के विनाश के लिए! क्या दुष्टों की हत्या कर देंगे? मार अपशगुन नहीं, महाशगुन है। मैं रोता हूं इसलिए कि उस आदमी | | डालेंगे दुष्टों को? तब तो खुद ही दुष्ट हो जाएंगे। फिर वह करुणा का जन्म हुआ फिर, जिसकी कोई वासना नहीं है, जो करुणा से | न हुई। आया है। लेकिन मैं उसके चरणों में बैठने से वंचित रह जाऊंगा, । दुष्टों के विनाश का क्या अर्थ होता है? दुष्टों के विनाश का एक क्योंकि मेरी तो मौत की घड़ी करीब आ रही है। उसके लिए नहीं । ही अर्थ होता है कि दुष्टों में दुष्टता न रह जाए, तो दुष्टों का विनाश
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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