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भागवत चेतना का करुणावश अवतरण
आप आत्म-सम्मोहित होते हैं, आटो-हिप्नोटाइज्ड होते हैं। आप | तो नए जन्म को धारण करने का कारण क्या रह जाएगा? इच्छा तो खुद ही अपने को सम्मोहित करके उतरते हैं। कोई दूसरा नहीं, कोई | मूर्छित-जन्म का कारण है। फिर क्या कारण रहेगा? अकारण तो प्रकृति आपको सम्मोहित नहीं करती।
कोई पैदा नहीं हो सकता। इसलिए अकारण कोई पैदा होता भी साधारणतः हमारा जन्म इच्छाओं के सम्मोहन में होता है। मैं | नहीं। लेकिन जब इच्छा विलीन हो जाती है और जब इच्छा मरूंगा। हजार इच्छाएं मुझे पकड़े होंगी, वे पूरी नहीं हो पाई हैं। वे | विलीन हो जाती है तभी-करुणा का जन्म होता है, कम्पैशन का मेरे मन-प्राण पर अपने घोंसले बनाए हुए बैठी हैं। वे मेरे मन-प्राण | जन्म होता है। को कहती हैं कि और शरीर मांगो, और शरीर लो; शीघ्र शरीर लो, __ कृष्ण, बुद्ध या महावीर जैसे व्यक्ति करुणा के कारण पैदा होते क्योंकि हम अतृप्त हैं; तृप्ति चाहिए। जैसे रात आप सोते हैं। और हैं। जो उन्होंने जाना, जो उनके पास है, उसे बांट देने को पैदा होते अगर आप सोचते हुए सोए हैं कि एक बड़ा मकान बनाना है, तो | | हैं। लेकिन यह जन्म कांशस बर्थ, सचेष्ट जन्म है। इसलिए उनकी सुबह आप पुनः बड़ा मकान बनाना है, यह सोचते हुए उठते हैं। । | पिछली मृत्यु जानी हुई होती है; यह जन्म जाना हुआ होता है। और रातभर आकांक्षा प्रतीक्षा करती है कि ठीक है, सो लो। उठो, तो . जो व्यक्ति अपनी एक मृत्यु और एक जन्म को जान लेता है, उसे वापस द्वार पर खड़ी है कि बड़ा मकान बनाओ।
अपने समस्त जन्मों की स्मृति वापस उपलब्ध हो जाती है। वह __रात आखिरी समय, सोते समय जो आखिरी विचार होता है, वह अपने समस्त जन्मों की अनंत श्रृंखला को जान लेता है। सुबह के समय, उठते वक्त पहला विचार होता है। खयाल करना इसलिए जब कृष्ण कह रहे हैं कि तुझे पता नहीं, मुझे पता है। तो पता चलेगा। अंतिम विचार, सुबह का पहला विचार होता है। और मैं औरों की भांति मूर्च्छित नहीं जन्मा हूं; सचेष्ट, अपनी ही मरते समय आखिरी विचार, जन्म के समय पहला विचार बन जाता योगमाया से, अपने को ही जन्माने की शक्ति का स्वयं ही सचेतन है। बीच में नींद का थोड़ा-सा वक्त है। वह खड़ा रहता है; इच्छा रूप से प्रयोग करके इस शरीर में उपस्थित हुआ हूं। तो वे एक बहुत पकड़े रहती है। और वह इच्छा आपको सम्मोहित करती है और नए आकल्ट, एक बहुत गुह्य-विज्ञान की बात कह रहे हैं। जन्म में यात्रा करवा देती है।
इस रहस्य की बात को ऊपर से समझा ही जा सकता है। जानना ___ जब कृष्ण कह रहे हैं, औरों की भांति, तो फर्क इतना ही है कि हो, तब तो भीतर ही प्रवेश करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं
और अपनी-अपनी इच्छाओं के सम्मोहन में नए जन्म में प्रविष्ट हुए | है। और कठिन नहीं है यह बात कि आप औरों की भांति की दुनिया हैं। उन्हें कुछ पता नहीं है। जानवरों की तरह गलों में रस्सियां बंधी से हटकर कृष्ण की भांति दुनिया में प्रवेश कर जाएं। औरों से हटने हों, ऐसे बंधे हुए खींचे गए हैं इच्छाओं से। इच्छाओं के पाश में बंधे | और कृष्ण के निकट आने का एक ही रास्ता है। पशुओं की भांति बेहोश, मूछित वे नए जन्मों में प्रविष्ट हुए हैं। न इस सत्य को पहचान लेना है कि भीतर जो है, वह अजन्मा है, उन्हें याद है मरने की, न उन्हें याद है नए जन्म की; उन्हें सिर्फ याद | | उसका कोई जन्म नहीं है। पहचान लेना, दोहराना नहीं। नहीं तो हैं अंधी इच्छाएं। और वे फिर जैसे ही शक्ति मिलेगी, शरीर मिलेगा, | | दोहराने की तो कोई कठिनाई नहीं है। सुबह बैठकर हम दोहरा
अपनी इच्छाओं को पूरा करने में लग जाएंगे। उन्हीं इच्छाओं को, | सकते हैं कि आत्मा अजर-अमर है, आत्मा अजर-अमर है। जिन्हें उन्होंने पिछले जन्म में भी पूरा करना चाहा था और पूरा नहीं दोहराते रहें, उससे कुछ भी न होगा। जानना पड़ेगा कि मेरे भीतर कर पाए। उन्हीं इच्छाओं को, जिन्हें उन्होंने और भी पिछले जन्मों में | जो है, वह कभी नहीं जन्मा है। पूरा करना चाहा था और पूरा नहीं कर पाए। उन्हीं इच्छाओं को, जिन्हें कैसे जानेंगे? पीछे लौटना पड़ेगा; भीतर, चेतना में, एक-एक उन्होंने जन्मों-जन्मों में पूरा करना चाहा था और पूरा नहीं कर पाए। कदम पीछे जाना पड़ेगा। याद करनी पड़ेगी लौटकर। अभी अगर उन्हीं को वे पुनः पूरा करने में लग जाएंगे। एक वर्तुल की भांति, एक लौटकर याद करेंगे, तो आमतौर से पांच साल तक की याद आ विसियस सर्कल की भांति, दुष्टचक्र घूमता रहेगा।
पाएगी, पांच साल की उम्र तक की, उसके पहले की याददाश्त खो कृष्ण जैसे व्यक्ति जानते हुए जन्मते हैं, किसी इच्छा के कारण गई होगी। बहुत बुद्धिमान और बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति होंगे, तो नहीं, कोई अंधी इच्छा के कारण नहीं। फिर किसलिए जन्मते होंगे? तीन साल तक की याद आ पाएगी, उसके पहले की याद खो गई जब इच्छा न बचे, तो कोई किसलिए जन्मेगा? जब इच्छा न बचे, | | होगी।
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